2015-07-14 12:31:00

जो कुछ मैंने कहा वह कलीसिया की सामाजिक शिक्षा में निहित है, सन्त पापा फ्राँसिस


रोम, मंगलवार, 14 जुलाई 2015 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा है कि जो कुछ उन्होंने दक्षिण अमरीका की यात्रा पर कहा वह सब काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा का ही अंग था।

सोमवार, 13 जुलाई को सन्त पापा फ्राँसिस दक्षिण अमरीका के एक्वाडोर, बोलिविया और पारागुए की आठ दिवसीय प्रेरितिक यात्रा सम्पन्न कर पुनः रोम लौट आये हैं।

पारागुए के आसुनसियोन से रोम तक की विमान यात्रा के दौरान सन्त पापा फ्राँसिस पत्रकारों से रुबरु हुए तथा लगभग एक घण्टे तक उनके सवालों का जवाब दिया। इनमें ग्रीस, धार्मिक स्वतंत्रता, परिवार का संकट, ज़मीनी लोकगत अभियानों को समर्थन, नवीन उपनिवेशवाद तथा क्यूबा एवं अमरीका के बीच वाटिकन की मध्यस्थता जैसे मुद्दे शामिल थे।

दक्षिण अमरीका के उक्त तीन देशों में अपने सन्देश का सार पूछने पर सन्त पापा ने कहा कि तीनों ही देशों के बच्चों ने उनपर अमिट छाप छोड़ी है। उन्होंने कहा, "मैंने एक साथ इतने अधिक बच्चे कभी नहीं देखे थे। यह सजीव कलीसिया है..... मैं इस युवा कलीसिया को प्रोत्साहित करना चाहता था..... मेरा विश्वास है कि इनसे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।"

एक्वाडेर, बोलिविया एवं पारागुए में सन्त पापा फ्राँसिस के प्रभाषणों में कई बार नवीन उपनिवेशवाद, पूँजीवाद और अर्थव्यवस्थाओं पर हावी होनेवाली धन की पूजा जैसे मुद्धे उठे। इस सन्दर्भ में व्यवसाय जगत के बजाय ज़मीनी लोकगत अभियानों को समर्थन के विषय में सन्त पापा ने पत्रकारों से कहा, "लोकगत अभियान मेरे क़रीब हैं इसलिये कि यह एक वैश्विक तथ्य है। इससे पूर्व के देश जैसे फिलीपिन्स और थाईलैण्ड भी प्रभावित हैं और इन अभियानों का उदय केवल विरोध के लिये नहीं होता बल्कि विकास के लिये भी।"    

सन्त पापा ने कहा, "लोकगत अभियानों के समक्ष कलीसिया उदासीन नहीं रह सकती। कलीसिया के पास सामाजिक धर्मशिक्षा है। वह इन अभियानों के साथ अन्तर-क्रिया में लिप्त रहती है ताकि उन्हें यह न लगे कि कलीसिया उनसे दूर है।"

उन्होंने कहा कि कलीसिया वार्ताओं द्वारा अधिकारों के लिये लड़ने का बल प्रदान करती है। वह अराजकता के बहिष्कार का सन्देश देती तथा शांतिपूर्ण ढंग से समस्या का समाधान ढूँढ़ने का परामर्श देती है।

क्यूबा तथा अमरीका के बीच वाटिकन की मध्यस्थता के विषय में पूछने पर सन्त पापा ने बताया कि यह औपचारिक मध्यस्थता का मामला नहीं था। उन्होंने कहा, "मैंने प्रार्थना की और सोचाः ये दो राष्ट्र पचास वर्ष बाद भी क्योंकर अलग हैं? इसके बाद मैंने एक कार्डिनल को भेजा और दोनों देश बातचीत के लिये तैयार हो गये।" सन्त पापा ने कहा, "वे अकेले गये थे, इसमें कोई औपचारिक मध्यस्थता नहीं थी।"

ग्रीस संकट के बारे में पूछे जाने पर सन्त पापा ने बताया कि उनके पिता अकाऊन्टेन्ट थे इसलिये अर्थशास्त्र उनका प्रिय विषय नहीं है तथापि, उन्होंने कहा, "सच तो यह है कि मैं ग्रीक संकट को  समझ नहीं पाया हूँ। एक पक्ष पर सारा दोष मढ़ देना सरल होगा किन्तु यह उचित नहीं है फिर भी इस संकट के लिये उन ग्रीक नेताओं की कुछ ज़िम्मेदारियाँ ज़रूर हैं जिन्होंने अन्तरराष्ट्रीय ऋण को बढ़ने दिया।" सन्त पापा ने आशा व्यक्त की कि सभी पक्ष ग्रीस की समस्या को सुलझाने का रास्ता खोज निकालेंगे ताकि अन्य देशों को इसी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े।    








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