2015-06-07 16:11:00

अंतरधार्मिकवार्ता शांति का एक अनिवार्य शर्त


सारायेवो, रविवार, 7 जून 2015 (एशियान्यूज़)꞉ ″अंतरधार्मिक वार्ता द्वारा व्यक्ति अपने दैनिक जीवन के यथार्थ अनुभव को आनन्द और दुःख, संघर्ष और आशा के साथ बाँटता है। इस आदान प्रदान द्वारा लोग एक-दूसरे के प्रति अपने दायित्वों को समझ पाते तथा सभी के लिए एक सुन्दर भविष्य की योजना बनाते हैं। इसके द्वारा हम एक-दूसरे के साथ जीना सीखते हैं तथा स्वतंत्र होकर एक-दूसरे का सम्मान करते हैं। हम एक-दूसरे की प्रतिष्ठा को पहचानते एवं स्वीकार करते हैं।″ यह बात संत पापा फ्राँसिस ने सारायेवो में मुस्लिम, ऑथोडोक्स एवं काथलिक  धर्मानुयायियों के करीब 300 प्रतिनिधियों से मुलाकात करते हुए कही।

उन्होंने शनिवार 6 जून को स्थानीय फ्राँसिसकन अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थी केंद्र में अंतरधार्मिक वार्ता के प्रतिनिधियों को सम्बोधित करते हुए कहा, ″आज की मुलाकात भाईचारा एवं शांति की हमारी लालसा का चिन्ह है। यह मित्रता का साक्ष्य है आपसी सहयोग का प्रतीक है जो इन वर्षों में बढ़ गया है और जिसे आप खुद अपने दैनिक जीवन में अनुभव कर रहे हैं।″ उन्होंने कहा कि आज यहाँ एक साथ एकत्र होना ही वार्ता का एक संदेश है जिसकी खोज हर व्यक्ति करता है।       

उन्होंने अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए कहा, ″मैं याद करना चाहता हूँ विशेषकर, मुलाकात एवं मेल-मिलाप की इच्छा का फल अंतरधार्मिकवार्ता की स्थानीय समिति, जिसका गठन सन् 1997 ई. में हुई थी और जिसने मुस्लिम, ख्रीस्तीय एवं यहूदियों को एक साथ मिलाया। मैं इस कार्य से अत्यन्त खुश हूँ जिसमें राज्य के अधिकारों के साथ वार्ता, सार्वजनिक कार्यों में सहयोग तथा रिश्ता बढ़ाने को प्रोत्साहन दिया जाता है।″

संत पापा ने कहा कि अंतरधार्मिक वार्ता की समिति का गठन तथा युद्ध की समाप्ति पर निर्मित अंतरधार्मिक वार्ता एवं ख्रीस्तीय एकता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रयास, कोई आकस्मिक घटना नहीं है किन्तु यह मेल-मिलाप तथा समाज के पुनः निर्माण की आवश्यकता का प्रत्युत्तर है जो संघर्ष के कारण तोड़ दिया गया था। यहाँ अंतरधार्मिक वार्ता शांति का एक अनिवार्य शर्त है अतः यह सभी विश्वासियों का कर्तव्य है।

संत पापा ने अंतरधार्मिकवार्ता का अर्थ बतलाते हुए कहा कि यह आस्था पर वार्ता करने के पूर्व मानव अस्तित्व पर वार्तालाप है और यह वार्तालाप दैनिक जीवन के यथार्थ अनुभव को इसके आनन्द और दुःख, संघर्ष और आशा की भावनाओं के साथ बाँटता है।

वार्ता द्वारा भाईचारा की भावना को पहचाना जाता एवं उसका विकास किया जाता है जो न्याय, स्वतंत्रता और शांति जैसे नैतिक मूल्यों का समर्थन करता एवं उसे प्रोत्साहन देता है। वार्ता मानवता एवं एकता निर्माण का स्कूल है जो एक ऐसे समाज का निर्माण करता है जो सहनशीलता और आपसी सम्मान पर स्थापित हो।

यही कारण है कि अंतरधार्मिकवार्ता को धार्मिक समुदाय के कुछ गिने चुने नेताओं तक सीमित नहीं रखा जा सकता किन्तु इसका विस्तार जितना अधिक सम्भव हो समाज के प्रत्येक व्यक्ति तक किया जाना चाहिए। संत पापा ने कहा कि इसमें युवाओं को विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए जो देश के भावी निर्माता हैं। उन्होंने सलाह दी कि प्रामाणिक और प्रभावी वार्ता के लिए एक ठोस पहचान का पूर्वानुमान को याद रखा जाना चाहिए। ठोस पहचान के बिना वार्ता बेकार है बल्कि यह हानि भी है।

संत पापा ने अंतरधार्मिकवार्ता की समिति द्वारा अब तक जो कार्य हुए हैं उसके लिए उनकी सराहना की तथा शांति स्थापना के प्रयास हेतु प्रत्येक को प्रोत्साहन दिया। उन्होंने कहा, ″धर्मों के नेता होने के नाते बोस्निया तथा हेर्जेगोविना में आप प्रथम संरक्षक हैं। मैं आश्वासन देता हूँ कि काथलिक कलीसिया अपना पूर्ण सहयोग एवं मदद की तत्परता दिखाना जारी रखेगा।″   

संत पापा ने क्षमा एवं मेल-मिलाप के रास्ते पर आगे बढ़ने का प्रोत्साहन देते हुए कहा कि यद्यपि यह यात्रा लम्बी है किन्तु कठिनाईयों से निराश न होकर धैर्य के साथ आगे बढ़ें। इतिहास से सीख लेते हुए शोक तथा परस्पर दोषारोपण का परित्याग करते एवं ईश्वर द्वारा शुद्ध किये जाए जो वर्तमान एवं भविष्य दोनों के मलिक हैं। वे ही हमारे भविष्य हैं तथा शांति के अनन्त स्रोत भी।

″यह शहर जो अपने दुःखद अतीत के कारण युद्ध और विनाश का प्रतीक बन गया है आज विविध लोगों, संस्कृति एवं धर्म के कारण एकता का चिन्ह बन जाए एक ऐसा स्थल जो विभिन्नता का भय नहीं किन्तु एक साथ बढ़ने का माध्यम बन जाए। यह धरती जिसकी जड़ें मानवता पर जमकर शांति एवं भ्रातृत्व पूर्ण भविष्य का निर्माण करती है एक संदेश बन जाए कि विविधता के बावजूद एक साथ जीना सम्भव है।  

संत पापा ने उनकी उपस्थिति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की तथा उन्हें प्रार्थना का आश्वासन दिया।

 








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