2015-07-12 16:23:00

आशा एवं विश्वास को बनाये रखने में मददगार हैं माता मरियम


काकूपे, रविवार, 12 जुलाई 2015 ( वीआर सेदोक)꞉ काकूपे स्थित बोलिविया के मरियातीर्थ पर संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार 11 जुलाई को पावन ख्रीस्तयाग अर्पित किया।

उन्होंने प्रवचन में मरिया तीर्थस्थल की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा, ″आपके साथ काकूपे की माता धन्य कुँवारी मरियम के चरणों में उपस्थित होना मुझे अपनात्व का एहसास दे रहा है।″ उन्होंने कहा कि सभी तीर्थ स्थलों में हम उनके बच्चे अपनी माता से मुलाकात करते तथा याद दिलाये जाते हैं कि हम आपस में भाई-बहन हैं। तीर्थस्थल त्यौहार, मुलाकात तथा परिवारों का स्थान है। हम अपनी जरूरतों को यहाँ लेकर आते हैं। हम उन्हें धन्यवाद देने, क्षमा मांगने तथा नयी शुरूआत करने आते हैं।

संत पापा ने तीर्थस्थल को बपतिस्मा, पुरोहितीय एवं धर्मसमाजिक बुलाहट का उदगम स्थल तथा अन्य संस्कारों के लिए प्रेरणा का स्थान कहा। उन्होंने कहा कि हम भी कई बार माता मरिया के चरणों में इसलिए आते हैं ताकि सुसमाचार के आनन्द को जी सकें।

संत पापा ने काकूपे के मरिया तीर्थ पर एकत्र होने के मकसद को उजागर करते हुए कहा, ″आज हम यहाँ माता मरिया के चरणों में ईश प्रजा के रूप में एकत्र हुए हैं ताकि हम उन्हें अपना प्रेम एवं विश्वास अर्पित कर सकें।″

प्रवचन में संत पापा ने सुसमाचार पाठ पर चिंतन किया जहाँ महादूत गाब्रिएल कुँवारी मरियम को येसु के जन्म का संदेश देता है। उनके अभिवादन को सुनकर मरियम ने घबरा कर पूछा था कि उसका क्या अर्थ है यद्पि वह अच्छी तरह नहीं समझ पा रही थी कि क्या हो रहा है तथापि उसे इतना मालूम हो गया था कि वह दूत ईश्वर द्वारा भेजा गया था अतः उसने ‘हाँ’ कहा।

संत पापा ने कहा कि वे ‘हाँ’ की माता हैं उन्होंने ईश्वर की योजना को हाँ कहा, उनकी देखरेख तथा इच्छा को ‘हाँ’ कहा।

संत पापा ने माता मरिया के समर्पण पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने जो ‘हाँ’ कहा उसे जीना आसान नहीं था। वह एक ऐसा ‘हाँ’ था जिसमें कोई विशेषाधिकार नहीं था। सिमयोन ने भविष्यवाणी की थी, ″एक तलवार आपके हृदय को आर-पार बेधेगी।( लूक.2꞉35) और यह सच निकला।

यही कारण है कि हम उन्हें प्यार करते हैं। हम उनमें सच्चे माँ का स्वभाव पाते हैं जो हमें जटिल परिस्थितियों में आशा एवं विश्वास को बनाये रखने में मदद करती है। संत पापा ने सिमेयोन की भविष्यवाणी पर ग़ौर करते हुए माता मरिया के जीवन के तीन ऐसे समय का जिक्र किया जब उन्हें अत्याधिक कठिन दौर से होकर गुजरना पड़ा।

पहला, येसु का जन्म। उसके लिए उनके पास कोई जगह न थी, न कोई घर था और न ही कोई  स्थान जहाँ वह अपने पुत्र को जन्म दे सके। उस समय परिवार से कोई प्रियजन भी साथ नहीं था इस तरह वे अकेले थे। जगह जो उन्हें प्राप्त थी वह था जानवरों का पशुशाला। ऐसी परिस्थिति में माता मरिया के मन में दूत के कथन ″प्रभु आपके साथ है,″ पर जरूर प्रश्न उठा होगा।

