2015-07-05 10:41:00

दक्षिण अमरीकी यात्रा की पूर्वसन्ध्या सन्त पापा फ्राँसिस माँ मरियम के चरणों में


वाटिकन सिटी, रविवार, 05 जुलाई सन् 2015 (सेदोक): काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष, सन्त पापा फ्राँसिस, रविवार, 05 जुलाई को रोम से दक्षिण अमरीका में अपनी सात दिवसीय यात्रा के लिये रवाना हो गये।

05 से 12 जुलाई तक जारी इस प्रेरितिक यात्रा के दौरान सन्त पापा एक्वाडोर, बोलिविया एवं पारागुए का दौरा करेंगे।

शनिवार, 04 जुलाई को यात्रा की पूर्वसन्ध्या, सन्त पापा ने रोम के मरियम महागिरजाघर जाकर पुष्पांजलि अर्पित की तथा यात्रा की सफलता हेतु माँ मरियम से आर्त याचना की। वाटिकन प्रेस प्रवक्ता फादर फेदरीको लोमबारदी ने एक विज्ञप्ति प्रकाशित कर बताया कि सन्त पापा, सन्ध्या सात बजे, रोम के मरिया माज्जोरे महागिरजाघर गये तथा वहाँ उन्होंने मरियम के चरणों में, प्रतीक स्वरूप, एक्वाडोर, बोलिविया एवं पारागुए के ध्वज़ों के रंगों वाले फूल चढ़ाये। उन्होंने बताया कि महागिरजाघर में सन्त पापा फ्राँसिस ने लगभग बीस मिनटों तक मौन प्रार्थना की।

रविवार 05 जुलाई को, रोम समयानुसार प्रातः नौ बजे, सन्त पापा फ्राँसिस ने रोम के फ्यूमीचीनो अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से एक्वाडोर की राजधानी क्वीटो के लिये प्रस्थान किया। रोम से क्वीटो तक की यात्रा सन्त पापा, आल इतालिया के ए-330 विमान से, 13 घण्टों में पूरी करेंगे। इटली, स्पेन, पुर्तगाल, त्रिनीदाद व तोबागो, वेनेज़ूयेला और फिर कोलोम्बिया होते हुए सन्त पापा का विमान एक्वाडोर की राजधानी क्वीटो के अन्तरराष्ट्रीय हवाई अडडे पहुँचेगा। विमान यात्रा से सन्त पापा ने उक्त सभी देशों के राष्ट्रपतियों के नाम सन्देश भेजकर सुख, शांति एवं समृद्धि की शुभकामनाएँ व्यक्त की तथा प्रार्थना में उनके समीप रहने का आश्वासन दिया।

एक युवा येसु धर्मसमाजी रूप में जिस प्रकार वे निर्धनों के प्रति चिन्तित रहे थे उसी प्रकार   दक्षिण अमरीका में अपनी यात्रा के दौरान भी सन्त पापा फ्राँसिस निर्धनों एवं भुला दिये गये लोगों के प्रति अपनी उत्कंठा प्रदर्शित करेंगे। ऐसी अपेक्षा की जा रही है कि एक्वाडोर, बोलिविया तथा पारागुए में अपनी यात्रा के दौरान वे असमानता एवं पर्यावरणीय ह्रास के संरचनात्मक कारणों के विरुद्ध एक अहिंसक ख्रीस्तीय क्रान्ति का आह्वान करें तथा क्षेत्र में काथलिक कलीसिया की गिरती भागीदारी के प्रचलन को उलटने का प्रयास करें।

वस्तुतः, यात्रा के पड़ावों का चयन भी प्रतीकात्मक हैः हालांकि, दक्षिण अमरीका के इन तीनों ही देशों में जन-जातियों अथवा देशज जातियों का वर्चस्व है तथापि, प्रायः, इनके बारे में बाद में सोचा जाता है। ग़ौरतलब है कि सन्त पापा अपनी मातृभूमि आर्जेटीना नहीं जा रहे हैं जो अन्य दक्षिण अमरीकी देशों की तुलना में अपेक्षाकृत धनवान एवं समृद्ध देश है।

