2015-05-09 15:42:00

कलीसिया एकता का स्थान


वाटिकन सिटी, शनिवार, 9 मई 2015 (वीआर सेदोक)꞉ ″कलीसिया को, एकता की खोज में विवाद अथवा टकराव का स्थल, एक दूसरे को धोखा देने एवं अपने तर्क को साबित करने हेतु प्रकोष्ठ तैयार करने वाला स्थान नहीं होना चाहिए।″ यह बात संत पापा फ्राँसिस ने वाटिकन स्थित संत मर्था के प्रार्थनालय में पावन ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए प्रवचन में कही।

उन्होंने कहा, ″पवित्र आत्मा मन-परिवर्तन हेतु कृपा प्रदान करता है। वह कलीसिया का संचालन करता और कलीसिया के सभी सदस्यों के बीच एकता स्थापित करता है।″

संत पापा ने पवित्र आत्मा के अनोखे कार्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पवित्र आत्मा कलीसिया में गतिशीलता उत्पन्न करता है जो आरम्भ में भ्रम पैदा करने वाला प्रतीत होता है किन्तु जब उस परिवर्तन को प्रार्थना और वार्ता के मनोभाव से अपनाया जाता है तो इसे ख्रीस्तीयों के बीच एकता स्थापित होती है।

संत पापा ने प्रवचन में प्रेरित चरित से लिए गये पाठ पर चिंतन करते हुए कलीसिया के आरम्भिक समय में येरूसालेम में सम्पन्न प्रथम कलीसियाई महासभा की याद की तथा कहा, ″पवित्र आत्मा की सहायता से वे कई विचारों का समाधान कर सकें एवं एक निष्कर्ष पर पहुँच पाये। यहूदी समाज की संहिता से आसक्त होने के कारण उन दिनों ख्रीस्तीय समुदाय में तनाव की स्थिति थी जो उस संहिता को ख्रीस्तीयों के बीच भी लागू करना चाहते और जिसका विरोध तारसुस के संत पौलुस ने किया था।″

संत पापा ने इस समस्या के हल का खुलासा करते हुए कहा कि उन्होंने एक सभा बुलाई तथा सभी ने अपने अपने तर्क दिए। उन्होंने इस मुद्दे पर दुश्मन की तरह नहीं किन्तु भाई-बहन की तरह विचार किया। उन्होंने अपने तर्क को साबित करने के लिए कोई लॉबी तैयार नहीं की। अपनी बातों में जीत हासिल करने के लिए वे सरकारी अधिकारियों की शरण भी नहीं ली और न ही किसी की हत्या की। उन्होंने प्रार्थना और वार्ता का रास्ता अपनाया। संत पापा ने कहा कि यही पवित्र आत्मा का कार्य है।

पवित्र आत्मा सामंजस्यपूर्ण एकता उत्पन्न करता है। संत पापा ने इस बात पर बल दिया कि पवित्र आत्मा हमें सामंजस्य की भावना में बढ़ने हेतु मदद करता है यही कारण है कि आरम्भिक कलीसिया के धर्मगुरूओं ने येरूसालेम में महासभा आयोजित की तथा अंतिम निर्णय को सभी ने  स्वीकार किया।

 

संत पापा ने ग़ौर किया कि ऐसी कलीसिया जहाँ किसी प्रकार की समस्या न हो वहाँ पवित्र आत्मा की उपस्थिति नहीं हो सकता क्योंकि पवित्र आत्मा गतिशीलता उत्पन्न करता है जिसके कारण तर्क, धोखा और विवाद जैसी बातें दिखाई पड़ती हैं किन्तु अंत में, सामंजस्यपूर्ण एकता उभरकर सामने आता है। संत पापा ने एकता की भावना को मात्र भली इच्छा नहीं किन्तु पवित्र आत्मा का फल कहा।

उन्होंने ने विश्वासियों से अपील की वे प्रार्थना करें ताकि ईश्वर हमें पवित्र आत्मा प्रदान करे जिससे कि वह कलीसिया का मार्गदर्शन करे।

 








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