2015-03-31 12:24:00

महावीर जयन्ती के उपलक्ष्य में वाटिकन ने भेजा शुभकामना सन्देश


वाटिकन सिटी, मंगलवार, 31 मार्च 2015 (सेदोक): वाटिकन ने महावीर जयन्ती के उपलक्ष्य में विश्व में व्याप्त जैन धर्म के अनुयायियों के प्रति शुभकामनाएँ अर्पित करते हुए एक सन्देश की प्रकाश्ना की है।

वाटिकन स्थित परमधर्मपीठीय अन्तरधर्म परिसम्वाद परिषद के अध्यक्ष कार्डिनल जाँ-लूई तौराँ तथा परिषद के सचिव मिगेल आन्गेल अयुसो गिक्सो द्वारा हस्ताक्षरित इस सन्देश की प्रकाशना वाटिकन द्वारा मंगलवार 30 मार्च को विधिवत की गई।

02 अप्रैल को मनाये जा रहे महावीर जयन्ती के उपलक्ष्य में प्रकाशित सन्देश में परमधर्मपीठीय अन्तरधर्म परिसम्वाद परिषद ने आशा व्यक्त की है कि ईसाई एवं जैन धर्मानुयायी विश्व समाज में वृद्ध लोगों के प्रति बढ़ती उदासीनता के मद्देनज़र, एक साथ मिलकर वयोवृद्धों की देख-रेख को प्रोत्साहन देंगे। 

सन्देश में आशा व्यक्त की गई है कि महावीर जयन्ती का उत्सव लोगों के बीच शांति एवं साहचर्य को बढ़ावा दे तथा वयोवृद्धों की देख-रेख हेतु परिवारों एवं समुदायों की प्रतिबद्धता को मज़बूत करे।

सन्देश में इस बात पर बल दिया गया कि वयोवृद्ध व्यक्ति पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे परिवारों के प्राथमिक स्तम्भ होते हैं। "वे एक अनुपम कोष एवं आशीर्वाद के रूप हमारे साथ रहते हैं क्योंकि वे हम तक केवल अपने समृद्ध जीवन एवं विश्वास के अनुभवों को ही संचरित नहीं करते अपितु हमारे परिवारों एवं समुदायों के इतिहास को भी हम तक प्रसारित करते हैं। इन "कोषों" को सस्नेह संरक्षित किया जाना तथा कृतज्ञतापूर्वक इनकी रक्षा करना अनिवार्य है ताकि वे अपने जीवन भर के ज्ञान से लोगों को प्रेरणा और मार्गदर्शन देते रहें।"

सम्पूर्ण सन्देश इस प्रकार हैः

 

वयोवृद्धों की देख-रेख को ईसाई एवं जैन प्रोत्साहन दें

 

 

प्रिय जैन मित्रो,

 रमधर्मपीठीय अन्तरधर्म परिसम्वाद परिषद, इस वर्ष दो अप्रैल को समस्त विश्व में मनाये जा रहे तीर्थंकर (पथ-खोजक) वर्द्धमान महावीर के जन्म की वर्षगाँठ पर, प्रसन्नतापूर्वक, आपके प्रति हार्दिक बधाइयाँ अर्पित करती है। हमारी मंगलकामना है कि इस उत्सव के समारोह व्यक्तियों एवं परिवारों के बीच मैत्री एवं साहचर्य सुदृढ़ एवं सजीव बनाये, और साथ ही, विश्व में शांति, साहचर्य एवं खुशी की वृद्धि के लिये, सभी प्राणियों, विशेष रूप से, परिवारों एवं समुदायों के वयोवृद्धों की देख-रेख हेतु आपकी प्रतिबद्धता को मज़बूत करे।    

अपनी संजोई हुई परम्परा को आगे बढ़ाते हुए, इस वर्ष, हम इस विषय पर चिन्तन करेंगे कि हम दोनों, ख्रीस्तीय और जैन, एक साथ मिलकर किस प्रकार वयोवृद्धों की देखभाल को प्रोत्साहित कर सकते हैं। समस्त विश्व के अनेकानेक समाजों में लोगों की प्रवृत्ति वयोवृद्धों के बहिष्कार की होती है। यह तथ्य भी चिन्ताजनक और दुखःद है कि अनेक वृद्ध व्यक्ति, विशेष रूप से, बीमार एवं एकाकी उनके परिवारों एवं रिश्तेदारों द्वारा छोड़ दिये जाते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वे दिक़्कततलब (कष्टप्रद), बोझ एवं अकृष्ट हैं, या फिर इन्हें समकालीन विश्व के नव-अछूत माना जाता है जिनसे किंचित् सम्पर्क रखा जाता तथा जिनकी सीमित देखभाल पर्याप्त समझी जाती है। यह प्रवृत्ति बढ़ रही है और हमारे समाज के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। सन्त पापा फ्राँसिस ठीक ही इंगित करते हैं कि प्रत्येक समाज जिसके अन्तर में बुजुर्गों को खारिज कर दिया जाता है, "मौत का वायरस वहन करता है" (जीवन सम्बन्धी परमधर्मपीठीय अकादमी की पूर्णकालिक सभा के प्रतिभागियों से, 05 मार्च 2015) तथा वे लोग "जो अपने बुजर्गों की रक्षा नहीं करते ..... भविष्य रहित एवं आशाविहीन लोग हैं (सन्त इजिदियो समुदाय को सम्बोधन, 15 जून 2014)। अस्तु, वयोवृद्धों की देख-रेख की गारंटी का कार्य सब के लिये एक महान प्राथमिकता बन जाता है, और साथ ही यह सभी सरकारों एवं राजनैतिक समुदायों पर बाध्यकारी एक नैतिक अत्यावश्यकता  भी है।   

