2015-10-19 15:15:00

अधिकारियों का अधिकार सेवा के लिए


वाटिकन सिटी, सोमवार, 19 अक्टूबर 2015 (वीआर सेदोक): वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 18 अक्टूबर को, संत पापा फ्राँसिस ने कलीसिया के लिए चार नये संतों की घोषणा कर उन्हें सम्मानित किया इस अवसर पर उन्होंने ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए प्रवचन में कहा, ″आज का धर्मविधिक पाठ हमारे समक्ष सेवा की विषयवस्तु को प्रस्तुत करता है जो हमें येसु का अनुसरण विनम्रता एवं क्रूस के रास्ते पर करने का निमंत्रण देता है।"

नबी इसायस प्रभु के सेवक तथा उनके मिशन का चित्र प्रस्तुत करते हैं (इसा.53.10-11) ऐसा सेवक जो कोई प्रसिद्ध वंश का नहीं किन्तु सभी के द्वारा तुच्छ, त्यागा तथा दुःख का मारा है। वह महान काम नहीं करता और न ही यादगार भाषण देता है बल्कि वह दीनता, मौन उपस्थिति तथा पीड़ा सहते हुए ईश्वर की इच्छा पूरी करता है। वह अपने मिशन को दुःख सहकर पूरा करता है तथा उन लोगों के लिए उदाहरण प्रस्तुत करता है जो दुःख सहते हैं। वह दूसरों के अपराध को माफ करता तथा उनके पापों के लिए प्रायश्चित्त करता है। प्रभु के सेवक ने परित्यक्त होकर तथा दुःख उठाकर यहाँ तक कि मृत्यु तक निष्ठावान रहकर बहुतों को उनके पापों से छुटकारा तथा मुक्ति दिलाई है।

संत पापा ने कहा कि येसु ईश्वर के सेवक हैं। उनका जीवन एवं मृत्यु अत्यधिक सेवा की भावना से भरा है (फिली.2:7) जिसमें हमारी मुक्ति तथा मनुष्य का ईश्वर के साथ मेल-मिलाप निहित है।

सुसमाचार का केंद्र ‘केरिगमा’ अर्थात् सुसमाचार की आरम्भिक घोषणा, इस बात का सबूत है कि मृत्यु एवं पुनरुत्थान, ‘प्रभु के सेवक’ की भविष्यवाणी को पूरा करता है।

संत मारकुस हमें बतलाते हैं कि येसु किस तरह अपने चेलों, याकूब तथा योहन का सामना करते हैं जब वे उनकी माता द्वारा ईश्वर के राज्य में उनके दाहिनी और बायें बैठने देने का आग्रह करते हैं। (मार.10:37) संत पापा ने कहा कि सम्मानित स्थानों का दावा राज्य की श्रेणीबद्ध दृष्टि के आधार पर किया गया था। उनका क्षितिज अब तक सांसारिक पूर्ति रूपी मोह के बादल से घिरा था। येसु तब पृथ्वी पर अपनी यात्रा के बारे बोलते हुए उनके विचार को पहला झटका देते हैं, ″क्या मैं जो प्याला पीने जा रहा हूँ उसे तुम पियोगे, किन्तु तुम्हें अपने दायें या बायें बैठने देने का अधिकार मेरा नहीं है। वे स्थान उन लोगों के लिए हैं जिनके लिए वे तैयार किये गये हैं। (पद.39-40)

कटोरे के प्रतीक के रूप में वे आश्वासन देते हैं कि वे उनके दुःखों में पूरी तरह शामिल हो सकते हैं किन्तु येसु उनके आग्रह को पूरा करने की प्रतिज्ञा नहीं करते किन्तु उनके आग्रह के प्रत्युत्तर में सेवा तथा प्रेम के रास्ते पर उनका अनुसरण करने तथा प्रथम स्थान प्राप्त करने एवं लोगों पर अपना प्रभुत्व जताने की दुनियावी प्रलोभन का बहिष्कार करने की सलाह देते हैं।

संत पापा ने कहा, ″जो लोग दूसरों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए सत्ता तथा सफलता की चाह रखते हैं। पहचान पाने के उद्देश्य से उपलब्धियाँ हासिल करना चाहते एवं उन्हें पाने के प्रयासों में लगे रहते हैं, येसु के शिष्य उनकी तरह नहीं किन्तु उनके ठीक विपरीत कार्य करने के लिए बुलाये जाते हैं। येसु उन्हें चेतावनी देते हैं, ″तुम जानते हो कि जो संसार के अधिपति माने जाते हैं वे अपनी प्रजा पर निरंकुश शासन करते हैं और सत्ताधारी लोगों पर अधिकार जताते हैं।″ (पद.42-44) ये शब्द दर्शाते हैं कि ख्रीस्तीय समुदाय में अधिकारियों के अधिकार का प्रयोग सेवा के लिए होता है। जो लोग अन्यों की सेवा करते हैं तथा अपनी वास्तविक ख्याति को खो देते हैं वे ही कलीसिया के सच्चे अधिकारी हैं। येसु हमें चीजों को दूसरे तरह से देखने का आग्रह करते हैं, दूसरों पर अधिकार जताने की हमारी स्वाभाविक चाह का दमन कर, सत्ता की प्यास को मौन सेवा के आनन्द में परिणत करने की सलाह देते हैं तथा विनम्रता के सदगुण का अभ्यास करने हेतु प्रेरित करते हैं।

