2015-10-16 15:20:00

तलाकशुदा और पुनर्विवाहितों को यूखरीस्तीय संस्कार लेने की अनुमति नहीं


वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2015 (वीआर सेदोक): महाधर्माध्यक्ष गादेकी और मैकसिको के महाधर्माध्यक्ष कारलोस आक्वियर रेतेस के आतिथ्य में वाटिकन प्रवक्ता फा.फेद्रिको लोमबार्दी येसु समाजी ने परिवार विषय पर चल रही धर्मसभा के 10वें दिन का संक्षेपण प्रस्तुत किया।

बुधवार और बृस्पतिवार की सभाओं में कुल मिलाकर 93 वकतव्य दिये गये। धर्मसभा के ये वकतव्य बहुत से मुद्दों को गहनतापूर्वक विचार करने में कारगर सिद्ध हुए। उनमें से कुछ जैसे, कलीसिया के सिद्धन्तों की रक्षा और कथलिकों को उन परम्पराओं का अनुपालन, धर्मग्रन्थ के विषयों की सही समझ, विवाह विषय पर कलीसिया की शिक्षा का स्पष्टीकरण, तलाकशुदा और पुनर्विवाहितों के साहचर्य  हेतु संभावित मार्ग, मेल-मिलाप संस्कार का महत्व, पाप के बारे में कलीसिया की धर्मशिक्षा को प्रकाश में डाला जाये और इसे न खोया जाये, अन्तर जातीय, सांस्कृतिक, धर्म और बहुप्रजातीय   विवाह की जटिलता, स्त्री और बच्चों की तस्करी और उन निःसंतान दम्पतियों का दुःख जिनके बच्चे नहीं हैं ऐसी परिस्थिति में गोद लेने की चर्चा हुई।

प्रेरितिक साहचर्य हेतु पुरोहितों के प्रशिक्षण की बातों पर जोर दिया गया। यदि परिवार में युवाओं का अनुभव अच्छा नहीं है और उन्हें पर्याप्त प्रशिक्षण न मिला है जो चंगाई ला सके तो वे अपने प्रेरितिक कार्य में प्रभावशाली नहीं होगें। युवाओं को “मित्रता की कला” के बारे में बतलाने की आवश्यकता है जिससे से परिवारों को पवित्रता के मार्ग पर अग्रसर कर सकें।

तलाकशुदा और पुनर्विवाहितों को परमप्रसाद ग्रहण करने की अनुमति पर विस्तृत विचार विमर्श हुआ। महाधर्माध्यक्ष गादेसकी ने कहा कि पोलैण्ड का मत इस विषय पर स्पष्ट हैं, “हम उन दम्पतियों को परमप्रसाद देने के पक्षधर नहीं है। परमप्रसाद ग्रहण किये बिना भी वे कलीसियाई जीवन में सहभागी हो सकते हैं और पारिवारिक जीवन की कठिनाइयों का साक्ष्य दे सकते हैं।”

धर्मसभा के दौरान यह स्पष्ट किया गया कि पुनर्विवाहितों को कलीसिया में सम्मिलित करने की प्रक्रिया अंधाधुंध न हो लेकिन एक सावधानी पूर्वक की गई संरचना हो। तलाक को परिवार में हमेशा एक दुःखद घटना के समान देखा जाना चाहिए। कलीसिया को उन्हें सज़ा नहीं देना चाहिए जो कमजोर हैं वरन दूसरे तरीके से उनकी सहायता करनी चाहिए। बहुतों ने अपने व्याख्यान में कहा कि यह कलीसिया के सिद्धान्तों में परिवर्तन नहीं था बल्कि प्रेरितिक क्रिया कलाप के मनोभाव  में बदलाव था।

महाधर्माध्यक्ष रेतिस ने कहा कि संत पापा ने हमें कलीसिया की मनोभावों से वाकिफ़ किया है कि कैसे हमें सब पर दया दिखाना है। उन्होंने कहा कि यह कलीसिया का प्रेरितिक कार्य है जहाँ परिवार और लोगों को ईश्वरीय प्रेम का रसास्वादन करना है।

कुछ अन्य गंभीर व्याख्यान जो अन्तर जातीय विवाह को लेकर हुये वे अफ्रीका और एशिया में प्रचलित हैं। बहुत से प्रतिनिधियों ने कहा कि इस मुद्दे का सकारात्मक पक्ष यह है कि गैर ख्रीस्तीय वार्ता हेतु तैयार हैं जिन्होंने ख्रीस्तीयों से विवाह किया है। 








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