2015-09-24 16:17:00

वाशिंगटन में संत पापा का अमरीका के धर्माध्यक्षों के नाम संदेश


वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार,24 सितम्बर 2015, (सेदोक) संयुक्त राष्ट्र अमरीका की प्रेरितिक यात्रा में गये संत पापा ने वाशिंगटन के संत मंत्ती महागिरजाघर में अमरीका के धर्माध्यक्षों को संबोधित करते हुए कहा, मेरे प्रिय बिशप भाइयों, मुझे खुशी है कि मेरी प्रेरितिक यात्रा के दौरान हम सब एक साथ मिल सके। कार्डिनल वारेल और महाधर्माध्यक्ष कुटज़ आप के सुमधुर वचनों के लिए धन्यवाद।

संत पापा का हृदय आप सभों को आलिंगन करता है। मेरे इस प्यार भरे आलिंगन से कोई भी वंचित न रहे जिसे ईश्वर के प्यार और प्रसार का कार्यभार संत पेत्रुस के अधिकारी के रूप में मिला है। हमारे स्वर में यही गुंजित हो कि “येसु हमारे मुक्तिदाता हैं।” जब कभी आप के हाथ ईश्वरीय प्रेम से प्रेरित हो कर दूसरों की भलाई हेतु उठते हैं तो याद कीजिए मैं सदा आप के साथ हूँ। मेरे हाथ जिसमे झुरियाँ आ गई हैं लेकिन ये आप की सहायता और प्रोत्साहन हेतु सदा आप के साथ हैं।

आप के लिये मेरा सबसे पहला शब्द ईश्वर को धन्यवाद आप के सुसमाचार प्रचार के लिये जो आप की ज़मीं और पूरे विश्व में अभूतपूर्व विकास किया है। संत पापा और परमधर्मपीठ से जुड़े रहने और उदारतापूर्वक सुसमाचार प्रचार के लिए मैं आप का शुक्रगुजार हूँ। प्रेरितिक कामों में अमेरीका की कलीसिया और आपकी सेवा की सरहना और प्रशंसा मैं हृदय से करता हूँ। मैं आप की उन चुनौतियों और मुश्किल भरे क्षणों से भी अवगत हूँ जिन्हें आप को आये दिन उठाने पड़े हैं।

मैं आप से अपनी वार्ता रोम के धर्माध्यक्षों की तरह करता हूँ जिनका बुलावा प्रेम में कलीसिया की सेवा और सुसमाचार प्रचार हेतु हुआ है। मैं अपनी योजना बतलाने नहीं आया, न निर्णय देने और न ही व्याख्यान देने आया हूँ। मैं उस वाणी में पूर्ण विश्वास करता हूँ जो सभी चीजों को सिखलाती है। अतः प्रेम में स्वतंत्र, भाइयों के समक्ष मुझे एक भाई-सा बोलने की अनुमति दीजिए। मैं अपनी कुछ सोच आप के साथ साझा करने की सोचता हूँ जो हमारे प्रेरितिक कार्य में सहायक होंगे।        

हम सब कलीसिया के चरवाहे हैं जिन्हें ईश्वर ने अपनी रेवड़ की देखभाल हेतु नियुक्त किया है। यह हमारी सबसे बड़ी खुशी है और इस खुशी को हमें बनाये रखना है।

हमारी पहचान का केन्द्र बिन्दु हमारी प्रार्थना है जिसके द्वारा हम अपनी रेवड़ की देख-रेख करते हैं। यह प्रार्थना किसी तरह की प्रार्थना नहीं बल्कि येसु के साथ जुड़े रहने वाली प्रार्थना होनी चाहिए। जहाँ वे हम से सवाल करते हैं, “कौन है मेरी माता? कौन हैं मेरे भाई? जिसे हम शांत भाव के कह सकते हैं, “प्रभु ये है आप की माता और ये हैं आप के भाई। इन्हें मैं आप को सुपुर्द करता हूँ जिन्हें आप ने मुझे दिया है।”

यह धर्म सद्धांतों की शिक्षा नहीं वरन येसु खीस्त के पुनरुत्थान की घोषणा है। हमारे प्रेरितिक कार्य और शिक्षा हमारे जीवन की बातें बयाँ करती हैं। आप की रेवड़ सदैव आप के मुख से प्रोत्साहन और प्रशंसा के शब्द सुनें।

