2015-09-17 15:28:00

सड़क पर जीवन यापन करने वाले बच्चे एवं महिलाएँ


वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 17 सितम्बर 2015 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार 17 सितम्बर को, वाटिकन स्थित क्लेमेंटीन सभागार में सड़कों पर जीवन यापन करने वाले लोगों की प्रेरिताई से संलग्न अंतरराष्ट्रीय विचार-गोष्ठी के प्रतिभागियों से मुलाकात की।

 

आप्रवासियों की प्रेरिताई के लिए बनी परमधर्मपीठीय समिति के तत्वाधान में आयोजित संगोष्ठी को सम्बोधित कर संत पापा ने कहा, ″इन दिनों आपने सड़क पर जीवन यापन करने वाले बच्चों, महिलाओं एवं उनके परिवारों की स्थिति में सुधार लाने हेतु कार्य योजना बनाने के लिए अध्ययन तथा चिंतन किया है। इन बच्चों एवं महिलाओं की मर्यादा को बढ़ाने हेतु प्रोत्साहन देने के प्रति आपके समर्पण की मैं सराहना करता हूँ तथा इस कार्य में साहस एवं उत्साह के साथ डटे रहने का प्रोत्साहन देता हूँ।″

उन्होंने कहा कि आप जो दुखद परिस्थितियाँ देखते हैं वे उदासीनता, ग़रीबी, पारिवारिक एवं सामाजिक हिंसा तथा मानव तस्करी के परिणाम हैं। सड़क पर जीवन यापन करने वाले बच्चे एवं महिलाएँ कोई व्यापार की वस्तुएँ नहीं हैं किन्तु ईश्वर प्रदत्त पहचान के साथ, वे भी मानव प्राणी है।

संत पापा ने सड़क पर जीवन यापन करने वाले बच्चों की दयनीय स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कोई भी बच्चा सड़क पर जीवन यापन करने के लिए खुद नहीं चुनता किन्तु आधुनिक युग की बुराईयाँ उन्हें इस प्रकार का जीवन जीने के लिए मजबूर कर देती हैं। उनका कोई घर नहीं होता जहाँ से वे शिक्षा तथा स्वास्थ्य की सुविधा प्राप्त कर सकें। संत पापा उन आपराधिक संगठनों की कड़ी निंदा की जो बच्चों सड़कों पर जीने के लिए मज़बूर कर देते हैं उन्होंने कहा कि उन बच्चों की दुहाई ईश्वर तक पहुँचती है जिन्होंने उन्हें अपने प्रतिरूप में सृष्ट किया है।

संत पापा ने अत्यन्त खुद के साथ वैश्य वृति में फंसी लड़कियों तथा महिलाओं की याद की और कहा कि वे इतने मज़बूर हैं कि जीविका अर्जित करने के लिए उन्हें अपने शरीर का व्यापार करना पड़ता है। अपराधिक संगठनों द्वारा उन्हें शोषण का शिकार होना पड़ता है। उच्च संस्कृति तथा विकास हासिल करने के बावजूद यह हमारे समाज की अत्यन्त शर्मनाक सच्चाई है।

     

संत पापा ने सभी प्रतिभागियों को प्रोत्साहन देते हुए कहा कि वे इन कठिनाईयों एवं चुनौतियों से हताश न हों। ख्रीस्त पर विश्वास द्वारा सुदृढ़ हों जिन्होंने क्रूस पर मर कर पिता के प्रेम को प्रकट किया। कलीसिया ऐसी परिस्थिति में चुप नहीं रह सकती और न ही संस्थाएँ अपनी आँखें बंद रख सकते हैं। उन लोगों के प्रति ईश्वर की दयालुता एवं कोमलता प्रदर्शित करने में हम पीछे न हटें क्योंकि करुणा वह महान कार्य है जिसके द्वारा ईश्वर हम से मुलाकात करने आते हैं।








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