इस यात्रा के दौरान सन्त पापा बोलिविया में एक कुख्यात कारावास, पारागुए में नदी के तट पर बसी एक झुग्गी झोपड़ी में रहनेवाले ग्रामीण आप्रवासियों की बस्ती तथा सन् 1980 में बोलिविया की सैनिक तानाशाही द्वारा मौत के घाट उतार दिये गये एक येसु धर्मसमाजी पुरोहित की समाधि की भेंट करनेवाले हैं। एक्वाडोर में वे एक 91 वर्षीय दोस्त से भी मुलाकात करेंगे तथा बोलिविया की राजधानी ला पाज़ के ग़रीब क्षेत्र एल आल्तो में ख्रीस्तयाग अर्पित करेंगे।

फादर होर्हे बेरगोलियो रहते हुए बोएनुस आयरस में सन्त पापा फ्राँसिस, प्रायः, झुग्गी झोंपड़ियों के निर्धनों की भेंट किया करते थे। सन्त पापा फ्राँसिस पर  "पोप फ्राँसिस – द स्ट्रगल फॉर द सोल ऑफ कैथोलिसिज़म" शीर्षक से पुस्तक लिखनेवाले पौल वैली कहते हैं: "चूँकि फ्रांसिस दक्षिणी गोलार्द्ध के सन्त पापा हैं वे स्थिति को अलग नज़रिये से देखते हैं। सम्भवतः, अतीत के कुछ सन्त पापाओं से भी अधिक, उनकी दृष्टि, वाशिंगटन की आम सहमति से अस्तित्व में रहनेवाले पूँजीवाद के प्रति अधिक सन्देहात्मक और शंकालु है।  

दक्षिण अमरीका में हालांकि मध्यवर्ग विकस के पथ पर चला है तथापि, धन की विशाल असमानताएँ क्षेत्र को विभाजित कर रही हैं। रोमी काथलिक कलीसिया में विभाजन उत्पन्न करनेवाले, सन् 1970 एवं 1980 के दशकों के शीत युद्ध का अन्त हो चुका है, किन्तु इसके सुस्त नतीज़ों के धब्बे अभी भी क्षेत्र की राजनीति में देखे जा सकते हैं। अनेक राष्ट्र आर्थिक प्रगति एवं प्रजातंत्रवाद को कायम रखने और साथ ही पर्यावरण की सुरक्षा व भ्रष्टाचार को कम करने के लिये संघर्षरत हैं।

लातीनी अमरीका के अनेक लोगों का यह विश्वास दृढ़ है कि सन्त पापा फ्राँसिस उनके अपने हैं- ऐसे व्यक्ति जिन्होंने निर्धनों के बीच काम किया है तथा जो एक ऐसी आर्थिक और राजनीतिक यथास्थिति के खिलाफ जमकर बरसे हैं जिसने, उनके अनुसार, लातीनी अमरीका के एक तिहाई लोगों तथा विश्वव्यापी स्तर पर लाखों लोगों को निर्धनता में जीवन यापन के लिये बाध्य किया है।  

कोलोम्बिया के विख्यात गायक हुआन वास्केज़ ने कहा कि उनका विश्वास है कि सन्त पापा फ्राँसिस दीर्घकाल से उस क्षेत्र में बने विभाजन के घावों का उपचार कर सकेंगे।

सन्त पापा की उक्त यात्रा की कार्यक्रम सूची में अत्यधिक महत्वपूर्ण है बोलिविया के सान्ता क्रूज़ में वाटिकन द्वारा समर्थित "लोकप्रिय अभियानों के विश्व सम्मेलन" को सम्बोधन। यह सम्मेलन ज़मीनी सामाजिक कार्यकर्ताओं का इस तरह का दूसरा अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन है। पहला सम्मेलन, अक्टूबर माह में, वाटिकन में सम्पन्न हुआ था जिसमें सन्त पापा फ्राँसिस ने "पैसों के साम्राज्य" को अपदस्थ करने का आह्वान कर इसे, सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त, सैन्य संघर्षों और पर्यावरण के ह्रास के लिये दोषी ठहराया था।     