संत पापा ने कहा कि अनुसरण नहीं करने के उदाहरण को प्रस्तुत करने के बाद येसु अपने आपको एक आदर्श रूप में प्रस्तुत करते हैं। गुरु का अनुसरण करते हुए, सामुदायिक जीवन एक नयी दृष्टिकोण प्राप्त करता है, ″मानव पुत्र सेवा कराने नहीं बल्कि सेवा करने और बहुतों के उद्धार के लिए अपने प्राण देने आया है।"

पवित्र धर्मग्रंथ में, मानव पुत्र वह है जिन्हें  ईश्वर से सामर्थ्य, महिमा तथा राजाधिकार प्राप्त है। (दानिएल 7:14) येसु इस प्रतीक को नये अर्थ से पूर्ण करते हैं। वे दिखलाते हैं कि उनके पास सामर्थ्य इसलिए है क्योंकि वे सेवक हैं, महिमा इसलिए क्योंकि वे अपमानित किये गये हैं राजत्व इस लिए क्योंकि वे अपना जीवन अर्पित करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। अपने दुखभोग एवं मृत्यु के द्वारा वे अपने लिए सबसे निम्न स्थान लेते हैं, सेवा को सबसे अधिक महत्व देते तथा इसे कलीसिया को प्रदान करते हैं। येसु की शिक्षा एवं उदाहरण के अनुसार दुनियावी शक्ति तथा विनम्र सेवा के बीच कोई अनुकूलता नहीं है जो अधिकार की विशेषता होनी चाहिए। महत्वाकांक्षा तथा पेशे की भावना ख्रीस्तीय शिष्यता के साथ असंगत है। सम्मान, सफलता, कीर्ति और दुनियावी जीत क्रूसित येसु के तर्क के असंगत है। बल्कि अनुकूलता दुखों के व्यक्ति येसु तथा हमारी पीड़ाओं के बीच प्रदर्शित होती है। इब्रानियों का पत्र येसु को महापुरोहित के रूप में प्रस्तुत करते हुए स्पष्ट करता है कि पाप को छोड़ उन्होंने हमारी ही तरह मानव रूप धारण किया। ″हमारे प्रधान याजन हमारी दुर्बलताओं में हमसे सहानुभूति रख सकते हैं क्योंकि पाप के अतिरिक्त अन्य सभी बातों में उनकी परीक्षा हमारी ही तरह ली गयी है। येसु करुणा एवं सहानुभूति के एक सच्चे पुरोहित हैं। वे हमारी तकलीफों को सबसे पहले जानते हैं, वे हमारे मानवीय स्वभाव को समझते हैं। उनका पाप से रहित होना उन्हें पापियों के प्रति समझदारी को कम नहीं करता। उनकी महिमा महत्वाकांक्षा अथवा सत्ता की चाह से उत्पन्न नहीं हुई है। उनकी महिमा स्त्रियों एवं पुरूषों से प्रेम करने में है जो लोगों को स्वीकार करता तथा उनकी कमजोरियों को बांटता है, उन्हें अपने वरदान प्रदान करता है, जो, उन्हें चंगाई तथा सुरक्षा देता है। उनकी कठिनाईयों में वह उन्हें असीमित कोमलता से उनका साथ देता है।

हम प्रत्येक जन, बपतिस्मा संस्कार द्वारा ख्रीस्त की पुरोहिताई में शामिल होते हैं। फलस्वरूप, हम सभी कृपा प्राप्त करते हैं जो हमारे लिए उनके हृदय से बहती है तथा सेवा एवं करुणा का स्रोत बन जाती है विशेषकर, जो दुःख सह रहे हैं, उपेक्षित हैं तथा एकाकी का जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

संत पापा ने कलीसिया के नये संतों का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि उन्होंने अपने स्वामी का अनुसरण करते हुए अपने भाई बहनों की विनम्र एवं उदार सेवा की थी।

दीप्तिमान उन संतों के साक्ष्य हमें प्रेरित करता है कि हम ईश्वर की कृपा पर भरोसा रखते हुए माता मरियम के संरक्षण में, अपने भाई बहनों की प्रसन्नचित सेवा में अध्यवसाय बने रहें। वे स्वर्ग से हम पर दृष्टि लगायें तथा हमारे लिए प्रार्थना करें।

ख्रीस्तयाग के अंत में संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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