2015-09-18 08:08:00

प्रेरक मोतीः कुपरतीनो के सन्त जोसफ (1603-1663)


वाटिकन सिटी, 18 सितम्बर सन् 2014:

विमान चालकों के संरक्षक सन्त, कुपरतीनो के सन्त जोसफ का जन्म, 1603 ई. में, इटली के नेपल्स राज्य के नार्दों धर्मप्रान्त के कुपरतीनो में हुआ था। बाल्यकाल एवं किशोरावस्था सादगी और मासूमियत में व्यतीत करने के बाद उन्होंने सन्त फ्राँसिस को समर्पित मठ में प्रवेश किया। पुरोहिताभिषेक के बाद वे अकिंचनता, वैराग्य एवं आज्ञाकारिता में जीवन व्यतीत करने लगे थे। पवित्र कुँवारी मरियम के प्रति उनकी भक्ति प्रगाढ़ थी जिसका प्रसार उन्होंने सभी वर्गों के लोगों में किया।   

कुपरतीन के जोसफ को उनकी माता एक उपद्रवी मानती थी तथा उनके साथ कठोर व्यवहार किया करती थीं जिसके फलस्वरूप जोसफ अनमने और खोये-खोये से रहते थे। उनका मुँह खुला रहता था तथा वे बिना वजह यहाँ वहाँ घूमा करते थे। इसके अलावा, उन्हें बहुत जल्द गुस्सा आ जाता था, वे चिड़चिड़े स्वाभाव वाले हो गये थे इसलिये लोगों में बिलकुल भी लोकप्रिय नहीं थे। उन्होंने जूते बनाना सीखना चाहा किन्तु इसमें भी वे असफल ही रहे। उन्होंने फ्राँसिसकन धर्मसमाजी बनना चाहा किन्तु मठ में उन्हें प्रवेश नहीं दिया गया। तदोपरान्त, उन्होंने कैपुचिन धर्मसमाजियों के मठ में प्रवेश पा लिया किन्तु वहाँ से भी उन्हें, अक्षम बताकर, आठ माहों के बाद निकाल दिया गया। उनके हाथों से भोजन की थालियाँ ज़मीन पर गिर जाती थीं तथा दिये गये निर्देशों को वे भूल जाते थे।

18 वर्ष की आयु में जोसफ फिर अपने घर लौट आये। उनकी वापसी से उनकी माँ को प्रसन्नता नहीं हुई तथा उन्होंने उन्हें फ्राँसिसकन मठ में नौकरी करने के लिये भेज दिया। मठ में जोसफ को घोड़ों की देखरेख का काम दिया गया। जोसफ के जीवन में परिवर्तन यहीं से शुरु हुआ। वे विनम्र और मृदु भाषी हो गये, सावधानीपूर्वक अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह करने लगे तथा घोड़ों का देखभाल में सफल हुए। इसके अलावा, उन्होंने पश्चाताप कर अपने हृदय को शुद्ध किया तथा प्रार्थना में समय व्यतीत करने लगे। उन्होंने प्रभु की बुलाहट सुनी तथा प्राँसिसकन धर्मसमाजी मठ में पुनः प्रवेश हेतु कृतसंकल्प हो गये। पुरोहिताभिषेक के लिये उन्होंने अध्ययन आरम्भ कर दिया। कड़ी मेहनत के बाद उनका पुरोहिताभिषेक सम्भव हुआ।

जोसफ के पुरोहिताभिषेक के बाद, प्रभु ईश्वर ने उनके माध्यम से, कई चमत्कार सम्पादित किये। सत्तर से अधिक बार लोगों ने उन्हें ख्रीस्तयाग के दौरान ज़मीन से ऊपर की ओर उठते देखा था।  प्रायः वे, सच्चिदानन्द से परिपूर्ण होकर, भाव समाधि में चले जाया करते थे, मानों उनके इर्द गिर्द कोई नहीं था और वे केवल ईश्वर से बातें कर रहे थे। एक बार जब गिरजाघर में भजनमण्डली द्वारा क्रिसमस के गीत गाये जा रहे थे तब कुपरतीनो के जोसफ भावविभोर हो उठे तथा परमानन्द में इतने लीन हो गये कि अपने आप ही हवा में ऊँचे उठ गये। वे पवित्रता की सीढ़ी चढ़ते गये तथा अपना अधिकांश समय मनन चिन्तन में व्यतीत करने लगे। वे कहा करते थे कि इस विश्व की सब मुसीबतें, बच्चों द्वारा पॉपगन या तुफ़गों से लड़ा जानेवाला, खेल मात्र है।

अपनी चंगाई प्रार्थनाओं एवं चमत्कारों के लिये जोसफ इतने विख्यात हो गये थे कि धर्मसमाज को उन्हें छिपाना पड़ा। अपने गोपनीय जीवन से भी वे सन्तुष्ट थे क्योंकि एकान्त में प्रभु ईश्वर के साथ समय बिता सकते थे। अपने जीवन काल में कई बार उन्हें शैतानी प्रलोभनों का सामना करना पड़ा किन्तु अपने अटल विश्वास एवं सतत् प्रार्थना द्वारा वे शैतान की कुयोजनाओं को विफल करने में सक्षम बने। 18 सितम्बर, सन् 1663 ई. को जोसफ कुपरतीनो का निधन हो गया। सन् 1767 ई. में उन्हें सन्त घोषित किया गया था। फ्राँसिसकन धर्मसमाजी, विमान चालकों के संरक्षक, सन्त जोसफ कुपरतीनो का पर्व 18 सितम्बर को मनाया जाता है।    

चिन्तनः प्रभु ईश्वर को पाने के लिये बड़ी बड़ी उपलब्धियों की आवश्यकता नहीं बल्कि शुद्ध और सच्चे मन से की गई प्रार्थना की ज़रूरत है।








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