2015-09-16 15:19:00

विवाह और परिवार विषय पर अन्तिम चिन्तन


वाटिकन सिटी, बुधवार 16 सितम्बर 2015, (सेदोक, वी. आर.) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर, संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में  जमा हुए हजारों तीर्थयात्रियों को इतालवी भाषा में सम्बोधित करते हुए कहा-

अति प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात,

फिलादेलफिया के विश्व परिवार सम्मेलन तथा रोम में आयोजित विश्व धर्माध्यक्षीय धर्मसभा जैसी सुन्दर अर्थगर्भित घटनाओं की पूर्व सन्धया हमारा यह चिन्तन विवाह और परिवार विषय पर अन्तिम चिन्तन है। ये दोनों घटनाएँ विश्वव्यापी हैं जो ख्रीस्तीय धर्म के सार्वभौमिक आयाम से मेल खाती है और साथ ही परिवार जैसी मूलभूत इकाई की वैश्विकता को भी दर्शाती है।

आज की सभ्यता का पारगमन आर्थिक और तकनीकिकरण से प्रभावित जान पड़ता है। धन कमाने के मकसद में नैतिकता का पतन हुआ है और संचार माध्यमों ने इसका समर्थन किया है।

इस परिदृश्य में पुरूष और स्त्री के बीच एक नई संन्धि केवल आवश्यक ही नहीं अपितु धन के उपनिवेशीकरण से लोगों को ऊपर उठाने के लिये  रणनीति भी बन जाती है। इस संधि को पुनः राजनीति, अर्थव्यवस्था तथा नागरिक  सहअस्तित्व को को दिशा दिखानी होगी। यह संधि धरती पर आवास, जीवन की भावनाओं के प्रसारण तथा स्मृति एवं आशा के बीच विद्यमान संबंध का फैसला करती है।

स्त्री एवं पुरूष के बीच विद्यमान वैवाहिक एवं पारिवारिक संबंध इस संधि का प्रजनक व्याकरण है, हम कह सकते हे कि यह “सोने की गाँठ”  है। ईश्वर की सृष्टि की प्रज्ञा से विश्वास सिंचित होता है जिन्होंने परिवार को केवल उसके अन्तरंग संबंध की देखभाल का ही कार्य नहीं सौंपा अपितु सम्पूर्ण विश्व को घरेलु बनाने का कार्यभार सौंपा है। परिवार ही विश्व संस्कृति का मूल है जा हमें मुक्त करता, जो विश्व को जोखिम में डालने वाले आक्रमणों, विनाशों, धन और विचारधाराओं को उपनिवेशीकरणों से बचता है। परिवार ही सुरक्षा का आधार है।

ईश्वरीय सृष्टि दार्शनिक नहीं है, यह विश्वास की क्षितिज है। ईश्वरीय सृष्टि में सबके लिये एक योजना और मुक्ति है। सृष्टि स्त्री और पुरूष को सुपुर्द की गई है और जो कुछ उनके बीच होता है वह सृष्टि को प्रभावित करता है। सबके लिये उसकी आशीष आती है लेकिन महत्वाकांक्षी जो इसे स्वीकार नहीं करता सभी चीजों को बिगड़ देता है, जिसे हम आदि पाप की संज्ञा देते हैं और हम सब इस बीमारी के साथ दुनिया में आते हैं।

फिर भी हम शापित नहीं हैं न ही हमें यूँ ही छोड़ा दिया गया है। मानव के लिए ईश्वरीय प्रेम की कहानी पहले ही असंख्य शब्दों में लिखी गई है। “मैं तेरे और स्त्री के बीच, तेरे वंश और उसके वंश में शत्रुता उत्पन्न करुंगा। (उत्पति-3.15) ये वाक्य ईश्वर ने धूर्त साँप के लिये कहा। इन वाक्यों के द्वारा ईश्वर नारी को बुराई से हमारी रक्षा करने हेतु चुनते हैं। इसका अर्थ यह है की स्त्री को एक रहस्य और विशेष कृपा मिली हैं जिससे वह अपने बच्चों की रक्षा बुराई से कर सके। प्रकाशना ग्रंथ में स्त्री अपने बच्चे को साँप से बचाने हेतु भागती है, और ईश्वर उसकी रक्षा करते हैं। (प्रका.12.6)     
 
स्त्री और पुरुष हेतु ईश्वरीय कृपा और सुरक्षा कभी कम नहीं होती। यह न भूलिये। बाईबल की सांकेतिक भाषा हमें बतलाती है कि अदन की वाटिका से निकाले जाने के पूर्व, ईश्वर ने आदम और उसकी स्त्री के लिये चमड़े के वस्त्रों की व्यवस्था की। (उत्पति. 3.12) इस मार्मिक व्यवहार का अर्थ यही है कि पाप की दर्द भरी स्थिति में भी ईश्वर हमें हमारी नग्नता और हमारे भाग्य पर नहीं छोड़ते। ईश्वरीय दयालुता और हमारी इस चिंता को हम नाजरेत के येसु में देखते हैं, ईश्वर के पुत्र हमारे लिये मानव बने और उन्होंने कुंवारी से जन्म लिया। (गला.4.4) संत पौलुस पुनः कहते हैं जब हम पापी थे, ख्रीस्त हमारे लिये मर गये। (रो. 5.8)

ईश्वरीय प्रतिज्ञा मानवीय जीवन की शुरूआत और अंत है यदि हमारा विश्वास पर्याप्त है तो हमारे परिवार ईश्वर की आशिष को संसार में पहचानेंगे।

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की तथा सबों का अभिवादन करते हुए कहा, मैं अँग्रेज़ी बोलने वाले आगंतुकों का, आप सब अतिथियों का जो इस आमदर्शन में भाग ले रहें हैं ग्रेट ब्रिटेन, आयरलैंड, डेनमार्क, नॉर्वे, माल्टा, क्रोएशिया, केन्या, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, मलेशिया, फिलीपींस, कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिकासे आये आप सब, तीर्थयात्रियों का मैं स्वागत करता हूँ। आपको और आपके परिवार के सब प्रियजनों को प्रभु येसु अपनी खुशी और शांति से भर दें। ईश्वर आप सब का भला करे!

इतना कहने के बाद संत पापा ने सब को अपना प्रेरितिक आर्शीवाद दिया।








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