2015-09-08 14:00:00

पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय (भजन 68)


श्रोताओ, पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। ............

"जब सर्वोच्च प्रभु ने वहाँ राजाओं को तितर-बितर किया, तब सलमोन पर्वत पर हिमपात हो रहा था। बाशान पर्वत बहुत ऊँचा है, बाशान पर्वत के अनेक शिखर हैं। ऊँचे पर्वतो! तुम उस पर्वत से ईर्ष्या क्यों करते हो? प्रभु ने उसे अपने निवास के लिए चुना है, जहाँ वह सदा-सर्वदा विराजमान होगा। ईश्वर के लाखों रथ हैं, प्रभु सीनई से अपने मन्दिर आया है। तू ऊँचाई पर चढ़ा और बन्दियों को अपने साथ ले गया। तूने मनुष्यों और विरोधियों को भी शुल्क-स्वरूप ग्रहण किया, जिससे तू, प्रभु-ईश्वर वहाँ निवास करे। हम प्रतिदिन प्रभु को धन्यवाद दिया करें। ईश्वर हमें संभालता और विजय दिलाता है।"

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 68 वें भजन के 15 से लेकर 20 तक के पद जिनके पाठ से विगत सप्ताह हमने पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम समाप्त किया था। स्तोत्र ग्रन्थ के 68 वें भजन का रचयिता इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराता है कि जो लोग ईश्वर से तथा अपने भाई और पड़ोसी से प्रेम करते हैं बदले में वे भी प्रेम पायेंगे और आनन्द से भर उठेंगे। इस भजन में ईश्वर को शूरवीर योद्धा के सदृश बताया गया है जो दीन हीन की सुधि लेते हैं। इसमें यह स्मरण दिलाया गया है कि ईश्वर ने अपने मुख से शब्द का उच्चार कर सृष्टि की रचना की और अब वे ही इसका पालन पोषण करते तथा मानव का उद्धार करते हैं। ईश्वर ही सृष्टिकर्त्ता, राखनहारा और त्राणकर्त्ता हैं जिन्हें सब समय धन्यवाद अज्ञापित किया जाना चाहिये। इस भजन के 4 से लेकर 6 तक के पदों में लिखा हैः "ईश्वर! राष्ट्र तुझे धन्यवाद दें। सभी राष्ट्र मिल कर तुझे धन्यवाद दें। सभी राष्ट्र उल्लसित हो कर आनन्द मनायें क्योंकि तू न्यायपूर्वक संसार का शासन करता और पृथ्वी पर राष्ट्रों का पथप्रदर्शन करता है।  ईश्वर! राष्ट्र तुझे धन्यवाद दें। सभी राष्ट्र मिल कर तुझे धन्यवाद दें।" और इसी प्रकार 15 से लेकर 20 तक के पदों में भी प्रभु के महान कार्यों के लिये उनके प्रति आभार व्यक्त करने का आग्रह किया गया है।     

भजनकार कहता हैः "ऊँचे पर्वतो! तुम उस पर्वत से ईर्ष्या क्यों करते हो? प्रभु ने उसे अपने निवास के लिए चुना है, जहाँ वह सदा-सर्वदा विराजमान होगा। ईश्वर के लाखों रथ हैं, प्रभु सीनई से अपने मन्दिर आया है।" और फिर, "हम प्रतिदिन प्रभु को धन्यवाद दिया करें। ईश्वर हमें संभालता और विजय दिलाता है।"

