2015-05-20 16:30:00

परिवार की अनिवार्य विशेषताएँ


वाटिकन सिटी, बुधवार, 20 मई 2015 (वीआर सेदोक)꞉ बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा फ्राँसिस ने वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में विश्व के कोने-कोने से एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को सम्बोधित किया।

उन्होंने इतालवी भाषा में कहा, ″ख्रीस्त में मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, आज की धर्मशिक्षा माला में हम ‘परिवार की अनिवार्य विशेषताओं’ पर चिन्तन करें।″   

उन्होंने कहा, ″परिवार की स्वाभाविक बुलाहट है अपने बच्चों को शिक्षा प्रदान करना जिससे कि वे अपने तथा दूसरों के प्रति ज़िम्मेदारियों में बढ़ सकें। यह बात अत्यन्त सरल प्रतीत हो सकती है किन्तु इसमें भी कई कठिनाईयाँ हैं। उन माता-पिताओं के लिए अपने बच्चों को शिक्षा देना कठिन हो सकता है जो मात्र शाम को अपने बच्चों से मुलाकात करते हैं जब वे थक कर घर लौटते हैं। उन माता पिताओं के लिए यह काम और भी कठिन हो सकता है जो एक-दूसरे से अलग रहते हैं तथा अपनी परिस्थितियों से परेशान रहा करते हैं।  

संत पापा ने कहा, ″किस प्रकार बच्चों को शिक्षा दी जाए? किन परम्पराओं को हमारे बच्चों को हस्तांतरित किया जाए?″

उन्होंने कहा, ″पारिवारिक शिक्षा पर युवा पीढ़ी को वास्तविक या काल्पनिक नुकसान से बचाने हेतु सभी प्रकार के बौद्धिक "आलोचकों" ने माता-पिता का मुंह कई मायनों में बंद कर दिया है। स्वैच्छाचारिता, घनिष्ठ मित्रतावाद, समानतावाद तथा टकराव उत्पन्न करने वाला भावनात्मक दमन परिवार को दोषी करार देता है।

वास्तव में यह परिवार एवं समाज के बीच एक खाई उत्पन्न करता है। माता पिता और बच्चों के बीच आपसी विश्वास को कम करता है जिसके कारण परिवार संकट में पड़ जाता है। ऐसे कई उदाहरण है जिसे स्कूल में शिक्षक एवं अभिभावकों के बीच संबंध प्रभावित होता है। कई बार अविश्वास एवं तनाव की भावना उत्पन्न हो जाती है जिसका प्रभाव निश्चित रूप से बच्चों पर पड़ता है। दूसरी ओर, ऐसे विशेषज्ञों की खोज की गयी है जो माता पिता की भूमिका अदा करते हैं। भावनात्मक जीवन, व्यक्तित्व एवं उसके विकास, अधिकार एवं कर्तव्य साथ ही लक्ष्य, उद्देश्य आदि सभी का ज्ञान वे प्रदान करते हैं।

माता पिता को उन्हें सुनना, सीखना एवं अपनाना पड़ता है। अपनी भूमिकाओं से वंचित होने के कारण वे कई बार आशंकित और अपने बच्चों पर उन्हीं का आधिपत्य अनुभव करते हैं। वे कई बार उन्हें सुधार भी नहीं सकते। उन्हें विशेषज्ञों पर ही अधिक आश्रित रहना पड़ता है यहाँ तक कि अपने बहुत ही निजी मामलों में भी। इस प्रकार माता-पिता अपने बच्चों के जीवन से स्वयं का बहिष्कार के खतरा में पड़ जाते हैं।

अतः यह स्पष्ट है कि उस प्रकार का दृष्टिकोण न स्वस्थ वर्धक, न सामंजस्यपूर्ण और न ही आपसी बात-चीत को बढ़ावा देने वाला है। वह परिवारों एवं शैक्षिक एजेंसियों के बीच समंजस्य लाने के बजाय उसका विरोध करता है।

