2015-03-20 09:19:00

प्रेरक मोतीः पारमा के धन्य जॉन (1209-1289)


वाटिकन सिटी, 20 मार्च सन् 2015:

असीसी के सन्त फ्राँसिस को समर्पित धर्मसमाजी निकाय के सातवें धर्मसमाज प्रमुख पारमा के जॉन का जन्म इटली के पारमा नगर में सन् 1209 ई. में हुआ था। पारमा के काथलिक विश्वविद्यालय में दर्शन के प्राध्यापक रहते हुए युवा जॉन ने प्रभु की बुलाहट सुनी तथा फ्राँसिसकन धर्मसमाज में भर्ती हो गये। धर्मसमाज में शपथ ग्रहण के तुरन्त बाद धर्मबन्धु जॉन को पेरिस भेजा गया जहाँ उन्होंने ईश शास्त्र की पढ़ाई पूरी की और पुरोहित अभिषिक्त हुए। बाद में उन्होंने इटली के बोलोन्या, नेपल्स तथा रोम के काथलिक विश्वविद्यालयों में धर्मतत्वविज्ञान एवं दर्शन के प्राध्यपक पद पर सेवा अर्पित की।   

सन् 1245 ई. में सन्त पापा इनोसेन्ट चतुर्थ ने फ्राँस के लियों शहर में एक आम सभा बुलाई  जिसमें विभिन्न धर्मसमाजों के अध्यक्षों को आमंत्रित किया गया। फ्राँसिसकन धर्मसमाज के प्रमुख क्रेशेन्सियुस उस समय अस्वस्थ रहने के कारण आम सभा में उपस्थित नहीं हो पाये और उनकी जगह पर जॉन को भेज दिया गया। इस आम सभा में अपने प्रभाषणों एवं वकतव्यों से जॉन ने सभी को प्रभावित किया। दो वर्षों बाद जब फ्राँसिसकन धर्मसमाज के नये प्रमुख की नियुक्ति का प्रश्न उठा तब सन्त पापा इनोसेन्ट ने जॉन को सबसे उत्तम और योग्य अभ्यर्थी बताकर सन् 1247 ई. में उन्हें धर्मसमाज प्रमुख नियुक्त कर दिया।   

जॉन ने धर्मसमाजियों में असीसी के सन्त फ्राँसिस की विनम्रता एवं अकिंचनता के भाव को नवीकृत किया तथा जीवन की सादगी में प्रभु ईश्वर की खोज करने का परामर्श दिया। अपने दो साथियों के साथ मिलकर जॉन मीलों दूर तक पैदल यात्रा किया करते थे तथा विभिन्न फ्राँसिसी मठों का दौरा किया करते थे। इसी दौरान सन्त पापा इनोसेन्ट चतुर्थ ने जॉन को, अपने विशेष दूत रूप में, कॉन्सटेनटीनोपल प्रेषित किया ताकि गीक्र ख्रीस्तीयों के बीच उठ रहे अलगाववाद को वे समाप्त कर सकें। जॉन अपने मिशन में सफल हुए किन्तु अपने धर्मसमाज को पर्याप्त समय न दे सकने के कारण उन्होंने धर्मसमाज प्रमुख के पद से इस्तीफा दे दिया। जॉन के आग्रह पर सन्त बोनावेन्चर धर्मसमाज प्रमुख बने तथा जॉन ग्रेच्यो के एक आश्रम में प्रार्थना एवं ध्यान में लीन हो गये। कई वर्षों बाद जॉन को पता चला कि कॉन्सटेनटाईन में ग्रीस काथलिकों के बीच एक बार फिर से फूट उत्पन्न हो गई है। 80 वर्ष की आयु में एक बार फिर जॉन को, सन्त पापा निकोलस चौथे की अनुमति पर, कॉन्सटेनटाईन प्रेषित किया गया किन्तु रास्ते में ही जॉन अस्वस्थ हो गये तथा उनका निधन हो गया। 

फ्राँसिसकन धर्मसमाजी पारमा के जॉन को सन् 1781 ई. में धन्य घोषित कर वेदी का सम्मान प्रदान किया गया था। धन्य जॉन का पर्व 20 मार्च को मनाया जाता है।

चिन्तनः "प्रज्ञा का मूल स्रोत प्रभु पर श्रद्धा है। बुद्धिमानी परमपावन ईश्वर का ज्ञान हैक्योंकि मेरे द्वारा तुम्हारे दिनों की संख्या बढ़ेगी और तुम्हारी आयु लम्बी होगी। यदि तुम प्रज्ञ हो, तो उस से तुम को लाभ होगा" (सूक्ति ग्रन्थ 9: 10-12)।

 

 








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