2015-06-21 12:03:00

ट्यूरिन, इटलीः श्रम जगत को सन्त पापा फ्राँसिस का सन्देश


ट्यूरिन, इटली, रविवार, 21 जून 2015 (सेदोक): ट्यूरिन के पियासेट्टा रेआले चौक पर "फियेट" मोटर कम्पनी के अध्यक्ष और निर्देशक सरजियो मारखियोन के नेतृत्व में श्रम जगत के लोगों ने सन्त पापा फ्राँसिस का साक्षात्कार कर उनका सन्देश सुना।

सन्त पापा को सुनने से पूर्व कुछ श्रमिकों ने अपने- अपने साक्ष्य प्रस्तुत कर श्रम जगत की कठिनाइयों से उन्हें अवगत कराया।

श्रमिकों के साथ एकात्मता दर्शाते हुए सन्त पापा ने कहा, "आपके साक्ष्यों से यह बात उभर कर सामने आती है कि आर्थिक संकट द्वारा उत्पन्न समस्याओं के बावजूद आप लोग ज़िम्मेदार बने रहे तथा अपने परिजनों का समर्थन प्राप्त कर अपने दायित्वों को पूरा करने में लगे रहे।"

सन्त पापा ने कहा कि ट्यूरिन में उनकी भेंट श्रम जगत के लोगों मुलाकात से शुरु हुई है इसलिये श्रम जगत से जुड़ी समस्याओं पर ध्यान केन्द्रित करना स्वाभाविक है। उन्होंने कहाः "विशेष रूप से, मैं बेरोज़गार युवाओं, अनिश्चित्त श्रमिकों, छटनी के कारण नौकरियों से बाहर होने लिये बाध्य रोज़गारों तथा उद्योगों के बन्द हो जाने से बेकार हुए उद्यमियों, दस्तकारों एवं शिल्पकारों के प्रति अपना सामीप्य व्यक्त करना चाहता हूँ।"  

सन्त पापा फ्राँसिस ने कहाः "श्रम केवल अर्थव्यवस्था के लिए ही आवश्यक नहीं है अपितु यह व्यक्ति के लिये, उसकी गरिमा के लिये तथा समाज में उसके समावेश के लिये अनिवार्य है।" 

उन्होंने कहा, "ऐतिहासिक रूप से, ट्यूरिन शहर नौकरियों के लिये आकर्षण का एक केन्द्र रहा है किन्तु आर्थिक संकट के दौर की मार इसे भी झेलनी पड़ी हैः नौकरियों की कमी है, आर्थिक और सामाजिक असमानताएँ बढ़ती जा रही हैं, अनेक लोग निर्धन हो गये हैं तथा आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य प्राथमिक आवश्यकताओं की कमी से सम्बन्धित समस्याओं का सामना कर रहे हैं।" इसके अतिरिक्त, "आप्रवास प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहन देता है किन्तु आप्रवासियों को ही समस्याओं के लिये दोषी ठहराना सरासर ग़लत है, क्योंकि वे ख़ुद असमानताओं, फेंक देनेवाली  आर्थिक प्रणाली और युद्धों के शिकार हैं।"

इस पृष्ठभूमि में सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा, "हम फेंक देनेवाली आर्थिक प्रणाली के बहिष्कार के लिये बुलाये जाते हैं। ऐसी अर्थव्यवस्था के परित्याग हेतु जो निर्धनों को समाज से अलग रखती है। यह बच्चों को और वयोवृद्धों को अलग करती रही थी और अब बेरोज़गार युवाओं को अलग कर रही है जो समाज का 40 प्रतिशत हैं। यह भ्रष्ट आर्थिक प्रणाली उन सबको अलग कर देती है जिनमें उत्पादन की क्षमता नहीं है, यह "उपयोग करो और फेंको वाली संस्कृति में विश्वास करती है।" 

सन्त पापा फ्रांसिस ने इस बात पर बल दिया कि धन की पूजा, भ्रष्टाचार तथा हिंसा को प्रश्रय देनेवाली असमानता को दूर करना अनिवार्य है। उन्होंने इस तथ्य पर गहन चिन्ता व्यक्त की कि कुछ लोग आर्थिक संकट के बावजूद धनवान से, और अधिक धनवान बनते जा रहे हैं जबकि अधिकांश लोग निर्धन वर्ग से जुड़ गये हैं जिनमें से अनेकों को दैनिक आहार भी उपलब्ध नहीं है।

समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार की कड़ी निन्दा करते हुए सन्त पापा ने कहा, "यह तथ्य वर्तमान समाज में इस क़दर फैल गया है कि इसे सामान्य माना जाने लगा है इसलिये सबको एक साथ मिलकर अपराधी जगत के लेन-देन, धोखाधड़ी और रिश्वतखोरी से इनकार करना होगा।" उन्होंने कहा, "इस प्रकार अपनी शक्तियों को एकीकृत कर ही हम असमानता से उत्पन्न हिंसा का बहिष्कार कर पायेंगे।"         

सन्त पापा ने स्मरण दिलाया कि सम्पूर्ण समाज के हर वर्ग और हर व्यक्ति के लिये रोज़गार एक मूलभूत आवश्यकता है और इसे प्राप्त करने के लिये ऐसी आर्थिक प्रणाली की ज़रूरत है जो केवल पूँजी और उत्पादन पर ही ध्यान केन्द्रित न करे अपितु जन कल्याण की बात सोचे। अधिकारियों से उन्होंने अपील की कि वे नौकरियों के अवसर उत्पन्न करने के लिये प्रशिक्षण में निवेश का साहस करें तथा  युवाओं को प्रतिष्ठापूर्ण रोज़गार पाने के लायक बनायें। 








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