संत पापा ने कहा कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि माता-पिता और कुछ पुरानी शिक्षा प्रणालियों में त्रुटियाँ थीं किन्तु यह भी सच है कि कुछ गल़तियाँ सिर्फ माता पिता ही कर सकते हैं। क्योंकि वे ही इसका भरपाई भी कर सकते हैं। दूसरी ओर, हम जानते हैं कि जीवन बात-चीत करने, चिंतन करने तथा विचार-विमर्श करने के लिए समय निकालने में कंजूस हो गया है। कई माता पिता अपने कामों से बंध गये हैं तथा बच्चों की नयी प्रकार की आवश्यकताओं को जुटाने में परेशान हैं। वे आज के जीवन की जटिलताओं एवं गल़ती कर देने के भय से कमजोर हो गये हैं किन्तु मात्र बात-चीत सभी समस्याओं की हल नहीं है तथा सतही बात-चीत मन और दिल की एकता प्रदान नहीं कर सकता। उसके बदले आवश्यक है बच्चों को समझना कि वे किस राह पर आगे बढ़ रहे हैं। क्या हम उनके दिल की बात समझ सकते हैं और उन सबसे बढ़कर हमें जानना चाहिए कि वे हमारा इंतजार करते हैं।

संत पापा ने कहा कि ख्रीस्तीय समुदाय पारिवारिक शिक्षा की प्रेरिताई का सहयोग करने के लिए बुलाया गया है। यह मिशन ईश वचन के प्रकाश में पूरा किया जा सकता है। प्रेरित संत पौलुस हमें माता-पिता एवं बच्चों के बीच आपसी कर्तव्यों की याद दिलाते हैं, ″बच्चे सभी बातों में अपने माता पिता की आज्ञा मानें, क्योंकि प्रभु इससे प्रसन्न होता है पिता अपने बच्चों को खिझाया नहीं करें। कहीं ऐसा न हो कि उनका दिल टूट जाये।″(कोलो.3. 20-21) संत पापा ने कहा कि उनके इस कथन का साराँश है प्यार, जिसे ईश्वर हमें प्रदान करते हैं। ″प्रेम अशोभनीय व्यवहार नहीं करता। वह अपना स्वार्थ नहीं खोजता। प्रेम न तो झुंझलाता है और न बुराई का लेखा रखता है। वह दूसरों के पाप से नहीं, बल्कि उनके सदाचरण से प्रसन्न होता है। ″(1कुरि.13꞉5-6) अच्छे परिवारों को इस बात पर ध्यान देना पड़ता है कि जिसके लिए धीरज की अति आवश्यकता है। येसु भी परिवार की शिक्षा से होकर गुजरे तथा प्रज्ञा, बुद्धि एवं अनुग्रह में बढ़े। उन्होंने कहा था कि मेरी माता और मेरे भाई-बहनें वे ही हैं जो ईश्वर वचन सुनते और उसका पालन करते हैं। यह दर्शाता है कि रिश्तों की ये जड़े किस हद तक हमें अपने आप से बाहर आकर विकसित होने में मदद करते हैं।

मानव स्वभाव में निहित गुणों के विकास द्वारा ही येसु को प्राप्त अनुग्रह पूर्ण हुई। हम कई ख्रीस्तीय माता पिताओं के आदर्श उदाहरणों को देख सकते हैं जो मानव विवेक से पूर्ण होते हैं। वे दिखाते हैं कि अच्छी पारिवारिक शिक्षा मानवतावाद की रीढ़ है। यह आपसी दूरियों, घावों तथा माता- पिता एवं बच्चों के बीच भावनात्मक संबंध की कमी को भरने में मदद करता है। यह मानव संसाधन में प्रतिबिम्बित होता है। यह प्रतिबिम्ब चमत्कार कर सकता है और ये चमत्कार आज भी कलीसिया में देखे जा सकते हैं।

इतना कह कर, संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा समाप्त की।

धर्मशिक्षा माला समाप्त करने के उपरांत उन्होंने भारत, इंगलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया वेल्स, वियेतनाम, डेनमार्क, नीदरलैंड, नाइजीरिया, आयरलैंड, फिलीपीन्स, नोर्व, स्कॉटलैंड, जापान, मॉल्टा, डेनमार्क कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, हॉंन्गकॉंन्ग, अमेरिका और देश-विदेश के तीर्थयात्रियों, उपस्थित लोगों तथा उनके परिवार के सदस्यों को विश्वास में बढ़ने तथा पुनर्जीवित प्रभु के प्रेम और दया का साक्ष्य देने की कामना करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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