2015-05-16 10:19:00

प्रेरक मोतीः सन्त साईमन स्टॉक (13 वीं शताब्दी)


वाटिकन सिटी, 16 मई सन् 2015:

साईमन स्टॉक का जन्म इंग्लैण्ड के केन्ट में हुआ था। किंवदन्ती है कि साईमन का नाम स्टॉक यानि "पेड़ का तना" इसलिये पड़ा कि 12 वर्ष का आयु में ही वे जंगलों में जाकर एकान्त वास करने लगे थे और इस दौरान वे पेड़ के तने के अन्दर निवास किया करते थे। युवावस्था में ही साईमन ने समर्पित जीवन यापन का निर्णय ले लिया था जिसके लिये वे पवित्रभूमि की यात्रा पर चल दिये थे। जैरूलालेम पहुंच कर वे कारमेल की मरियम को समर्पित मठ में भर्ती हो गये और कुछ ही समय बाद मठाध्यक्ष नियुक्त कर दिये गये। कुछ वर्षों बाद वे मठवासियों के एक दल को लेकर पुनः यूरोप लौटे तथा अनेक स्थलों पर उन्होंने कारमेल धर्मसमाजी मठों की स्थापना की। इंग्लैण्ड के कैमब्रिज एवं ऑक्सफर्ड के अलावा उन्होंने फ्राँस के पेरिस तथा इटली के बोलोन्या नगरों में मठों को स्थापित किया तथा भिक्षु धर्मसमाज रूप में कारमेल मठवासियों को प्रतिष्ठापित किया।

1254 ई. में वे, लन्दन में, कारमेल धर्मसमाज प्रमुख नियुक्त किये गये थे। उस समय ख्रीस्तीय धर्म को उत्पीड़ित किया जा रहा था तथा भिक्षु धर्मसमाजियों का जीवन भी कष्टकर दौर से गुज़र रहा था। इसी समय 16 जून, 1251 ई. को साईमन स्टॉक को माता मरियम के दर्शन प्राप्त हुए जिसमें मरियम ने उनसे कहा, "मेरे प्रिय पुत्र, अपने धर्मसमाज के लिये इस स्कापुलर को ग्रहण करो; यह मेरे अनुग्रह का विशेष चिन्ह है जो मैंने तुम्हारे लिये तथा माऊन्ट कारमेल के बच्चों के लिये हासिल किया है। वह व्यक्ति जो इसे धारण कर मरेगा, नर्क की अग्नि से सुरक्षित रहेगा। यह मुक्ति का फलक, ख़तरे के क्षण की ढाल तथा शांति एवं सुरक्षा की विशिष्ट प्रतिज्ञा है।"

स्कापुलर लैटिन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है कन्धे पर धारण किया जानेवाला अंसफलक। कपड़े के दो टुकड़ों से इसे बनाया जाता है जो धागों से बन्धे होते हैं, एक टुकड़ा वक्ष पर और एक पीठ पर धारण किया जाता है। मरियम के दर्शन पानेवाले कारमेल धर्मसमाजी भिक्षु साईमन स्टॉक का पर्व 16 मई को मनाया जाता है।  

चिन्तनः "प्रज्ञा का मूल स्रोत प्रभु पर श्रद्धा है। बुद्धिमानी परमपावन ईष्वर का ज्ञान है; क्योंकि मेरे द्वारा तुम्हारे दिनों की संख्या बढ़ेगी और तुम्हारी आयु लम्बी होगी। यदि तुम प्रज्ञ हो, तो उस से तुम को लाभ होगा। यदि तुम अविश्वासी हो, तो उस से तुम्हें हानि होगी" (सूक्ति ग्रन्थ 9:10-12)। 








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