2015-10-20 11:53:00

प्रेरक मोतीः क्रूस के सन्त पौल


वाटिकन सिटी, 20 अक्टूबर सन् 2015:

क्रूस के सन्त पौल का जन्म जेनोआ गणतंत्र के ओवादा में 03 जनवरी, सन् 1694 ई. को हुआ था। बाल्यकाल से ही उन्हें धर्म और विश्वास की शिक्षा मिली थी तथा उनका यौवन भी धर्मपरायणता एवं ईश भक्ति में व्यतीत हुआ था। क्रूस के सन्त पौल को स्वर्ग से दिव्य दर्शन मिले थे जिनमें उनसे एक धर्मसमाज की स्थापना का आग्रह किया गया था; एक बार ध्यान एवं मनन- चिन्तन करते हुए वे परमानंद में पहुँच गये जहाँ उन्होंने उस परिधान को देखा जो उन्हें तथा उनके धर्मसमाजी साथियों को पहनना था। अपने आध्यात्मिक गुरु एवं पीडमन्ट के धर्माधिपति एलेक्ज़ेनड्रिया के धर्माध्यक्ष गास्तीनारा से सलाह मशवरा कर उन्हें आलोक प्राप्त हुआ कि उन्हें येसु ख्रीस्त के दुखभोग को समर्पित धर्मसमाज की स्थापना करनी थी।

22 नवम्बर, 1741 ई. को धर्माध्यक्ष ने पौल को धर्मसमाज का संस्थापक एवं अध्यक्ष घोषित करते हुए उन्हें वही परिधान प्रदान किये जिन्हें पौल ने अपने दर्शन में देखा था। यही परिधान आज भी प्रभु येसु ख्रीस्त के दुखभोग को समर्पित धर्मसमाज के पुरोहित यानि पेशनिस्ट पुरोहित धारण करते हैं। 1721 ई. में पौल ने रोम की यात्रा की तथा अपने धर्मसमाज के नियमों को परमधर्मपीठ के समक्ष रखकर इसे मान्यता देने की अपील की।

धर्मसमाज को अनुमोदन मिलना उस युग में सरल कार्य नहीं था। बीस वर्षों के अथक प्रयासों के उपरान्त सन् 1741 ई. में, सन्त पापा बेनेडिक्ट 14 वें ने, पौल के प्रस्ताव के अवलोकन की अनुमति प्रदान कर दी तथा सन् 1746 ई. में पेशनिस्ट धर्मसमाज को परमधर्मपीठ का पूर्ण अनुमोदन मिल गया। इसी बीच, क्रूस के पौल ने ओबित्तेलो में अपने प्रथम मठ की भी स्थापना कर डाली तथा इसके कुछ समय बाद उन्होंने रोम स्थित सन्त जॉन एवं पौल गिरजाघर में पेशनिस्ट धर्मसमाजी पुरोहितों के समुदाय की स्थापना की।

50 वर्षों तक, पौल, इटली में अपनी प्रेरिताई का निर्वाह करते रहे। हालांकि, ईश्वर ने पौल को सभी कृपाओं से अनुगृहीत किया था तथापि, वे स्वतः को एक विनम्र सेवक एवं ईश्वर की आँखों में पापी मानते रहे थे। उनका जीवन अनुशासन, कठोर श्रम, तपस्या एवं त्याग में व्यतीत हुआ। 81 वर्ष की आयु में, सन् 1775 ई. में क्रूस के सन्त पौल का निधन रोम में हो गया था। सन् 1867 ई. में सन्त पापा पियुस नवम ने क्रूसभक्त पौल को सन्त घोषित कर वेदी का सम्मान प्रदान किया। क्रूस के सन्त पौल का पर्व 20 अक्टूबर को मनाया जाता है।

चिन्तनः धन्य हैं वे जो विनम्र हैं, उन्हें प्रतिज्ञात देश प्राप्त होगा... धन्य हैं वे जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं, वे तृप्त किये जायेंगे... धन्य हैं वे जिनका हृदय निर्मल है। वे ईश्वर के दर्शन करेंगे (सन्त मत्ती 5: 4,6,8)।    








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