दूसरा अवसर, मिश्र देश में पलायन। उन्हें अपना स्थान छोड़कर निर्वासन पर जाना पड़ा। संत पापा ने कहा कि उनके लिए न केवल घर तथा अपने परिवारवालों से दूर होने की समस्या हुई किन्तु उनका जीवन भी खतरे में पड़ गया था। अतः उन्हें विदेश जाना पड़ा। राजा की ईष्या एवं लालच के कारण वे अत्याचार सहने वाले अप्रवासी बने। उस समय भी मरियम के मन में दूत द्वारा की गयी प्रतिज्ञा की याद आयी होगी।

तीसरा अवसर, क्रूस पर येसु की मृत्यु। एक माँ के लिए अपने बच्चे की मृत्यु को देखने से बढ़कर कोई कठिनाई नहीं हो सकती। यह अत्यन्त हृदय स्पर्शी था। उन सभी दृढ़ विश्वासी माताओं के समान जो अपने बच्चे को मरण तक साथ देते हैं उसी तरह मरियम को हम येसु के क्रूस के नीचे पाते हैं। वहाँ भी उन्होंने वही अनुभव किया होगा कि दूत की प्रतिज्ञा का क्या हुआ फिर भी वह चेलो को ढ़ाढस बंधाते एवं उनका साथ देते रहे।

मरिया विश्वास की नारी है, वह कलीसिया की माता है, उन्होंने ईश्वर पर विश्वास किया। उनका जीवन यह प्रमाणित करता है कि ईश्वर हमारे साथ विश्वासघात नहीं करते, वे अपने लोगों को नहीं छोड़ते, ऐसे समय में भी जब लगे कि जब हम उनकी उपस्थित का एहसास नहीं कर पाते हैं। मरिया अपने पुत्र येसु की प्रथम शिष्य थी तथा उन्होंने कठिनाई के समय चेलों को दृढ़ता प्रदान की।

माता मरिया दूसरों की जरूरतों पर सदा सचेत रहती हैं। उन्होंने काना के विवाह भोज में दाखरस घट जाने पर चिंता की। उन्होंने तीन महिने तक अपनी कुटुम्बनी एलिजाबेथ के यहाँ रहकर उसकी मदद की।

संत पापा ने काकूपे तीर्थस्थल की विशेषता बतलाते हुए कहा कि यह तीर्थ उन लोगों की स्मृति को सुरक्षित रखती है जिन्होंने मरियम को माता के रूप में अनुभव किया तथा सदा अपने बच्चों के साथ होने का एहसास किया। 

मरियम सदा हमारे अस्पतालों, स्कूलों एवं घरों में निवास करती हैं। वह हमारे खाने के मेज पर उपस्थित होती हैं। वे देश के इतिहास का हिस्सा हैं क्योंकि वे अपने लोगों के बीच रहना चाहती हैं। अपने बच्चों के साथ। एक भली माता के रूप में वह अपने बच्चों को छोड़ना नहीं चाहतीं बल्कि जरूरत में पड़े अपने बच्चों की मदद करने हेतु सदा तैयार रहती हैं।

जीवन की कठिनाईयों के बीच, ″डरिये नहीं, प्रभु आपके साथ हैं″ का अर्थ अच्छी तरह समझ गयी थीं तथा हमें भी वही सिखलाती हैं। वे हमें कुछ नहीं बात नहीं बतलाती किन्तु हमारे विश्वस में वे मौन रहकर हमारा साथ देती हैं। 

संत पापा ने पारागुए के लोगों, विशेषकर, महिलाओं की सराहना की जिन्होंने माता मराय के साथ बीती याद को बनाये रखा। उन्होंने कहा, ″आपने कई कठिनाईयों का सामना किया विश्वास के कारण दुनिया की दृष्टि में अपमानित हुए तब भी धन्य कुँवारी मरियम से प्रेरित होकर आशाओं के विपरीत आशा रखते हुए विश्वास में दृढ़ बने रहे। आपका विश्वास जीवन बन चुका है एक आशा का जीवन और वह आशा श्रेष्ठतर का दान करने हेतु प्रेरित करता है। येसु की तरह आप प्रेम के धनी हैं।″ संत पापा ने सभी लोगों को शुभकामनाएं दी कि वे विश्वास, जीवन और आशा के साक्षी बनें। देश के वर्तमान एवं भविष्य के निर्माता बनें।

                       

 

 

 








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