2015-10-07 12:28:00

कलीसिया को कठोर पुरोहितों की नहीं दया की आवश्यकता है


वाटिकन सिटी, बुधवार, 7 अक्तूबर 2015 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा है "जहाँ प्रभु ईश्वर हैं वहाँ दया है, इसलिये कलीसिया के सेवकों को भी दयावान होना चाहिये। उन्होंने कहा कि कठोर हृदय का कलीसिया में कोई स्थान नहीं।

वाटिकन के सन्त मर्था प्रेरितिक आवास में मंगलवार को ख्रीस्तयाग के अवसर पर प्रवचन करते हुए सन्त पापा ने विश्वासियों से आग्रह किया कि वे प्रभु की दया के आगे अपने मतों अथवा नियमों को न रखें।

बाईबिल में निहित योना के ग्रन्थ से लिये पाठ पर चिन्तन करते हुए सन्त पापा ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि पहले-पहल योना ईश इच्छा को स्वीकार नहीं करना चाहता था किन्तु अन्ततः उसे यह ज्ञान हो जाता है कि ईश्वर के नियमों के पालन में ही मनुष्य का कल्याण निहित है। उन्होंने कहा कि ईश इच्छा को स्वीकार कर जब योना उपदेश देने लगा तब सम्पूर्ण निनिवेह नगर का मनपरिवर्तन हुआ। उन्होंने कहा, "वह वास्तव में एक चमत्कार था क्योंकि योना ने अपने हठीलेपन, अपनी कठोरता और अपने अहंकार को दूर रख ईश इच्छा को स्वीकार किया तथा ईश्वर के प्रति आज्ञाकारी रखकर वही किया जो ईश्वर के नियमों के अनुकूल था।"

सन्त पापा ने कहा कि प्रवचनकर्त्ता अथवा धर्मशिक्षक को यह नहीं सोचना कि मेरे ही विचार सही हैं, मेरे ही विचार महत्वपूर्ण हैं, मेरे द्वारा प्रस्तावित नियमों का ही पालन किया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति इस तरह का कठोर हृदय रखते हैं वे ईश कृपा से वंचित रह जाते हैं तथा ईश्वर की दया का अनुभव नहीं कर पाते हैं।

सन्त पापा फ्राँसिस ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि उनकी दया के कारण ही लोग प्रभु येसु को भी समझ नहीं पाये थे। वे संहिता के शास्त्रियों एवं पण्डितों के साथ रहते थे जो यह नहीं समझ पाये थे कि वे व्याभिचारिणी स्त्री पर क्यों दया दिखा रहे थे, वे यह नहीं समझ पाये थे कि येसु क्यों पापियों के संग बैठकर भोजन करते थे। सन्त पापा ने कहा, "शास्त्री यह नहीं समझ पाये थे कि जहाँ ईश्वर हैं वहाँ दया है और जैसा कि सन्त एम्ब्रोज़ कहते हैं, जहाँ उसके पुरोहित हैं वहाँ कठोरता है। कठोरता जो मिशन को चुनौती देती, जो दया को चुनौती देती है।"

करुणा को समर्पित वर्ष की पृष्ठभूमि में सन्त पापा ने स्मरण दिलाया कि ईश्वर बलिदान नहीं, दया चाहते हैं इसलिये ईश्वर के सेवक होने का दावा करनेवाले लोग कठोर हृदय न बनें बल्कि दया दिखायें।      








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