2015-07-23 08:47:00

प्रेरक मोतीः स्वीडन की सन्त ब्रिजिट (1303-1373 ई.)


वाटिकन सिटी, 23 जुलाई सन् 2014:

स्वीडन के एक शाही परिवार में, सन् 1303 के लगभग, ब्रिजिट का जन्म हुआ था। उनके पिता बिरगर पेरसन उपलैम्ड प्रान्त के राज्यपाल थे। राजनैतिक रूप से अत्यधिक प्रभावशाली होने के साथ साथ ब्रिजिट का परिवार एक बहुत ही धर्मपरायण परिवार था। सन् 1316 ई. में, पिता की इच्छा के अनुकूल ब्रिजिड ने स्वीडन के राजकुमार उल्फ गुडमारसन से विवाह रचा लिया। उनकी आठ सन्तानें हुई। इनकी बेटी कैथरीन ही वादसेना की सन्त कैथरीन हैं। सन् 1341 ई. में ब्रिजिट ने अपने पति तथा कुछेक सहयोगियों के साथ सान्तियागो दे कोमपोस्तेला की तीर्थयात्रा की थी।

सन् 1344 ई. में अपने पति राजकुमार उल्फ के निधन के बाद राजकुमारी ब्रिजिट ने अपना शेष जीवन निर्धनों की सेवा, प्रार्थना, बाईबिल पाठ एवं मनन चिन्तन को समर्पित कर दिया। इसी दौरान उन्होंने कई बार माता मरियम एवं क्रूसित प्रभु येसु के दिव्य दर्शन प्राप्त किये। कहा जाता है कि इन दर्शनों के दौरान ब्रिजिट को बताया जाता था कि उनका अगला मिशन क्या होगा। उन्हें मिलनेवाले कुछ सन्देशों की प्रकृति राजनैतिक हुआ करती थी जिनके बारे में ब्रिजिट, स्वीडन के राजा मागनुस तथा रानी ब्लांक के राजदरबार में बताया करती थीं। एक दिव्य दर्शन में उनसे आग्रह किया गया था कि वे कुँवारी मरियम के आदर में एक धर्मसंघ की स्थापना करें। 1349 ई. में प्राप्त एक अन्य दर्शन के बाद उन्हें रोम छोड़ना पड़ा ताकि सन्त पापा की परमाध्यक्षीय पीठ को रोम वापसी के लिये सरल एवं सुसाध्य बनाया जा सके जो उस समय फ्राँस के आविन्योन में थी।

फ्राँस में रहते हुए ब्रिजिट के लोकोपकारी कार्यों की ख्याति सर्वत्र फैल गई तथा उनकी लोकप्रियता को प्रोत्साहन मिला। निर्धनों, बेघर एवं परित्यक्त लोगों के हित में किये गये उनके कार्यों के कारण उन्हें "द एन्जल ऑफ रोम" शीर्षक प्रदान किया गया। एक अन्य दर्शन के बाद सन् 1373 ई. में ब्रिजिट ने पवित्रभूमि की तीर्थयात्रा की तथा वहीं 23 जुलाई को उनका निधन हो गया। उनके पवित्र अवशेष स्वीडन लाये गये तथा वादसेना के मठ में दफना दिये गये। 07 अक्टूबर सन् 1391 ई. को ब्रिजिट सन्त घोषित की गई तथा सन् 1396 ई. में उन्हें स्वीडन की संरक्षिका एवं सन्त घोषित कर दिया गया। स्वीडन की सन्त ब्रिजिट का पर्व 23 जुलाई को मनाया जाता है। 

चिन्तनः "धर्मियों के भाग्य में कल्याण बदा है, किन्तु विधर्मियों के भाग्य में प्रभु का क्रोध लिखा है। जो उदारता से दान देता है, वह और धनवान बनता है। जो कृपणता से देता, वह दरिद्र बनता है। उदार व्यक्ति सम्पन्न होता जाता है, जो दूसरों को पिलाता, उसे भी पिलाया जायेगा" (सूक्ति ग्रन्थ: 11, 23-25)।         








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