2015-05-13 12:19:00

प्रेरक मोतीः मौनधारी सन्त जॉन (454-558)


वाटिकन सिटी 13 मई सन् 2015

मौनधारी सन्त जॉन का जन्म आरमेनिया के निकोपोलिस नगर में लगभग सन् 454 ई. को हुआ था। आध्यात्मिक साधना एवं मौनधारण के प्रति जॉन के लगाव के कारण उनका नाम मौनधारी सन्त जॉन पड़ गया था।

मौनधारी सन्त जॉन सेनानायकों एवं शासकों के परिवार में जन्में थे। 18 वर्ष की आयु में जॉन ने अपने माता पिता को खो दिया था जिसके बाद वे एकान्तवास के प्रति अभिमुख हुए थे। ध्यान, मनन-चिन्तन एवं आध्यात्मिक साधना हेतु उन्होंने इस छोटी सी उम्र में ही एक मठ की स्थापना की जहाँ वे अपने कुछेक साथियों के साथ रहने लगे। जॉन के मार्गदर्शन में इन मठवासियों ने कठोर श्रम एवं भक्तिमय जीवन यापन किया। नेतृत्व एवं मार्गदर्शन के लिये शीघ्र ही जॉन विख्यात हो गये जिसके चलते आरमेनिया स्थित सेबास्ते के महाधर्माध्यक्ष ने उन्हें कोलोनिया का धर्माध्यक्ष नियुक्त कर दिया। इस तरह 28 वर्ष की आयु में जॉन धर्माध्यक्ष अभिषिक्त कर दिये गये। वस्तुतः, वे धर्माध्यक्ष का पद ग्रहण नहीं करना चाहते थे बल्कि केवल समुदाय की सेवा करना चाहते थे। तथापि, महाधर्माध्यक्ष के आग्रह पर नौ वर्ष तक जॉन धर्माध्यक्ष पद रक कार्य करते रहे। तदोपरान्त उन्होंने एकान्तवास का निर्णय ले लिया और जैरूसालेम चले गये।

मौनधारी सन्त जॉन के आत्मकथा लेखक का कहना है कि जैरूसालेम पहुँचने के उपरान्त एक रात जब जॉन प्रार्थना में लीन थे तब उन्होंने वायुमण्डल में एक विशाल क्रूस का चिन्ह देखा तथा एक वाणी सुनी जो उनसे कह रही थी, "यदि तुम मुक्ति चाहते हो, तो इस प्रकाश का अनुसरण करो।" जॉन, प्रकाश का अनुसरण करते गये जो सन्त साबास के लाओरा मठ के पास जाकर रुक गया।

38 वर्ष की उम्र में जॉन इस मठ प्रविष्ठ हुए जहाँ पहले से ही लगभग डेढ़ सौ मठवासी जीवन यापन करते थे। जॉन के आग्रह पर मठाध्यक्ष ने उन्हें मठ में ही एकान्तवास की अनुमति दे दी। एक अलग कोठरी में जॉन प्रार्थना, मनन चिन्तन एवं बाईबिल पाठ में अपना समय व्यतीत करने लगे। सप्ताह के पाँच दिन वे उपवास रखते तथा शनिवारों एवं रविवारों को सार्वजनिक ख्रीस्तयागों में भाग लिया करते थे। जैरूसालेम स्थित सन्त साबास के लाओरा मठ में, मौनधारी सन्त जॉन, 67 वर्ष तक रहे। 13 मई, 558 ई. को उनका निधन हो गया था। मौनधारी सन्त जॉन का पर्व 13 मई को मनाया जाता है।    

चिन्तनः "वह धर्मियों को सफलता दिलाता और ढाल की तरह सदाचारियों की रक्षा करता है। वह धर्ममार्ग पर पहरा देता और अपने भक्तों का पथ सुरक्षित रखता है। तुम धार्मिकता और न्याय, सच्चाई और सन्मार्ग का मर्म समझोगे। प्रज्ञा तुम्हारे हृदय में निवास करेगी और तुम्हें ज्ञान से आनन्द प्राप्त होगा" (सूक्ति ग्रन्थ 2: 7-10)।  








All the contents on this site are copyrighted ©.