2015-04-08 12:21:00

अन्तरराष्ट्रीय रोमा डे पर यूरोपीय कलीसियाओं ने जारी किया सन्देश


वाटिकन सिटी, बुधवार, 8 अप्रैल 2015 (सेदोक): यूरोपीय कलीसियाओं के सम्मेलन ने आठ अप्रैल  को मनाये जानेवाले अन्तरराष्ट्रीय रोमा दिवस के उपलक्ष्य में मंगलवार को एक सन्देश जारी कर कहा कि प्रत्येक मनुष्य ईश प्रतिरूप में सृजित मानव प्राणी है भले ही उसकी भाषा और संस्कृति भिन्न ही क्यों न हो।

यूरोपीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों की समिति के अध्यक्ष कार्डिनल पीटर एर्दों तथा यूरोप की कलीसियाओं के सम्मेलन के अध्यक्ष एंगलिकन धर्माध्यक्ष क्रिस्टफर हिल्स ने संयुक्त रूप से यह सन्देश जारी किया है।

घुमक्कड़ या बनजारा जाति के खानाबदोश लोगों की समस्याओं के प्रति चेतना जागरण हेतु प्रतिवर्ष आठ अप्रैल को अन्तरराष्ट्रीय रोमा दिवस मनाया जाता है।

सन्देश में कहा गया कि भाषा और संस्कृति भिन्न होने के बावजूद सभी मनुष्य समान हैं तथा उनकी समान प्रतिष्ठा है जिसका सम्मान किया जाना चाहिये। ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों से आग्रह किया गया है कि वे खानाबदोशों की समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनें तथा उनकी हर सम्भव सहायता करें।

यूरोप के ख्रीस्तीय नेताओं ने सन्देश में लिखा, "येसु ख्रीस्त ने सब लोगों में सुसमाचार सुनाने के लिये हमें बुलाया है, इनमें, विशेष रूप से, निर्धन और हाशिये पर जीवन यापन करने वाले लोग शामिल हैं। हम अपने समुदायों से अपील करते हैं कि वे रोमा जाति के खानाबदोशों के प्रति उदार बनें जो प्रायः समाज से बहिष्कृत रहते तथा हाशिये पर जीवन यापन करते हैं।"

इस बात की ओर भी ध्यान आकर्षित कराया गया कि अपने "इतिहास के दौरान कठिनाइयों के बावजूद रोमा अल्पसंख्यकों ने अपनी समृद्ध संस्कृति को बरकरार रखा है जिसमें पारिवारिक जीवन एवं बच्चों के प्रति प्रेम, ईश्वर में विश्वास, मृतकों का सम्मान तथा संगीत एवं नृत्य का आनन्द जैसे मूल्य शामिल हैं। हम इस संस्कृति को सृष्टिकर्त्ता ईश्वर का वरदान मानते जिसका सम्मान किया जाना तथा जिसे समर्थन दिया जाना चाहिये।

यूरोप के खानाबदोशों के बारे में कहा गया कि जातिवादी भेदभाव के कारण यूरोप में इस समय रोमा जाति के लोगों की स्थिति अत्यधिक दयनीय है जो बेरोज़गारी तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण की कमी के कारण निर्धनता में जीवन यापन को बाध्य हैं। हालांकि कई ख्रीस्तीय कलीसियाएँ शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य आदि योजनाओं द्वारा रोमा जाति के लोगों की सेवा कर रहीं हैं तथापि समाज की मुख्यधारा से इन लोगों को जोड़ने के लिये उनके विरुद्ध व्याप्त भ्राँतियों को दूर करना ज़रूरी है। 








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