चरवाहे अपनी रेवड़ की देख-रेख ऊँचे स्थानों से करते हैं हमें क्रुस की ऊँचाई तक ऊपर उठकर और अपना हृदय खोलकर उनकी देख-रेख करनी है। वे अपनी नजरें नीचे नहीं करते लेकिन दूर क्षितिज तक ले जाते हैं यह चरवाहों के लिये जरूरी है क्योंकि वे दूरदर्शी नेता और संचालक हैं।

मैं जानता हूँ कि आप बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करते और ऐसे समय आप को पीछे लौटने और कठिनाइयों का करारा जवाब देने सा लगता है लेकिन फिर भी हम संस्कृति को बढ़ावा देने वाले हैं। हम ईश्वर के जीवित संस्कार हैं जो अपने में ईश्वर के धनों और अपनी गरीबी को आलिंगन करते हैं।

अतः वार्ता हमारे कार्य शैली का भाग होना है। वार्ता अपने आप से, पुरोहितों से लोकधर्मियों से, परिवारों से और समाज से। आप बिना भय के वार्ता करें। वार्ता करने में अपने “निर्गमन” से न डरे जो वास्तविक वार्ता हेतु नितांत आवश्यक है। वार्ता में नम्रता का ध्यान रखें क्योंकि कठोरता और विभाजक भाषा हमारे लिये नहीं सुहाते।

येसु के वचनों को अपने कानों में सदा गूंजने दें, “मेरा जुआ अपने ऊपर ले लो और मुझ से सीखों,... ” येसु का जुआ प्यार का जुआ है जो हमें ताजगी प्रदान करता है।

हमें येसु से नम्रता और दीनता सीखने की जरूरत है जिससे हम कलीसिया और विश्वसियों का नेतृत्व कर सकें।    

धर्माध्यक्षों के रूप में हमारा कार्य एकता स्थापित करना है। हमें इसकी देखभाल और रक्षा करनी है। इसे बढ़ावा देना और इसका साक्ष्य देना है। एकता की सेवा इस देश के लिए अति आवश्यक है विकासशील देश होने के नाते इसका प्रचार और प्रसार सारी दुनिया में होता है।

आगमी करुणा और दया का वर्ष विभाजनों के दूर करते हुए आप के लिये एकता, क्षमा और ईश्वरीय प्रेम लेकर आये ।

मैं आप को चुनौतियों का समाना करने हेतु प्रोत्साहित करता हूँ क्योंकि भविष्य की स्वतंत्र और समाज में मानवीय सम्मान चुनौतियों के सामना करने में निर्भर करते हैं।

दुनिया की सारी तकलीफ़ें और मुसीबतें हमारे लिए ईश्वरीय उपहार के समान आते हैं जो हमें यह बतलाता है कि हम दुनिया के मालिक नहीं वरन् इसके प्रबंधक हैं।

कलीसिया के काम जिसे हमने येसु से पाया है हमें प्यार के सृजनात्मक उपयोग और नम्रता में सच्चाई के साथ काम करने का आह्वान करता है। इस संदर्भ में कलीसिया, अमरीका में एक नम्र आवास बने जो प्रेम में सब को अपनी ओर आकर्षित करे। हमें येसु की आवाज को पहचानने की जरूरत है जैसे कि शिष्यों ने उन्हें तेवेरियस झील के किनारे पहचाना। 

अपने चिंतन के अंत में मैं दो तथ्यों की सिफारिश करुंगा जो मेरे दिल के करीब हैं, पहली धर्माध्यक्षयों के रूप में पिता तुल्य व्यवहार आप अपने पुरोहितों के साथ करें। आप उनकी चिंता करें और उनकी सुध लें जिससे वे कलीसिया की सेवा अच्छी तरह कर सकें।

 दूसरी प्रवासियों के लिए, आप मुझे क्षमा करें यदि मैं अपने मुद्दे की बात कहा रहा हूँ तो, अमरीका के किसी संस्था ने प्रवासियों की उतनी मदद नहीं की जितना ख्रीस्तीय समुदाय, आप ने किया है। आप उनका अपने यहाँ स्वागत करने से न डरे। मैं निश्चितता के साथ कहता हूँ जिस प्रकार अतीत में हुआ है ये लोग अमरीका और कलीसिया की सेवा करेंगे। 

(Fr. Dilip Sanjay, SJ)








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