2015-10-21 12:20:00

ईश्वर का प्रेम अपरम्पार है, सन्त पापा फ्राँसिस


वाटिकन सिटी, बुधवार, 21 अक्टूबर 2015 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा है कि प्रभु ईश्वर का प्रेम अपार है, उनकी कृपा मनुष्यों पर सदैव बनी रहती है।

वाटिकन स्थित सन्त मर्था प्रेरितिक आवास में मंगलवार को ख्रीस्तयाग के अवसर पर प्रवचन करते हुए उन्होंने कहा कि ईश्वर के प्रेम की कोई सीमा नहीं होती जबकि मानव प्राणियों में प्रायः प्रेम का अभाव बना रहता है। 

रोमियों को लिखे सन्त पौल के पत्र से प्रेरित होकर सन्त पापा ने कहा "ईश्वर स्थिर नहीं है, बल्कि वे मनुष्यों के पास आते, मनुष्यों की तलाश करते तथा उन्हें अपने विपुल प्रेम से परिपूर्ण कर देते हैं।"

ईश्वर के प्रेम की तुलना मनुष्यों के प्रेम से करते हुए सन्त पापा ने कहा कि ईश्वर का प्रेम अपरिमित है, उसकी कोई सीमा नहीं होती जबकि मनुष्यों में प्रायः प्रेम का अभाव रहता है, उनमें उदारता की कमी रहती है, दान देते समय या किसी के लिये कुछ करते समय वे प्रायः कितना देना है और कितना नहीं इस बात की चिन्ता में लगे रहते हैं।

सन्त पापा ने कहा, "हम मनुष्यों की मुक्ति ईश्वर और हमारे बीच सम्बन्ध में निहित है इसीलिये हमारे कार्यों को ईश नियमों के अनुकूल होना चाहिये। जिस तरह प्रभु ईश्वर से हमें विपुल वरदान मिले उसी माप से हमें भी अपने भाई और पड़ोसी को देना चाहिये।"

ईश्वर की दयालुता एवं मनुष्यों के प्रति उनके असीम प्रेम के बारे में सन्त पौल के पत्र को उद्धृत कर उन्होंने कहा: "एक मनुष्य के अपराध तथा ईश्वर के वरदान में कोई तुलना नहीं है। एक के अपराध के फलस्वरूप दण्डाज्ञा दी गई किन्तु बहुत से अपराधों के बाद मनुष्यों को जो वरदान दिया गया उसके द्वारा मुक्ति और जीवन मिला।"   

सन्त पापा ने कहा, "ईश्वर संकीर्ण नहीं हैं, क्षुद्रता से उनका कोई वास्ता नहीं, वे सबकुछ दे देते हैं। वे हमें खोजते रहते तथा हमारे मनपरिवर्तन की प्रतीक्षा में रहा करते हैं जैसा कि खोई हुई भेड़ एवं खोये हुए सिक्के के दृष्टान्त में बताया गया है।" उन्होंने स्मरण दिलाया कि स्वर्ग में 100 भले व्यक्तियों की तुलना में उस एक व्यक्ति के लिये अधिक आनन्द मनाया जाता है जिसने मनपरिवर्तन किया है।           








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