2015-07-13 15:50:00

हमें स्वागत करने से कोई नहीं रोक सकता


नू ग्वाज़ू, पारागुए, सोमवार, 13 जुलाई 2015 (वीआर सेदोक)꞉ पारागुए के नू ग्वाज़ू में संत पापा फ्राँसिस ने अपनी प्रेरितिक यात्रा के अंतिम दिन रविवार 12 जुलाई को विश्वासी समुदाय के साथ पावन ख्रीस्तयाग अर्पित किया तथा देवदूत प्रार्थना का पाठ किया।

उन्होंने प्रवचन की शुरूआत स्तोत्र ग्रंथ के उस पद से किया जिसमें स्तोत्र ग्रंथ के रचनाकार प्रभु से आशीर्वाद तथा उज्ज्वल भविष्य की आशा करता है, ″ईश्वर अपना आशीर्वाद प्रदान करेंगे तथा हमारी भूमि फल उत्पन्न करेगी।″

संत पापा ने कहा, ″हम ईश्वर तथा उनकी प्रजा, ईश्वर तथा हमारे बीच की इस रहस्यात्मक एकता को मनाने के लिए आमंत्रित हैं। भूमि जिसे हमने अपने हाथों से तैयार किया है उसपर वर्षा ईश्वर की उपस्थिति का चिन्ह है। यह हमें स्मरण दिलाता है कि ईश्वर के साथ हमारी संयुक्ति सदा फल उत्पन्न करती है और हमेशा जीवन प्रदान करती है। यह दृढ़ता विश्वास द्वारा उत्पन्न होता है उस ज्ञान द्वारा कि हम उनकी कृपा पर निर्भर करते हैं जो हमें निरंतर परिवर्तित करते तथा हमारी धरती को पोषित करते हैं।″

संत पापा ने बतलाया कि यह दृढ़ता अभ्यास द्वारा, समुदाय में पारिवारिक जीवन से विकसित होती है। यह उन सभी के चेहरों पर विकीर्ण होती है जो हमें कभी विश्वासघात नहीं करने वाले येसु का अनुसरण करने का प्रोत्साहन देते हैं। एक शिष्य को ज्ञात होता है कि वह इसी दृढ़ता के लिए बुलाया गया है। येसु हमें बुलाते हैं कि हम उनके मित्र बनें, उनके साथ रहकर उनके जीवन के सहभागी बनें। ″मैंने तुम्हें दास नहीं किन्तु मित्र कहा है, क्योंकि मैंने पिता से जो कुछ सुना है उसे तुम्हें बतला दिया है।″ संत पापा ने कहा कि शिष्य वही है जो मित्रता में उत्पन्न दृढ़ता को जीना सीखता है।  

येसु अपने शिष्यों को बुलाते तथा स्पष्ट निर्देश देकर भेजते हैं। येसु यह निर्देशन बिलकुल स्पष्ट तरीके से देते हैं। वे इस बात की छूट नहीं देते कि शिष्य जो चाहें वही करें।

संत पापा ने येसु द्वारा शिष्यों को बतलाये गये मनोभाव पर चिंतन करते हुए कहा कि हम इन मनोभावों पर चिंतन करें, ″यात्रा के लिए हाथ में डण्डा के सिवा कुछ भी न ले जाएँ न रोटी, न झोली, न रुपया। जब तुम एक घर में प्रवेश करते हो तो उस स्थान को छोड़ने तक वहीं ठहरो।″  

संत पापा ने कहा कि येसु का यह निर्देश लोगों को बिलकुल अवास्तविक लग सकता है। उन्होंने कहा कि हम रोटी, रुपया, झोली, चप्पल तथा अँगरखा आदि शब्दों पर चिंतन कर सकते हैं किन्तु हम एक प्रमुख शब्द को आसानी से भूल सकते हैं। वह शब्द है ″स्वागतम″ जो हमारे शिष्य होने के अनुभव में ख्रीस्तीय आध्यात्मिकता के केंद्र में है। एक भले गुरु के रूप में येसु अपने शिष्यों को बाहर भेजते हैं ताकि वे स्वागत एवं सत्कार किये जाने का अनुभव करे। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि एक ख्रीस्तीय धर्मानुयायी वही है जो दूसरों का स्वागत एवं सत्कार करना सीखता है।

संत पापा ने कहा कि येसु अपने चेलों को एक प्रभावशाली व्यक्ति अथवा अधिकारी के रूप में नहीं भेजते बल्कि उन्हें दिखाते हैं कि ख्रीस्तीय यात्रा का अर्थ है हृदय का परिवर्तन। एक अलग तरीके से जीने सीखना। स्वार्थ, तनाव, विभाजन, अधिकार के रास्ते से हटकर जीवन, उदारता तथा प्यार के रास्ते को अपनाना।

