2015-09-20 16:52:00

अपने कमजोर भाई बहनों की सेवा करें


हवाना, रविवार, 20 सितम्बर 2015 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने रविवार 20 सितम्बर को क्यूबा के हवाना स्थित रेवोल्यूशन पार्क में पावन ख्रीस्तयाग अर्पित किया।

संत पापा ने सुसमाचार पाठ पर चिंतन किया जहाँ येसु अपने शिष्यों से पूछते हैं कि वे रास्ते पर किस विषय पर बातें कर रहे थे। उन्होंने कहा कि वही प्रश्न आज वे हमसे पूछते हैं, ″प्रतिदिन तुम किस विषय पर बातें करते हो?″ तुम्हारी आकांक्षाएँ क्या हैं? सुसमाचार हमें बतलाता है कि शिष्यों ने येसु के सवाल का उत्तर नहीं दिया क्योंकि वे रास्ते पर बड़ा कौन है उस विषय पर बहस कर रहे थे। वे शर्म के कारण इस बात को येसु को नहीं बतला पाये। संत पापा ने कहा कि हम भी इस प्रकार के बहस में पड़ सकते हैं कि हमारे बीच कौन सबसे महत्वपूर्ण है।

येसु अपने प्रश्न पर दबाव नहीं डालते और न ही उनके उत्तर को उत्सुकता से जानने का प्रयास करते हैं किन्तु यह सवाल न केवल शिष्यों के मन को वरन हृदय को भी प्रभावित करता है।

कौन सबसे बड़ा है? संत पापा ने कहा कि यह जीवन भर का सवाल है जिसका उत्तर विभिन्न परिस्थितियों में हमें देना पड़ता है। हम इस प्रश्न से भाग नहीं सकते क्योंकि यह हमारे हृदय में अंकित है। संत पापा ने कहा कि परिवार में असर बच्चों से पूछा जाता है कि वे किसको अधिक प्यार करते हैं यह सवाल येसु द्वारा शिष्यों को पूछे गये सवाल की तरह ही है। संत पापा ने कहा किन्तु क्या यह एक खेल मात्र है जो हम बच्चों के साथ खेलते हैं। इतिहास इस बात का साक्षी है कि हम इस सवाल का उत्तर देते हैं।

येसु लोगों के सवालों को जानते हैं वे मानव स्वभाव से भी परिचित हैं वे मानव हृदय के टेढ़ेपन से भी अवगत हैं। एक भले गुरु के रूप में वे हमेशा लोगों को प्रोत्साहन एवं समर्थन देना चाहते हैं। वे हमारी चाह एवं आकांक्षा को खुद लेते एवं हमें एक नयी क्षितिज प्रदान करते हैं।

संत पापा ने कहा कि वास्तव में येसु हमारे सम्मुख प्रेम की भावना को प्रस्तुत करते हैं। एक ऐसी मानसिकता एवं एक ऐसी जीवन पद्धति को जिसे सभी जी सकें क्योंकि यह सभी के लिए है।

बड़ापन की हर भावना से दूर येसु एक ऐसे क्षितिज की ओर संकेत करते हैं जो सिर्फ कुछ ही सत्ताधारी लोगों के लिए न सिमट कर, सभी के लिए हो अथार्त येसु हमारे दैनिक जीवन की ओर इशारा करते हैं।

हम में से सबसे बड़ा कौन है? येसु इस सवाल का उत्तर सीधे रूप से देते हैं, ″जो पहला होना चाहता है वह सबसे पिछला और सब का सेवक बने। जो महान बनना चाहता है वह सेवा करे न कि सेवा कराये। येसु यहाँ शिष्यों की मानसिकता को पलट देते हैं यह कहते हुए कि पड़ोसियों के प्रति ठोस समर्पण में ही जीवन की प्रमाणिकता है।

सेवा का अर्थ है सजग होना, लोगों की आवश्यकता में उनकी मदद करना। अपने परिवार, समाज तथा लोगों को उनकी दुर्बलता में सहायता देना। दुःखी, कमजोर एवं मायूस चेहरे को देख पाना। ये ही वे लोग हैं येसु जिनकी रक्षा, सहायता और सेवा करने का आदेश हमें देते हैं। एक ख्रीस्तीय होने के नाते हमें अपने भाई बहनों की प्रतिष्ठा को बढ़ावा देना चाहिए उसके लिए संघर्ष करना चाहिए। यही कारण है कि ख्रीस्तीय अपनी इच्छाओं, आकांक्षाओं तथा सत्ता का परित्याग कर कमजोर लोगों की मदद करते हैं।

संत पापा ने सेवा में स्वार्थ से बचने की सलाह दी जिसमें हम सिर्फ अपने लोगों की सेवा करने के प्रलोभन में पड़ जाते हैं क्योंकि इस प्रकार की सेवा बहिष्कार की भावना को जन्म देती है।

संत पापा ने ख्रीस्तीय बुलाहट का स्मरण दिलाते हुए कहा कि हम सब ख्रीस्तीय होने के कारण सच्ची सेवा देने के लिए बुलाये गये हैं। हम भेदभाव रखे बिना प्रेम से लोगों की सेवा करें। संत पापा ने कहा कि हम दूसरों का न्याय करने से बचें। उन्होंने इस बात को भी स्पष्ट किया कि प्रेम से लोगों की सेवा करना उनके गुलाम बनना नहीं है बल्कि अपने भाई-बहनों को केंद्र में रखना है। सेवा एक विचारधारा नहीं हो सकती क्योंकि हम लोगों की सेवा करते हैं विचारों की नहीं।

संत पापा ने क्यूबा वासियों को सम्बोधित कर कहा कि वे मित्रता एवं सुन्दर चीजों को पंसद करने वाले लोग हैं। उनकी अपनी मुश्किलें हैं किन्तु वे उदारता पूर्वक आशा के साथ आगे बढ़ना जानते हैं क्योंकि वे महान बनने के लिए बुलाये गये हैं। संत पापा ने उन्हें परामर्श दिया इस बुलाहट को ध्यान में रखते हुए ईश्वर के वरदानों को बनाये रखें, अपने कमजोर भाई बहनों की सेवा करें। 








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