2015-08-24 15:29:00

विश्वास तथा प्रेम के सच्चे संबंध का अर्थ


वाटिकन सिटी, सोमवार, 24 अगस्त 2015 (वीआर सेदोक): वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 23 अगस्त को, संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा,

″अति प्रिय भाइयो एवं बहनो,

सुप्रभात,

आज संत योहन रचित सुसमाचार में ‘जीवन की रोटी’ पर येसु के प्रवचन के साथ छटवें अध्याय का समापन हो रहा है जिसको उन्होंने रोटियों एवं मछलियों के चमत्कार के बाद दिया था। प्रवचन के अंत में लोग अत्यन्त परेशान थे क्योंकि येसु ने अपनी मृत्यु की बात कही थी तथा कहा था कि वे रोटी हैं जो स्वर्ग से उतरी है। वे अपना मांस भोजन के रूप में तथा अपना रक्त पेय के रूप में देने वाले हैं, जो उनके जीवन के बलिदान का स्पष्ट संकेत था।″

संत पापा ने कहा कि इन शब्दों के कारण लोगों में निराशा उत्पन्न हो गयी और उन्होंने उन्हें मसीह होने के अयोग्य समझा। लोगों ने उन्हें एक ऐसे मसीह के रूप में देखना चाहा था जो आदेश देता तथा अपने अधिकार का प्रयोग करता हो जिससे उनका मिशन तत्काल पूरा हो जाए। संत पापा ने कहा कि यह लोगों की गलत धारणा थी। यह मसीह के मिशन की गलत समझ नहीं थी। गुरु को कष्ट देने वाली इस भाषा को, शिष्यों ने भी स्वीकार नहीं कर पाया। इस प्रकार, इस संदेश ने उन्हें बेचैन कर दिया जिसके कारण वे कह उठे, ″यह तो कठोर शिक्षा है। इसे कौन मान सकता है।″(यो.6:60) वास्तव में, येसु के कथन को वे समझ चुके थे।

संत पापा ने कहा कि कई बार हम उत्तम शिक्षा को सुनना नहीं चाहते क्योंकि यह हमारी पुरानी धारणाओं को कमजोर कर देती है। येसु का वचन हमें संकट में डाल देता है उदाहरण के लिए, दुनियादारी की भावना में किन्तु येसु ही हमें उस संकट से बाहर आने की कुंजी प्रदान करते हैं। एक ऐसी कुँजी जो तीन तत्वों से बनी है, पहला, उनका दिव्य उदगम, कि वे स्वर्ग से आये हैं तथा पुनः स्वर्ग लौटेंगे जहाँ वे पहले थे।(पद.62) दूसरा, उनके वचन को पवित्र आत्मा के कार्यों द्वारा ही समझा जा सकता है।(पद.63) पवित्र आत्मा ही हमें येसु को पहचानने की कृपा प्रदान करते हैं और तीसरा, विश्वास की कमी ही उनके वचन को नहीं समझ पाने का मुख्य कारण है। येसु ने कहा, ″फिर भी तुम में से अनेक विश्वास नहीं करते।″(पद.64) वास्तव में इसी के बाद उनके बहुत से शिष्य अलग हो गये तथा उन्होंने उनका साथ छोड़ दिया। (पद. 66) इसके बावजूद येसु अपने वचन से विचलित नहीं हुए। वास्तव में, यह हमें स्पष्ट चुनाव करने हेतु प्रेरित करता है कि हम या तो उनके साथ जाएं अथवा उनसे अलग हो जाएं। अंत में, येसु ने अपने शिष्यों से कहा, ″क्या तुम लोग भी चले जाना चाहते हो।″ (पद.67)

