2015-06-12 20:27:00

लताविया और एस्तोनिया के धर्माध्यक्ष संत पापा से मिले


वाटिकन सिटी, शुक्रवार 12 जून, 2015 (सेदोक,वीआर) लताविया और एस्तोनिया के धर्माध्यक्षीय समिति के धर्माध्यक्षों ने बृहस्पतिवार 11 जून को परमपरागत पँचवर्षीय ‘अदलिमिना विजिट’ के तहत वाटिकन सिटी में संत पापा फ्राँसिस से मुलाक़ात की।

लताविया और एस्तोनिया के धर्माध्यक्षों को संबोधित करते हुए संत पापा ने कहा कि वे लोगों को धार्मिक उदासीनता और सापेक्षवाद से बचायें।

उन्होंने धर्माध्यक्षों से कहा, " वे पूरे उत्साह से अनवरत धर्मप्रचार में लगे रहें। येसु का सुसमाचार सब युग के प्रत्येक जन जगह और संस्कृति के लोगों के लिये है।"  

उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि वर्षों तक दोनों देशवासी उस विचारधारा के शिकार हुए जिसमें मानव मर्यादा और उसकी स्वतंत्रता का सम्मान नहीं किया गया।

संत पापा ने कहा, "सुसमाचार के नये तरीके से प्रचार करने में वे अकेले नहीं है। उन्हें चाहिये कि वे अपने पुरोहितों पर भरोसा रखें और उनसे आग्रह करें कि वे लगातार प्रार्थना करें ताकि अधिक- से -अधिक लोग सुसमाचार के प्रचार के लिये आगे आयें।

संत पापा ने धर्माध्यक्षों से आग्रह किया कि वे पुरोहितों के प्रशिक्षण अपना विशेष ध्यान दें और उनकी उचित देखभाल करें।

उन्होंने उन लोगों की तारीफ़ की जो समर्पित जीवन जीते हें । संत पापा ने कहा कि समर्पित यह न समझें कि समर्पितों की सराहना सिर्फ़ उनकी सेवाओं के लिये की जाती है पर वे इस बात को जानें कि उनकी प्रशंसा इसलिये की जाती है क्योंकि उनकी अपनी विशिष्ट क्षमतायें और गुण हैं जिनके द्वारा वे ईश्वरीय प्रेम का साक्ष्य देते हैं।

संत पापा ने लोकधर्मियों की भूमिका के महत्व पर बल देते हुए कहा, " सुसमाचार के प्रचार में लोकधर्मियों का योगदान अति अनिवार्य है। वे प्रयास करें कि कलीसिया के बातों को ठीक से समझें विशेष करके सामाजिक जीवन संबंधि कलीसिया के निर्देशों को।"  

संत पापा ने धर्माध्यक्षों को इस बात के लिये भी प्रोत्साहन दिया कि वे अन्तरकलीसियाई, अन्तरधार्मिक, अन्तरभाषाई और अन्तरजातीय वार्ता पर भी ध्यान दें ताकि शांति की स्थापना हो सके।

संत पापा ने पारिवारिक जीवन पर विशेष बल देते हुए कहा कि आज ज़रूरत है पारिवारिक जीवन को समृद्ध करने की क्योंकि यह ईश्वर की ओर से दिया गया वरदान है और  उन्होंने इसीलिये नर – नारी को अपने अनुरूप बनाया है।

संत पापा ने कहा कि कई लोग विवाह को एक तरह का ‘भावनात्मक संतुष्टि’ के रूप में देखते हैं जिसे अपनी इच्छा के अनुसार संशोधित किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि इस प्रकार का ‘लघुकृत गर्भाधान’ विवाह ख्रीस्तीयों को प्रभावित करता है और वे आसानी से विवाह विच्छेद की बात सोचने लगते हैं। उन्होंने धर्माध्यक्षों से कहा वे विवाह के लिये युवा दम्पतियों को उचित शिक्षा दें ताकि उनके बच्चे इसके शिकार न हो जायें।

 

 

 








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