वयोवृद्ध जन हमारे बहु-पीढ़ीगत परिवारों के प्राथमिक स्तम्भ हैं। वे हमारे कोष एवं हमारे आशीर्वाद के रूप हमारे साथ रहते हैं क्योंकि वे हम तक केवल अपने समृद्ध जीवन एवं विश्वास के अनुभवों को ही संचरित नहीं करते अपितु हमारे परिवारों एवं समुदायों के इतिहास को भी हम तक प्रसारित करते हैं। इन "कोषों" को सस्नेह संरक्षित किया जाना तथा कृतज्ञतापूर्वक इनकी रक्षा करना अनिवार्य है जिससे कि वे अपने जीवन भर के ज्ञान से लोगों को प्रेरणा और मार्गदर्शन देते रहें। इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि अभी भी विश्व में अधिक संख्या परिवार अपनी परम्पराओं, मूल्यों एवं विश्वास के प्रति सत्यनिष्ठ रहते हुए, अपने बुजुर्गों की अनुकरणीय देख-रेख कर रहे हैं; इन परिवारों में बच्चे और यहाँ तक कि रिश्तेदार एवं मित्र भी बुजुर्गों की सेवा के लिए, प्रायः, महान बलिदान करते तथा एक अतिरिक्त मील आगे जाते हैं। यह सराहनीय है क्योंकि वे, अपने वृद्ध माता-पिता, दादा-दादी एवं रिश्तेदारों की देखभाल, आदर-सत्कार और सहायता उनके प्रति सम्मानवश कर रहे हैं जो सही एवं उचित है। एक ओर, जहाँ वयोवृद्धों की देखभाल करना व्यक्तियों एवं समाज का बाध्यकारी नैतिक दायित्व है वहीं दूसरी ओर, सक्षम एवं कल्याणकारी स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं द्वारा अर्पित व्यावसायिक एवं चिकित्सीय सहायताओं को, वयोवृद्धों की देखभाल सुनिश्चित्त करने की दिशा में, समाज द्वारा लिये गये उचित कदम के रूप में देखा जा सकता है।   

सभी धर्म, इस धरती पर माता-पिता एवं बुजुर्गों के जीवन के अन्त तक, विशेष रूप से, सम्मान एवं प्रेम सहित उनकी देखभाल हेतु बच्चों के नैतिक दायित्वों का प्रतिपादन करते हैं। पवित्र बाईबिल कहता हैः "अपने माता-पिता का आदर करो जिससे तुम बहुत दिनों तक उस भूमि पर जीते रहो जिसे तुम्हारा प्रभु ईश्वर तुम्हें प्रदान करेगा" (निर्गमन ग्रन्थ 20:12)। परन्तु वह यह भी कहता हैः "जो अपने सम्बन्धियों की, विशेष कर, अपने निजी परिवार की देखरेख नहीं करता, वह विश्वास को त्याग चुका है और अविश्वासी से भी बुरा है" (1 तिमोथी 5:8)। जैन धर्म जीवन के प्रति सम्मान  पर अत्यधिक बल देता है; मनुष्य के सन्दर्भ में, इस सम्मान का अर्थ प्रत्येक मानव व्यक्ति की गरिमा और उसके तहत जो भी शामिल है, उसे बरकरार रखना है।  

अस्तु, वयोवृद्धों के प्रति युवाओं की बढ़ती उपेक्षा तथा माता-पिता एवं दादा-दादी के प्रति पुत्र-सुलभ ज़िम्मेदारी को छोड़ने की प्रवृत्ति, हम सब का, विश्वासियों एवं ग़ैरविश्वासियों का भी, आह्वान  करती हैं कि हम अपने अन्तर में, वैयक्तिक एवं सामूहिक स्तर पर भी, माता-पिता, दादा-दादी एवं अन्य बुजुर्गों के प्रति, कृतज्ञता, स्नेह एवं ज़िम्मेदारी की भावना को पुनर्जागृत करें। उन्हें यह आभास दिलाना कि वे हमारे परिवारों, समुदायों और समाज का एक जीवन्त हिस्सा हैं तथा हम सदैव उनके ऋणी हैं, कथित "दूर फेंक" संस्कृति को चुनौती देने का एक सुनिश्चित तरीका है। यह "युवाओं एवं बुजुर्गों के बीच अत्यधिक आनन्द से परिपूर्ण नवीन आलिंगन" से ही सम्भव है (सन्त पापा फ्राँसिस, साप्ताहिक आम दर्शन समारोह, 11 मार्च 2015)। हमारी मंगलकामना है कि अपनी-अपनी धार्मिक परम्पराओं में सुदृढ़ तथा समाज के प्रति अपनी साझा ज़िम्मेदारी के प्रति सचेत रहते हुए, हम ईसाई और जैन, अन्यों के साथ हाथ मिलाकर, एक ऐसी संस्कृति को प्रोत्साहित करें जहाँ वयोवृद्धों को प्यार और सम्मान मिले तथा उनकी देख-रेख की जाये।     

आप सबको महावीर जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ!  

 

           कार्डिनल जाँ-लूई तौराँ

                   अध्यक्ष

                                                          

                                                                                                                    श्रद्धेय मिगेल आन्गेल अयुसो गिक्सो, एमसीसीजे

                                                                                                                                                 सचिव 

 








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