2015-04-13 08:23:00

प्रेरक मोतीः सन्त मार्टिन, सन्त पापा (649-655)


वाटिकन सिटी 13 अप्रैल सन् 2015

सन्त पापा मार्टिन प्रथम 21 जुलाई सन् 649 ई. से 16 सितम्बर सन् 655 ई. तक काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष थे। उनका जन्म इटली के ऊम्ब्रिया प्रान्त के टोडी नगर में हुआ था। इसीलिये उनके जन्म स्थल को आज भी "पियान दी सान मार्तीनो" कहा जाता है।

सन्त पापा थियोदोर प्रथम के बाद सन्त पापा मार्टिन प्रथम कलीसिया के परमाध्यक्ष नियुक्त किये गये थे। सत्यभाषी होने के कारण तत्कालीन सम्राट कॉन्सतान्स के हाथों उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था। बीज़ेनटाईन रीति के परमाध्यक्षीय काल में वे एकमात्र सन्त पापा थे जिनकी नियुक्ति को कॉन्सटेनटीनोपल की प्राधिधर्माध्यक्षीय पीठ का अनुमोदन नहीं मिला था।

उस युग में यह धारणा प्रचलित थी कि प्रभु येसु मसीह की इच्छा की प्रकृति मानवीय न होकर केवल ईश्वरीय थी। इस भ्रामक विचारधारा को समाप्त करने के लिये सन्त पापा मार्टिन प्रथम ने अपनी आवाज़ उठाई और घोषित किया कि येसु के दो स्वभाव हैं ईश्वरीय और मानवीय अतः दो इच्छाएँ हैं: मानवीय और ईश्वरीय। इसी पर सम्राट कॉन्सतान्स चिढ़ गये तथा उन्होंने एक आदेश जारी कर इस विषय पर चर्चा करना निषिद्ध कर दिया।

प्रतिबन्ध के बावजूद सन्त पापा मार्टिन प्रथम ने लोगों को धर्मशिक्षा देना बन्द नहीं किया। इसपर सम्राट ने उनका अपहरण करवाया तथा उन्हें क्रिमेया द्वीप में निष्कासित कर दिया। यहाँ सन्त पापा मार्टिन प्रथम ने भूख, प्यास तथा नाना प्रकार की यातनाएँ सही किन्तु सत्य पर अटल रहे।

सन्त पापा मार्टिन प्रथम के पत्रों से पता चलता है कि ख़ुद उनके मित्रों ने, सम्राट के भय से,  उनका साथ छोड़ दिया था। निष्कासन में दो वर्ष रहने के बाद सन् 656 ई. में सन्त पापा मार्टिन प्रथम का निधन हो गया।

काथलिक कलीसिया में सन्त पापा मार्टिन प्रथम को शहीद घोषित किया गया है जिनकी स्मृति 13 अप्रैल को मनाई जाती है।  

चिन्तनः "धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं! स्वर्गराज्य उन्हीं का है। धन्य हो तुम जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम पर अत्याचार करते हैं और तरह-तरह के झूठे दोष लगाते हैं। खुश हो और आनन्द मनाओ स्वर्ग में तुम्हें महान् पुरस्कार प्राप्त होगा। तुम्हारे पहले के नबियों पर भी उन्होंने इसी तरह अत्याचार किया।  प्रभु ईश्वर में अपने विश्वास को सुदृढ़ कर हम अपनी पीड़ओं को उनके सिपुर्द करें" (सन्त मत्ती 5:10-13)।   

 








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