कचरा बीनने वाले, सड़क विक्रेताओं और कारीगरों तथा घरेलू उद्योगों के प्रतिनिधियों से सन्त पापा ने कहा था कि हर वर्ग के श्रमिक को "मर्यादित वेतन, सामाजिक सुरक्षा तथा पेंशन योजना के तहत रहने का अधिकार है। उन्होंने "हर परिवार के लिये एक आवास" का भी आह्वान किया था और कहा था कि "भूमि, आश्रय एवं रोज़गार पवित्र अधिकार हैं"। उन्होंने यह शिकायत भी की थी कि यदि वे इस प्रकार की बातें करते हैं तो कुछ लोग यह निष्कर्ष निकालते हैं कि सन्त पापा फ्राँसिस कम्यूनिस्ट है।"   

अकादमी जगत के कई विशेषज्ञों एवं कलीसियाई याजकवर्ग के कई प्रतिनिधियों का मानना है कि निर्धनों के पक्ष में सक्रिय कार्य करने हेतु कलीसिया का आह्वान कर सन्त पापा फ्राँसिस, 50 वर्ष पूर्व लातीनी अमरीका में प्रचलित, विवादास्पद लिबरेशन थेओलोजी यानि विमोजन धर्मतत्वविज्ञान का, पुनर्वास चाहते हैं। उनका कहना है कि सन्त पापा ने विमोचन धर्मतत्वविज्ञान के उस भाग को चुना है जिसमें आमदनी की असमानता एवं पर्यावरण के ह्रास से निर्धन बनते लोगों की मदद का अनुरोध छिपा है।

एक्वाडोर, बोलिविया एवं पारागुए में सन्त पापा फ्राँसिस की सात दिवसीय यात्रा निर्धनों को अर्पित एक अनमोल उपहार है। साथ ही, इन देशों के काथलिक धर्मानुयायियों में विश्वास और आशा की लौ प्रज्वलित करने का स्वर्णिम अवसर है। इन देशों में आरम्भ ही से काथलिक धर्म का वर्चस्व रहा है, हालांकि, हाल के वर्षों में प्रॉटेस्टेण्ट ख्रीस्तीय सम्प्रदाय तथा इससे जुड़े कई धर्मपन्थ सक्रिय हो उठे हैं। सन् 1970 ई. में बोलिविया में 89% तथा एक्वाडोर एवं पारागुए में 95% लोग काथलिक धर्मानुयायी थे जो, विगत वर्ष प्रकाशित आँकड़ों के अनुसार, 77%, 79% तथा 90 % रह गये हैं। अमरीका के मियामी विश्वविद्यालय में धार्मिक अध्ययन एनं अनुसन्धान के प्राध्यापक मिखेले मालदोनादो ने कहा, "लातीनी अमरीकी लोग काथलिक कलीसिया का परित्याग कर रहे हैं क्योंकि वे ईश्वर के संग अधिक व्यक्तिगत सम्बन्ध की खोज में लगे हैं तथा एक सजीव एवं कम औपचारिक कलीसियाई अनुभव की अभिलाषा करते हैं।" 

सन्त पापा फ्राँसिस लातीनी अमरीका के लोगों की इस अभिलाषा को पूरा कर सकेंगे अथवा नहीं?  सम्भवतः, इस प्रश्न का उत्तर हमें एक्वाडोर, बोलिविया तथा पारागुए में, 05 जुलाई से 12 जुलाई तक जारी, सन्त पापा फ्राँसिस की प्रेरितिक यात्रा के बाद ही मिल सकेगा।

     








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