इस सवाल के उत्तर में संत पेत्रुस अपने विश्वास की घोषणा करते हुए अन्य सभी प्रेरितों की ओर से कहा, ″प्रभु हम किसके पास जाएँ?  आपके ही शब्दों में अनन्त जीवन का संदेश है।″ (पद.68) संत पापा ने कहा कि पेत्रुस ने यह नहीं कहा कि हम कहाँ जाएँ किन्तु कहा कि हम किसके पास जाएँ। यहाँ जाने से इन्कार करने अथवा अपने कार्य को छोड़ देने की आधारभूत समस्या नहीं है किन्तु सवाल है किसके पास जाने की। पेत्रुस के उस सवाल से हमें ज्ञात होता है कि ईश्वर के प्रति निष्ठा का अर्थ है उस व्यक्ति के साथ भी निष्ठावान बनें रहना जिनके साथ हमें एक ही रास्ते पर चलना है और वो व्यक्ति हैं येसु। दुनिया में जो कुछ भी है उनसे हमारी भूख को तृप्ति नहीं मिल सकती। हमें इसके लिए येसु की आवश्यकता है उनके साथ भोजन करने की, अनन्त जीवन के वचन से पोषित किये जाने की। येसु में विश्वास करने का अर्थ है उन्हें अपना केंद्र तथा अपने जीवन का अर्थ मानना। ख्रीस्त अनन्त जीवन की रोटी के अतिरिक्त विकल्प नहीं किन्तु आवश्यक पोषक तत्व हैं। विश्वास तथा प्रेम के सच्चे संबंध का अर्थ परिवर्तित होना नहीं है किन्तु स्वतंत्र हो जाना है, अपने समय की चुनौतियों का सामना करने हेतु खुला होना है। हम में से प्रत्येक अपने आप से पूछ सकते हैं, येसु मेरे लिए कौन हैं? क्या यह एक नाम है, एक विचार है या ऐतिहासिक आकृति मात्र? अथवा क्या वे एक सच्चे व्यक्ति हैं जो मुझे प्यार करते हैं, जिसने मुझे अपना जीवन अर्पित किया है तथा जो मेरे साथ चलता है? संत पापा ने येसु के साथ हमारे संबंध को समझने हेतु चिंतन करने की सलाह देकर कहा, ″आप उनके साथ रहें, उनके वचनों से उन्हें जानने का प्रयास करें, येसु के बारे जानने के लिए प्रत्येक दिन सुसमाचार का पाठ करें।″ संत पापा ने कहा कि अपने पास सुसमाचार की एक छोटी प्रति रखें जिसे आप कहीं भी पढ़ सकें क्योंकि हम जितना अधिक उनके साथ रहते हैं उतना ही अधिक उनसे संयुक्त होने की चाह उत्पन्न होती है। संत पापा ने विश्वासियों से मौन रहकर इस सवाल पर चिंतन करने का आग्रह किया, ″येसु मेरे लिए कौन हैं?″ संत पापा ने कहा कि उसका उत्तर भी वे मौन रहकर ही दें।

संत पापा ने माता मरियम से प्रार्थना की कि, ″धन्य कुंवारी मरियम सदा येसु के पास जाने में हमारी सहायता करे ताकि वे हमें जो स्वतंत्रता प्रदान करते हैं उसका अनुभव हम कर सकें तथा वे हमें सांसारिक वस्तुओं की ओर झुकने की जोखिम से बचायें।

इतना कह कर संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

देवदूत प्रार्थना समाप्त करने के पश्चात् उन्होंने देश-विदेश से एकत्र सभी तीर्थयात्रियों एवं पर्यटकों का अभिवादन किया।

उन्होंने पूर्वी यूक्रेन के प्रति गहन संवेदना व्यक्त करते हुए कहा, ″गहन संवेदना के साथ मैं पूर्वी यूक्रेन की याद करता हूँ जिसमें इन दिनों संघर्ष तेज हो गया है। मैं अपनी हार्दिक अपील दुहराता हूँ कि संगठनों एवं सद इच्छा रखने वाले लोगों के शांति हेतु समर्पण का सम्मान किया जाए। हम देश में मानवीय आपात स्थिति का समर्थन करते हैं। प्रभु प्यारे देश यूक्रेन को शांति प्रदान करे जो कल राष्ट्रीय अवकाश मनाने की तैयारी कर रहा है। माता मरिया हमारी मध्यस्थता करे।

अंत में संत पापा ने सभी को शुभ रविवार की मंगल कामनाएँ अर्पित की।








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