श्रोताओ, अनेक ऊँची पहाड़ियों सहित प्राचीन काल का बाशान पर्वत सम्भवतः आज का गोलान हाईट्स के नाम से विख्यात पर्वत माला है जो सिनई पर्वत से बहुत ऊँचा था। वस्तुतः, भजनकार हमसे कहता है कि प्रभु ने सिनई पर्वत को चुना इसलिये उससे उससे ऊँचे पर्वतों को ईर्ष्या नहीं करना चाहिये। अभिप्राय स्पष्ट है किसी से ईर्ष्या मत करो, यदि किसी को उसके भले कार्यों के लिये पुरस्कार मिलता है तो आप उससे ईर्ष्या क्यों करते हैं, ईर्ष्या करने के बजाय आप भी भले कार्यों में लगे, यदि ईश्वर की किसी पर कृपा रही है और उसका जीवन सुखी है तो उससे ईर्ष्या मत कीजिये अपितु ईश कृपा को पाने लिये निष्ठापूर्वक अपने दायित्वों का निर्वाह करें।     

आगे 68 वें भजन के 21 से लेकर 24 तक के पदों में हम पढ़ते हैं: "ईश्वर हमारा उद्धार करता है। प्रभु ईश्वर हमें मृत्यु से बचाता है। ईश्वर अपने शत्रुओं का सिर कुचलता है. उस व्यक्ति को, लम्बे बाल वाली खोपड़ी को, जो कुमार्ग पर चलता है। प्रभु ने कहाः "मैं तुम्हें बाशान से ले आऊँगा, तुम्हें समुद्र की गहराइयों से निकाल कर ले आऊँगा, जिससे तुम रक्त में अपने पैर धोओ और तुम्हारे कुत्तों की जीभों को शत्रुओं का अपना हिस्सा मिले।" 

श्रोताओ, 68 वें भजन के उक्त पद हिंसक, क्रूर एवं रक्तरंजित तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। 21 वें पद में तो भजनकार कहता है, "ईश्वर हमारा उद्धार करता है। प्रभु ईश्वर हमें मृत्यु से बचाता है", किन्तु उसके तुरन्त बाद उसके विचार हिंसक हो उठते हैं, वह बदले की भावना से भर उठता है और चाहता है कि ईश्वर शत्रुओं का सिर कुचल डालें, कि ईश्वर कुमार्ग पर चलनेवाले को दण्डित करें। उसकी भाषा भी हिंसक हो उठती है और वह चाहता है कि कुमार्ग पर चलनेवाले दुराचारी का रक्त रंजित शरीर उसके सामने हों और वह कुत्तों को उसे खाता देख सके। इस स्थल पर यह स्मरण करना हितकर होगा कि मानवीय विचार, मानव का मन उस व्यक्ति को दण्डित देखना चाहता है जिसने उसका बुरा किया है और यहाँ तक तो यह उचित भी लगता है किन्तु उसका न्याय कर और यह कहकर कि वह ईश नियमों का पालन नहीं करता, वह हमारी बातें नहीं सुनता, हमारी तरह की सोच नहीं रखता उसे दण्डित करना अन्यायपूर्ण है। प्रभु येसु के साथ क्या हुआ था? उन्होंने तो किसी का बुरा नहीं किया था किन्तु उनकी सोच ढोंगी और पाखण्डी शास्त्रियों एवं फरीसियों जैसी नहीं थी इसलिये उन्होंने उन्हें प्राण दण्ड दिलवाया। येसु को क्रूस उठाते देख, क्रूस ढोते हुए भूमि पर गिरते देख, उन्हें क्रूस पर ठोंका हुआ और कष्ट से छटपटाता हुआ देख वे अत्यधिक प्रसन्न हुए थे।

श्रोताओ, 68 वाँ भजन भी इसी बात की ओर हमारा ध्यान आकर्षित कराता  है  और हमें सावधान करता है, कहीं हम भी अपने भाई और पड़ोसी के प्रति हिंसक न हो उठे, कहीं हम भी अपनी सोच के अनुसार उसका न्याय न कर डालें। बाईबिल धर्मग्रन्थ का 68 वाँ भजन इसी ख़तरे के प्रति सचेत कराता है क्योंकि बाईबिल धर्मग्रन्थ में निहित बातों का सम्बन्ध वास्तविक घटनाओं एवं  यथार्थ सत्य से है।         








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