2015-09-25 13:13:00

न्यू यॉर्क में सन्त पापा फ्राँसिस ने विश्व नेताओं को किया सम्बोधित


न्यू यॉर्क, शुक्रवार, 25 सितम्बर 2015 (सेदोक): संयुक्त राष्ट्र संघ के विश्व मंच से शुक्रवार को विश्व के एक अरब बीस लाख काथलिक धर्मानुयायियों के परमधर्मगुरु सन्त पापा फ्राँसिस ने विश्व के नेताओं को अपना सन्देश दिया।

सन्त पापा फ्राँसिस, गुरुवार को, वाशिंगटन में संयुक्त राज्य अमरीका की काँग्रेस को सम्बोधित करनेवाले काथलिक कलीसिया के प्रथम परमाध्यक्ष बने और शुक्रवार को वे विश्व के उन नेताओं को सम्बोधित कर रहे हैं जो संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की 70 वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में  निर्धनता निवारण एवं जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न समस्याओं का समाधान ढूँढ़ने के लिये विश्वव्यापी लक्ष्यों को निर्धारित करने अपनी आम सभा के लिये न्यू यॉर्क में एकत्र हुए हैं।    

शुक्रवार, 25 सितम्बर को पहली बार संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय में विश्व के अन्य देशों के राष्ट्रीय ध्वजों के साथ-साथ श्वेत और पीले रंग का वाटिकन ध्वज भी फहराया गया। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा ने वाटिकन एवं फिलीस्तीन के ध्वजों को फहराये जाने पर सहमति व्यक्त की थी। संयुक्त राष्ट्र संघ में ये दोनों ही राष्ट्र पर्यवेक्षक देश हैं।

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की 70 वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में आयोजित 70 वीं आम सभा में शामिल 154 देशों के राष्ट्राध्यक्षों एवं प्रतिनिधियों को सम्बोधित कर सन्त पापा फ्राँसिस ने संयुक्त राष्ट्र संघीय परिवार का हार्दिक अभिवादन किया और कहा कि वे अपने पूर्वाधिकारियों के पदचिन्हों पर चलते हुए आज संयुक्त राष्ट्र संघ की भेंट कर रहे थे। सन् 1965 में सन्त पापा पौल षष्टम ने, सन् 1979 एवं 1995 में सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने तथा सन् 2008 में सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने संयुक्त राष्ट्र संघीय महासभा को अपना सन्देश दिया था।

सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा, "सभी सन्त पापाओं ने संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यों की सराहना की है तथा शक्ति प्रयोग हेतु सभी प्राकृतिक सीमाओं पर काबू रख दूरियों और सीमान्तों को पार करने की तकनीकी क्षमता से चिह्नित, इतिहास के निर्णायक क्षणों में इस संगठन को उपयुक्त न्यायिक एवं राजनैतिक अस्त्र रूप में मान्यता दी है। हालांकि, राष्ट्रवादी या मिथ्या सार्वभौमिकतावादी विचाधाराएं रखनेवालों के हाथों में तकनीकी क्षमता, जबरदस्त अत्याचार करने में भी सक्षम है। इस पृष्ठभूमि में मैं, काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्षों द्वारा अतीत में प्रकाशित इस संगठन तथा इसकी गतिविधियों के महत्व की पुष्टि करता हूँ।"  

मानवाधिकार से लेकर संघर्षों के समाधान, युद्ध विराम, शांति की स्थापना तथा पुनर्मिलन के क्षेत्र में अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर नियमों एवं कानूनों को पारित करने के लिये सन्त पापा ने संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यों की सराहना की और कहा कि ये सभी उपलब्धियाँ, "अनर्गल महत्वाकांक्षा और स्वार्थ की वजह से उत्पन्न अव्यवस्था के अन्धकार को दूर करने में सहायक रोशनी का काम करती हैं।"

विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में संयुक्त राष्ट्र संघ के शांति मिशन के दौरान मारे गये लोगों के प्रति सन्त पापा ने श्रद्धान्जलि अर्पित की तथा विश्व में समानता को प्रोत्साहन देने के का आह्वान किया और कहा कि शांति स्थापना के लिये सभी लोगों को समान अधिकार मिलना आवश्यक है। उन्होंने कहा, "वैश्विक वित्तीय एजेन्सियों को विकासशील एवं निर्धन राष्ट्रों के धारणीय विकास पर गम्भीरतापूर्वक विचार करना चाहिये तथा इस बात का आश्वासन देना चाहिये कि विकास के नाम पर बनाई गई योजनाएँ प्रगति और विकास को प्रोत्साहन देने के बजाय ऋण भुगतान के प्रताड़ित निकाय में परिणत न हो जायें। 

पर्यावरण की सुरक्षा का आह्वान कर सन्त पापा ने कहा, "इस तथ्य की पुनरावृत्ति की जाना अनिवार्य है कि पर्यावरण के अधिकार का अस्तित्व है। हम पर्यावरण के साथ सहभागिता में जीते हैं क्योंकि पर्यावरण स्वतः नैतिक सीमाओं में बँधा है जिसका मानव गतिविधियों द्वारा सम्मान किया जाना चाहिये।" अपने विश्व पत्र "लाओदातो सी" को उद्धृत कर सन्त पापा ने कहा कि मनुष्य का शरीर भौतिक, रासायनिक एवं जैविक तत्वों से बना है और वह तब ही जी सकता और विकसित हो सकता है जब पर्यावरणीय वातावरण उसके अनुकूल हो।" 

यूक्रेन, सिरिया, ईराक, लिबिया और दक्षिणी सूडान आदि देशों में बहुत लम्बे समय से जारी युद्ध एवं हिंसा की स्थिति के प्रति सन्त पापा ने ध्यान आकर्षित कराया और कहा कि इस वजह से लाखों लोग अपने घरों से पलायन करने के मजबूर हुए हैं। युद्धों और संघर्षों को रोकने के लिये उन्होंने अस्त्र व्यापार, मानव तस्करी, बाल शोषण एवं भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ठोस कदम उठाये जाने का भी अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि ऐसा कर ही मानव के अखण्ड विकास का सपना पूरा किया जा सकेगा।       








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