2015-08-11 12:18:00

प्रेरक मोतीः सन्त क्लेयर (सन् 1194-1253 ई.)


वाटिकन सिटी, 11 अगस्त सन् 2015:

सन्त क्लेयर इटली की काथलिक सन्त हैं जो असीसी के सन्त फ्राँसिस के प्रथम अनुयायियों में से एक थीं। इटली के असीसी नगर में, 16 जुलाई, सन् 1194 ई. को क्लेयर का जन्म हुआ था। इटली के सास्सो रोस्सो के कोषाध्यक्ष फावोरीनो स्कीफी तथा उनकी धर्मपत्नी ओरतोलाना के अभिजात घराने में क्लेयर का जन्म हुआ था। जन्म के समय उनका नाम कियारा ऑफ्रेदूच्य्यो था। क्लेयर की माता ओरतोलाना एक धर्मपरायण महिला थी जो प्रार्थना और भक्ति में अधिकाधिक समय व्यतीत किया करती थीं। अपनी सन्तानों में उन्हीं ने धार्मिक जीवन के बीज आरोपित किये थे।

प्रार्थना में सदैव लीन रहनेवाली युवती क्लेयर ने सन्त फ्राँसिस से मार्गदर्शन पाकर धर्मबहनों के लिये "पुअर क्लेयर्स" यानि अकिंचन क्लेयर्स नामक धर्मसंघ की स्थापना की थी। पहली बार जब उन्होंने असीसी के सन्त फ्राँसिस को प्रवचन करते सुना था तब वे इतनी प्रभावित हुई थीं कि  अपना सबकुछ छोड़कर उनके अनुसरण को चल पड़ी थीं। माता-पिता, क्लेयर का विवाह एक धनवान युवा के साथ कर देना चाहते थे किन्तु क्लेयर समर्पित जीवन के प्रति आकर्षित थीं। फ्राँसिस का अनुसरण करने के लिये एक सन्ध्या क्लेयर घर से भाग गई। फ्राँसिस ने क्लेयर का स्वागत किया तथा उनके केश काटकर उन्हें काला परिधान पहना दिया। तदोपरान्त, वे उन्हें असीसी नगर के निकटवर्ती बास्तिया स्थित बेनेडिक्टीन मठ में ले गये। क्रुद्ध पिता फावोरीनो स्कीफी उन्हें मठ से वापस ले जाने के लिये बास्तिया पहुँच गये। उन्होंने बलपूर्वक उन्हें घर ले जाने की कोशिश की ताकि उनका विवाह कर दिया जाये किन्तु क्लेयर अपने निर्णय पर अटल रहीं।

क्लेयर एवं उनकी बहन एग्नेस बेनेडिक्टीन मठ को छोड़कर सन्त डेमियन के गिरजाघर चली गई जिसका निर्माण सन्त फ्राँसिस ने किया था। यहाँ दोनों बहनें प्रार्थना, ध्यान, मनन चिन्तन और त्याग तपस्या का जीवन यापन करने लगीं। पैरों में वे जूते नहीं पहनती थीं, माँसाहारी भोजन नहीं करती थीं, निर्धन आवास में जीवन यापन करती थीं तथा उनका अधिकांश समय मौन प्रार्थना में व्यतीत होता था। अन्य युवतियाँ इस जीवन शैली के प्रति आकर्षित हुई तथा सन् 1216 ई. में क्लेयर ने "अकिंचन महिलाओं" के धर्मसंघ की स्थापना कर दी।

प्रभु येसु में क्लेयर का विश्वास इतना अटल था कि एक बार असीसी पर कुछ उपद्रवी सैनिकों के आक्रमण के समय पवित्र यूखारिस्त के प्रदर्शन से उनकी रक्षा हो सकी। जब सैनिकों ने धर्मबहनों के मठ में घुसने का प्रयास किया तब रोगावस्था में शैया पर पड़ी क्लेयर ने सतत् प्रार्थना की। आश्चर्यजनक तरीके से क्लेयर में शक्ति का संचार हुआ और शैया से उठकर वे प्रार्थनालय गई। वहाँ से उन्होंने प्रदर्शिका में रखे पवित्र यूखारिस्त को उठाया तथा मठ की दीवार तक चली गई जहाँ से सैनिक अन्दर घुसने का प्रयास कर रहे थे। वे घुटनों के बल गिर पड़ी तथा प्रभु येसु ख्रीस्त से रक्षा हेतु प्रार्थना करने लगीं। उन्होंने गिड़गिड़ाया, "प्रभु, इन धर्मबहनों की रक्षा कर जिनकी रक्षा अब मैं नहीं कर सकती," उत्तर में क्लेयर को एक आवाज़ सुनाई दीः "मैं इन्हें हमेशा अपने संरक्षण में रखूँगा।" इसी क्षण सैनिक भयभीत हो गये तथा मठ छोड़कर भाग खड़े हुए।

जीवन के अन्तिम वर्षों में क्लेयर बहुत कमज़ोर हो गई थी तथा अक्सर बीमार रहा करती थी किन्तु इसके बावजूद उन्होंने मठवासी जीवन के सभी नियमों का पालन किया तथा सतत् प्रार्थना में अपना समय व्यतीत किया। 11 अगस्त, सन् 1253 ई. में, 59 वर्षीया धर्मबहन क्लेयर का निधन हो गया था। 26 सितम्बर, 1255 ई. को सन्त पापा एलेक्ज़ेनडर चौथे ने उन्हें, सन्त घोषित कर, कलीसिया में वेदी का सम्मान प्रदान किया था।

सन्त क्लेयर का पर्व 11 अगस्त को मनाया जाता है। वे नेत्रहीनों, सिलाई करनेवालों, नक्काशी करनेवालों एवं सुनारों की संरक्षिका हैं। सन्त पापा पियुस 12 वें ने, सन् 1958 ई. में, उन्हें टेलेविज़न और मीडिया कर्मियों की संरक्षिका भी घोषित किया था इसलिये कि जब वे बीमार थीं और ख्रीस्तयाग में शरीक नहीं हो सकती थीं तब, बताया जाता है कि, चमत्कारी ढंग से वे ख्रीस्तयाग समारोह का दृश्य अपने कक्ष की दीवार पर देख सकती थीं तथा सबकुछ सुना करती थीं।     

चिन्तनः सन्त क्लेयर हमें हर स्थिति में प्रार्थना की प्रेरणा प्रदान करें तथा सांसारिक सुख की अपेक्षा ईश्वर एवं सत्य की खोज करने हेतु प्रेरित करें।








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