उन्होंने कहा कि कई बार हम मिशन को योजना एवं कार्यक्रम के रूप में देखते हैं। कई बार हम सुसमाचार प्रचार हेतु विभिन्न प्रणालियों, तरीकों तथा तकनीकों को अपनाते हैं जिसको देखकर लगता है कि हम अपने ही तर्कों द्वारा लोगों का मन-परिवर्तन करना चाहते हैं किन्तु प्रभु स्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि लोगों को विश्वास दिलाने के लिए सुसमाचार का तर्क न दें किन्तु लोगों को यकीन दिलाने हेतु उनका स्वागत करें।

कलीसिया उदार हृदय वाली माता है। वह जानती है कि किस प्रकार स्वागत करना तथा स्वीकारना चाहिए, खासकर, बड़ी मुसीबतों में फंसे लोगों का। कलीसिया सत्कार का घर है। सत्कार द्वारा ही हम कितने लोगों की भलाई कर सकते हैं, कितने दुःख कम कर सकते हैं। जहाँ हम अपनत्व का अनुभव करते हैं वहाँ कितने निराश लोगों के मन को राहत मिल सकती है। संत पापा ने कहा कि भूखे, प्यासे, परदेशी, नंगे, बीमार, कैदी, कोढ़ी तथा अपंग लोगों का स्वागत करें। संत पापा ने उन लोगों का भी स्वागत करने की सलाह दी जो हमारे विचारों से सहमत नहीं होते हैं जो विश्वास नहीं करते या अपना विश्वास खो चुके हैं। अत्याचार के शिकार लोगों एवं बेरोज़गारों का स्वागत करें। विभिन्न संस्कृतियों को स्थान दें तथा पापियों का स्वागत करें।

संत पापा ने सचेत किया कि कई बार हमारे अंदर की बुराइयों को हम भूल जाते हैं जो हमारे अंतर धीरे-धीर जड़ जमाता एवं कई लोगों का जीवन नष्ट कर देता है। वह हमारे खुद के जीवन को भी तहस-नहस कर हमें अकेला छोड़ देता है। यह हमें व्यक्ति, ईश्वर तथा समुदाय से दूर कर देता है। हमें अपने आप में बंद कर देता है। संत पापा ने कहा कि यही कारण है कि माता कलीसिया का मुख्य कार्य कामों अथवा योजनाओं को व्यवस्थित करना नहीं किन्तु भाईचारे के साथ जीने सीखना है। भाईचारे की भावना से पूर्ण होकर स्वागत करना सबसे उत्तम साक्ष्य है कि ईश्वर हमारे पिता हैं।

इस प्रकार येसु हमें विचार करने का नवीन रास्ता बतलाते हैं। वे हमारे सामने जीवन, सौंदर्य, सच्चाई तथा परिपूर्णता से भरी एक क्षितिज खोलते हैं।

संत पापा ने कहा कि ईश्वर कभी क्षितिज बंद नहीं करते, वे अपने बच्चों के जीवन तथा दुखों से कभी उदासीन नहीं होते। यही कारण है कि उन्होंने अपने पुत्र को भेजा जिससे कि हम भाईचारा एवं आत्म बलिदान की भावना में बढ़ें। वे नयी क्षितिज को खोलते हैं। वे एक असीम शब्द हैं जो बहिष्कार, विघटन, अकेलापन और अलगाव की विभिन्न परिस्थितियों में अपना प्रकाश प्रदान करते हैं। वे एक ऐसे शब्द हैं जो अकेलापन के मौन को तोड़ डालते हैं।

संत पापा ने सुसमाचार प्रचार में असफलता के समय उन बातों को याद करने की सलाह दी कि येसु जिस जीवन की बात करते हैं वह लोगों के गहनता आवश्यकता पर ध्यान देता है। ″हमारी सृष्टि जैसा कि सुसमाचार हमें बतलाता है कि येसु के साथ मित्रता एवं अपने भाई-बहनों के साथ प्रेम करने के लिए हुई है।

संत पापा ने कहा कि इस बात से स्पष्ट है कि स्वागत करने के लिए हम किसी पर दबाव नहीं डाल सकते और न ही कोई अपना स्वागत कराने के लिए हम पर अपना दबाव डाल सकता है। हमें किसी का स्वागत करने अपने भाई बहनों का आलिंगन करने से कोई नहीं रोक सकता विशेषकर, जिन्होंने अपनी आशा तथा जीवन का उत्साह खो दिया है।

कलीसिया माता मरियम के समान हमारी माता है वह हमारी आदर्श है। हम भी माता मरिया के समान अपने घर खुला रखें जिन्होंने शब्द का स्वागत किया उसे अपने शरीर में धारण किया तथा दुनिया को दिया।

हम पृथ्वी के समान लोगों को स्वीकार करें जो बीज को नहीं दबाती किन्तु उसे स्वीकारती, पोषित करती तथा बढ़ाती है।

संत पापा ने कहा कि ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों को ऐसा ही होना चाहिए। हमारे भाई बहनों में ईश्वर के जीवन को स्वीकार करना तथा उस विश्वास के साथ उसका स्वागत करना है कि ″ईश्वर आशीष प्रदान करेंगे तथा हमारी धरती फल उत्पन्न करेगी।″

             








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