2015-09-25 14:15:00

न्यूयार्क में संत पापा का अमरीका के पुरोहितों और धर्मसघियों के नाम संदेश


वाटिकन सिटी, शुक्रवार 25 सितम्बर 2015, (सेदोक): अमरीका की प्रेरितिक यात्रा पर गये संत पापा ने न्यूयार्क स्थित संत पैट्रिक महागिरजाघर मैं पुरोहितों और धर्मसघियों को अपना संदेश देते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो, आज की शाम मैं आप सब के साथ प्रार्थना करने आया हूँ कि हमारी बुलाहट इस देश में ईश्वरीय राज्य का विशाल महल तैयार करे। ईश्वर के बुलाये गये पुरोहित के रूप मैं जानता हूँ कि आये दिन आप को कुछ भाइयो के अनौतिक आचरण के कारण बहुत कष्ट और अपमान झेलने पड़े हैं। प्रकाशना ग्रंथ कहता है, “मैं जानता हूँ आप महा संकट से निकल कर आये हैं।” (7.14) इस कठिन दौर और दुःख में मैं आप के साथ हूँ और ईश्वर को आप की विश्वसनीय सेवा के लिये धन्यवाद देता हूँ। इसी विश्वास के साथ कि आप येसु ख्रीस्त में बने रहें मैं आप सब के साथ अपने चिंतन की दो बातें साझा करना चाहता हूँ।

पहला है कृतज्ञता का भाव। स्त्री और परुष जो ईश्वर को प्यार करते हैं लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं और इस तरह पुरोहितों और धर्मसंघियों का बुलावा उनके समर्पण को अनंत संतोष में जीने हेतु हुआ है। खुशी हमारे धन्यवादी हृदय की उपज है। सचमुच हम सबों ने बहुतायत में पाया है, बहुत अधिक आशीष और कृपा हमें मिली है और हम इसमें आनंदित होते हैं, अतः कृपा के क्षणों को याद करना हमारे लिये उचित होगा। याद कीजिए, जब आप का बुलावा पहली बार हुआ था, आप किस स्थिति में थे, जो कृपा आप को मिली थी, और उससे भी बढ़कर आप की मुलाकात येसु ख्रीस्त से हुई थी। अपने दिल के उस आश्चर्यजनक मनोभाव को याद कीजिए जिसका अनुभव आप को येसु से मिलकर हुआ था। याददाश्त की कृपा माँगें जिससे आप कृतज्ञता के भाव में बढ़ सकें। शायद हम अपने से यह सवाल कर सकते हैं कि क्या हम मिली कृपाओं का हिसाब कर सकते हैं। 

दूसरा कठिन परिश्रम का भाव। कृतज्ञता से भरा हृदय स्वतः ही ईश्वर की सेवा हेतु अभिमुख हो जाता है जो हमारे कामों में व्यक्त होता है। जब हम यह अनुभव करते कि ईश्वर ने हमें कितना अधिक दिया है तो हमारा जीवन त्याग, ईश्वर और दूसरों की सेवा हेतु प्रेरित हो जाता है। 

फिर भी, यदि हम ईमानदार हैं तो हमें यह पता चल जाता है कि उदारतापूर्ण त्याग धूमिल हो जाता है। इसके कई कारण हो सकते हैं लेकिन ये दो आध्यात्मिक सांसारिकता के उदाहरण हैं जो हमारे त्याग, समर्पण और येसु से प्रथम मिलन के जोश को कम कर देती है।

हम प्रेरितिक कार्यो का मूल्यांकन हमारी दक्षता, संचालन और बाहरी सफलता  के हिसाब से करते हैं जो कि व्यावसायिक दुनिया की रीत है। ऐसी बात नहीं की ये आवश्यक नहीं हैं। हमें एक बड़ी जिम्मेदारी मिली है और ईश्वर के लोग हमसे सही तरीके से इसे पूरा करने की आशा करते हैं। हमारे कार्यों का सच्चा मूल्यांकन ईश्वरीय की नजरों में होता है। ईश्वर की नजरों में मूल्यांकन हेतु हमें समर्पित जीवन में सदा परिवर्तनशील, मैं कहूँगा हमें नम्र होने की जरूरत है। क्रूस हमें सफलता का एक दूसरा मापदण्ड देता है। हम बीज लगाते हैं और ईश्वर हमारी मेहनत का फल देता है और यदि हमारी मेहनत और काम फल नहीं लाते हैं तो हमें याद करने की जरूरत है कि हम येसु के अनुयायी हैं जिनका जीवन इस धरती पर मानवीय विचारों के अनुसार असफलता में समाप्त हुआ, क्रूस की हार हुई।

दूसरी मुसीबत हमारे लिये तब आती है जब हम अपने अवकाश के समय को लेकर ईर्ष्या करते और सोचते हैं कि दुनियावी सुविधा हमारे काम और सेवा को बेहतर बनायेंगे। यह तर्क हमारे बुलाहट में येसु से हमारे मिलन और जीवन परिवर्तन को रूखा बना देती है।

धीरे लेकिन निश्चय ही यह हमारे आत्मत्याग की भावना और मेहनत को कम करती है। आराम आवश्यक है जो हमें मोहलत और समृद्धि प्रदान करती है लेकिन हमें सीखने की आवश्यकता है कि हमें कैसे आराम करना है जो हमारी उदारता पूर्ण सेवा को प्रगाढ़ बनाता है। ग़रीबों के पास रहना, शरणार्थी, प्रवासी, बीमारों, अत्याचार के शिकार, बुज़ुर्गों और कैदियों से मिलना हमें दूसरे तरीके से आराम करना सिखलाते हैं जो की उदार ख्रीस्तीय की निशानी है।

कृतज्ञता और कठिन परिश्रम ये दो चीज़ें हमारे आध्यात्मिक जीवन के स्तंभ हैं जिसे मैंने आप के साथ बाँटना चाहा। मैं आपकी प्रार्थनाओं और प्रेरितिक कार्य हेतु त्याग के लिए धन्यवाद देता हूँ। इनमें से बहुत सारे कार्य केवल ईश्वर को पता हैं लेकिन ये कलीसिया के जीवन में अधिक फल उत्पन्न करते हैं। मैं अपनी कृतज्ञता और सम्मान भाव विशेष रूप से, अमरीका के धर्मबहनों के प्रति प्रकट करता हूँ, आप के बिना कलीसिया का क्या है? आप ताकत, जोश और उत्साह से भरे, वीर योद्धा की तरह सुसमाचार प्रचार हेतु अग्रिम पंक्ति में खड़ीं हैं। धर्मबहनों और माताओं मैं आप के प्रति स्नेह प्रकट करता हूँ और आप सब को हृदय की गहराई से धन्यवाद कहता हूँ।








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