2015-07-12 16:31:00

अपनी संस्कृति, भाषा एवं परम्परा द्वारा समुदाय को बहुत कुछ देना है


आसुनसियोन, रविवार, 12 जुलाई 2015 (वीआर सेदोक)꞉ संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार 11 जुलाई को पारागुए स्थित असुनसियोन शहर के नागर समाज के प्रतिनिधियों से मुलाकात की।

संत पापा ने उनसे मुलाकातकर खुशी व्यक्त करते हुए कहा, ″पारागुवाई समाज के विभिन्न हिस्सों से अपने हर्ष-विषाद, संघर्ष, सहानुभूति एवं आशा के साथ आप सभी को देखना मुझे ईश्वर के प्रति कृतज्ञता से भर दिया है।″

उन्होंने लोगों के विकास की भावना की सराहना करते हुए कहा कि बिना काम, उदासीन तथा निष्क्रिय रूप से चीजों को स्वीकार करने वाले लोग मृतप्राय हैं। उन्होंने कहा कि ईश्वर उन्हीं की मदद करते हैं जो अपने बच्चों के जीवन का उत्थान चाहते और उसे बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं। उन्होंने कहा कि अन्याय की समस्याएँ अब भी हैं किन्तु आप को देख कर मुझमें आशा का संचार हो रहा है कि ईश्वर अब भी अपने लोगों के बीच कार्य करते हैं। 

संत पापा ने प्रतिनिधियों से कहा कि वे विभिन्न पृष्ठभूमि, परिस्थितियों एवं आकांक्षाओं के साथ पारागुए की संस्कृति का निर्माण करते हैं। सार्वजनिक हित हेतु कार्य करना सभी की जिम्मेदारी है।

लोगों के कई प्रश्नों का जवाब देते हुए संत पापा ने देश के कल्याण हेतु मिलकर कार्य करने का आग्रह किया।

पहले सवाल के उतर में उन्होंने कहा कि एक युवा द्वारा समाज को भाईचारा, न्याय, शांति तथा सभी के लिए प्रतिष्ठा के स्थान के रूप में देखने क चाह सुखद है। उन्होंने कहा, ″यह महत्वपूर्ण है कि युवा यह एहसास कर पाये कि सच्चा आनन्द दुनिया को अधिक भाईचारापूर्ण बनाने में है। यह उस बात को समझने से आता है कि आनन्द एवं ऐशोआराम समानार्थक नहीं हैं। आनन्द समर्पण एवं पहल की माँग करता है।″ संत पापा ने देश में युवाओं की संख्या को आशामय बतलाते हुए कहा कि पारागुए में युवाओं की बड़ी संख्या है जो देश के लिए महान समृद्धि का चिन्ह है। संत पापा ने सलाह दी कि युवा रूपी शक्ति एवं प्रकाश कभी फीका न होने पाये। जोखिम उठाने ने न डरें, समर्पित होना सीखें तथा अपने उत्तम का दान करने से न घबराएँ।

संत पापा ने इन सभी बातों को एक साथ मिलकर पूरा करने की सलाह दी। उन्होंने कहा, ″इन बातों के विषय में जैसे- जीवन से लाभ, बुजूर्गों एवं बूढ़े माता-पिताओं के विवेक से सीख लेने आदि पर मिलकर विचार करें। अच्छी बातों को सीखने के लिए अपना समय दें। येसु एवं प्रार्थना की शक्ति का सहारा लें। प्रतिदिन प्रार्थना करें वे आपको निराश नहीं करेंगे। पुर्वजों के भाईचारा, न्याय, शांति तथा सभी की प्रतिष्ठा में आनन्द की भावना के रहस्य येसु हैं।

दूसरे सवाल के उत्तर में संत पापा ने कहा कि वार्ता पूर्ण समावेशी राष्ट्र बनाने की योजना में एक बड़ा माध्यम है। उन्होंने कहा, ″जैसा कि हम जानते हैं कि वार्ता आसान नहीं है जिसमें कई विभिन्नताओं को झेलना पड़ता है और कई बार ऐसा भी लगता है कि हमारे प्रयास बातों को मात्र उलझा रहे हैं। वार्ता किसी ठोस विषय पर आधारित होना चाहिए। यह मुलाकात की सस्कृति की मांग करता है। मुलाकात जो यह समझ पाती है कि विविधता न केवल सुन्दर है किन्तु आवश्यक भी, इस प्रकार हम दूसरे व्यक्ति को गलत नजरिये से नहीं देखते हैं। न सिर्फ अपनी बातों को जगह देते किन्तु एक साथ मिलकर सभी के हित के लिए बेहतर समाधान की खोज करते हैं। इसके लिए कई बार विचारों की असमानता का सामना करना पड़ता है किन्तु हमें इसे नहीं घबराना चाहिए एवं इसका समाधान करना चाहिए क्योंकि एकता संघर्ष से बढ़कर है। यह एकता विविधताओं को रद नहीं करती किन्तु समझदारी एवं सदभावना के साथ एकता में इसका अनुभव करती है। दूसरों के विचारों, अनुभवों एवं आशाओं को समझकर हम अपनी आकांक्षाओं को अधिक स्पष्ट रूप में देख सकते हैं।

हमारे मुलाकात का आधार है कि हम सब भाई-बहनें हैं तथा एक ही स्वार्गीय पिता की संतान हैं एवं अपनी संस्कृति, भाषा एवं परम्परा द्वारा समुदाय को बहुत कुछ देना है। सच्ची संस्कृति अपने आप में बंद नहीं होती किन्तु अन्य संस्कृतियों से मिलने की आपील करती तथा नयी वास्तविकताओं को जन्म देती हैं। संत पापा ने कहा कि बिना इस आवश्यक सोच के वार्ता तक पहुँचना मुश्किल है।

तीसरा प्रश्न, समावेशी समाज के निर्माण हेतु हम हम ग़रीबों की आवाज को किस प्रकार सुनते हैं? 

संत पापा ने इसके उत्तर में कहा कि सहायता करना उस बात पर मुख्य रूप से निर्भर करता है कि हम उन्हें किस रूप में देखते हैं। इसमें वैचारिक दृष्टिकोण व्यर्थ है इस के द्वारा गरीबों की मदद करना एक राजनीतिक या व्यक्तिगत रूचि बन जाता है। उन्हें वास्तव में मदद करने के लिए हमें उनकी व्यक्तिगत आवश्यकताओं पर ध्यान देना तथा उनकी अच्छाईयों को मूल्य देना है। अच्छाईयों का मूल्य समझने का अर्थ है उन अच्छाईयों से सीख लेने हेतु तत्पर रहना। गरीबों के पास हमें सिखलाने के लिए विनम्रता, भलाई एवं त्याग जैसे कई अच्छे सदगुण हैं। संत पापा ने ख्रीस्तीयों का स्मरण दिलाया कि एक ख्रीस्तीय के रूप में हमें गरीबों की सेवा करना तथा उनसे प्रेम करना है क्योंकि उन्हीं में हम ख्रीस्त के चेहरे और बदन को देखते हैं जो हमें धनी बनाने के लिए खुद ग़रीब बन गये।

      








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