2015-05-19 15:44:00

भ्रष्टाचार की संस्कृति एवं उसका अभ्यास भविष्य की आशा खो देता है


वाटिकन सिटी, मंगलवार, 19 मई 2015 (वीआर अंग्रेजी)꞉ इतालवी धर्माध्यक्षीय सम्मेलन की वार्षिक 68 वीं आम सभा हेतु वाटिकन में एकत्र धर्माध्यक्षों को सम्बोधित कर संत पापा फ्राँसिस ने उन्हें कलीसियाई संवेदनशीलता में बढ़ने का प्रोत्साहन दिया तथा भ्रष्टाचार की संस्कृति एवं उसके अभ्यास से बचने की सलाह दी।

 उन्होंने कहा, ″कलीसिया के प्रति संवेदनशीलता का अर्थ है ख्रीस्त की विनम्रता, सहानुभूति, करुणा, सच्चाई एवं विवेकशीलता को अपनाना। कलीसियाई संवेदनशीलता का अर्थ यह भी है कि व्यक्ति को न डरपोक होना और न ही विद्रोही होना चाहिए। व्यक्तिगत अथवा सामूहिक रूप से दूसरों को हराने की मानसिकता भी नहीं रखनी चाहिए।″ संत पापा ने कहा कि जब भ्रष्टाचार हावी हो जाता है तो वह व्यक्ति को कमजोर कर देता है। वह व्यक्ति को परिवार, सहकर्मियों, ईमानदार मजदूरों एवं ख्रीस्तीय समुदायों में निर्लज्ज बना देता है। वह युवाओं का जीवन नष्ट कर देता है क्योंकि भ्रष्टाचार की संस्कृति एवं उसका अभ्यास भविष्य की आशा खो देता है वह व्यक्ति को बिलकुल कमजोर एवं ग़रीब बना देता है।

संत पापा ने धर्माध्यक्षों को कलीसियाई संवेदनशीलता के दूसरे पहले के बार बतलाते हुए कहा कि भ्रष्टाचार से संघर्ष करना अनिवार्य है। संत पापा ने उनके वास्तविक कर्तव्यों की याद दिलाते हुए कहा, ″लोक धर्मियों को जिन्हें ख्रीस्तीय धर्म का सच्चा ज्ञान प्राप्त हो चुका है उन्हें न बिशप-पायलट, न मोन्सिन्योर पायलट और न ही को सफल व्यापारी चाहिए जो राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक प्रशासन अच्छी तरह सम्भाल सके किन्तु इसके विपरीत एक मेषपालीय धर्माध्यक्ष चाहिए।″

ज्ञात हो कि इताली धर्माध्यक्षीय सम्मेलन की 68 वीं आम सभा 18 मई से 21 मई तक आयोजित की गयी है जिसमें संत पापा फ्राँसिस के प्रेरितिक प्रबोधन इवंनजेली गौदियुम पर चिंतन किया जाएगा।

 








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