2015-10-12 11:35:00

करुणा का अर्थ कलीसियाई शिक्षा का परित्याग नहीं, कार्डिनल क्लेमिस


वाटिकन सिटी, सोमवार, 12 अक्टूबर 2015 (सेदोक): भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के अध्यक्ष तथा सिरो मलाबार कलीसिया के प्रधान कार्डिनल बेज़िलियोस क्लेमिस थोटुन्कल ने कहा है कि करुणा का अर्थ कलीसियाई शिक्षा का परित्याग नहीं है।

रोम में 05 से 25 अक्टूबर तक जारी विश्व धर्माध्यक्षीय धर्मसभा के छठवें प्रेस सम्मेलन में शनिवार को वाटिकन के प्रवक्ता फादर फेदरीको लोमबारदी ने बताया कि धर्मसभा के की पूर्णकालिक बैठक में 75 धर्माचार्यों ने अपने विचार रखे। ये धर्माचार्य यूरोप, अफ्रीका, मध्यपूर्व, लातीनी अमरीका तथा उत्तरी अमरीका की कलीसियाओं का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि इस बैठक में पारिवारिक जीवन की आध्यात्मिकता, परिवारों की मिशनरी ज़िम्मेदारी, विवाह संस्था की सुरक्षा, कलीसिया में विभिन्न परिवार अभियानों की भूमिका तथा संघर्षरत परिवारों की मदद हेतु कलीसिया की सहायता आदि विषयों पर विचार विमर्श हुआ।

न्याय एवं करुणा पर बोलते हुए कार्डिनल क्लेमिस ने कहा कि दया दिखाने का यह अर्थ कदापि न लगाया जाये कि कलीसिया की धर्मशिक्षा के सिद्धान्तों को बदला जा सकता है। उन्होंने कहा, "दया दिखाने का अर्थ है मनपरिवर्तन जो दोनों ओर से होना चाहिये। सुसमाचार की मांग है कि क्षमा की याचना करनेवाला मनपरिवर्तन के लिये तौयार हो क्योंकि स्वर्ग का राज्य हमारे क़रीब है, ज़रूरत है केवल मनपरिवर्तन की।" 

इस प्रस्ताव पर कि चूँकि विश्व धर्माध्यक्षीय धर्मसभा में सम्पूर्ण विश्व के सभी महाद्वीपों की चुनौतियों को उठाया जाता है इसकी अवधि को बढ़ा दिया जाना चाहिये कार्डिनल क्लेमिस ने कहा कि स्थानीय कलीसियाओं में तैयारी की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि स्थानीय स्तर पर शुरु की गई वार्ताओं के परिणाम विश्व धर्माध्यक्षीय धर्मसभा के समक्ष रखे जा सकते हैं इसलिये धर्मसभा की अवधि को बढ़ाना कोई मुद्दा नहीं है। उन्होंने कहा निर्धारित अवधि में ही सब महाद्पों की चुनौतियों से परिचित हुआ जा सकता है तथा उसके वाँछित फलों को सम्पूर्ण कलीसिया की सेवा लगाया जा सकता है।








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