2015-03-16 16:18:00

ईश्वर का प्रेम


वाटिकन सिटी, सोमवार, 16 मार्च 2015 (वीआर सेदोक)꞉ वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 15 मार्च को संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, ″अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात,

आज का सुसमाचार पाठ निकोदेमुस को कहे येसु के वचन को प्रस्तुत करता है, ″ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने इसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उस में विश्वास करता है, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करे।″ (योहन 3꞉16) इस वचन को सुनकर हम अपने हृदय को क्रूसित येसु की ओर मोड़ते हैं और यह अनुभव करते हैं कि ईश्वर हमें बहुत प्यार करते हैं। यह एक स्पष्ट उदाहरण है जो पूरे सुसमाचार का सारांश प्रस्तुत करता है कि ईश्वर हमें बिना शर्त प्यार करते हैं।″

ईश्वर का प्रेम सर्वप्रथम सृष्टि के माध्यम से प्रकट हुआ जैसा कि धर्मविधि में 5 वीं युखरिस्त प्रार्थना में घोषित की गयी है, ″तूने सृष्टि को विकसित होने दिया, सारी सृष्टि पर अपना प्रेम उड़ेल दिया तथा उसे अपने वैभव के प्रकाश से आनंदित किया।″ संत इग्नासियुस लिखते हैं, ″ईश्वर ने आदम की सृष्टि की क्योंकि उन्हें एक आदमी की आवश्यकता थी जिसपर वे अपना स्वभाव प्रदर्शित कर सकें। (अदवेरसुस हैरेसस 4,14,1)

संत पापा ने युखरिस्त प्रार्थना पर चिंतन जारी रखते हुए कहा, ″और जब मानव ने आज्ञा भंग द्वारा ईश्वर से मित्रता नष्ट कर दी तब भी उन्होंने उसे मृत्यु के वश में नहीं छोड़ा किन्तु अपनी करूणा के कारण उस से मिलने आये।″

सृष्टि में तथा मुक्ति इतिहास के विभिन्न चरणों में जिस प्रकार ईश्वर का नि:शुल्क प्यार प्रकट हुआ उसी प्रकार अपने प्रेम को जारी रखने के उद्देश्य से ईश्वर ने अपनी प्रजा का चुनाव किया। ईश्वर ने अपनी प्रजा का चुनाव उसकी योग्यता के कारण नहीं किन्तु उसकी निम्नता के कारण किया। यद्यपि ईश प्रजा ने बारम्बार व्यवस्थान भंग किया तथापि ईश्वर ने उसे त्याग देने के बदले, निश्चित समय पर एक नया विधान स्थापित किया, येसु के खून का विधान। एक ऐसा विधान जो नया और अनन्त व्यवस्थान है जिसे कोई नहीं तोड़ सकता।

संत पौलुस याद दिलाते हैं ″परन्तु ईश्वर की दया अपार है। हम अपने पापों के कारण मर गये थे, किन्तु उसने हमें इतना प्यार किया।″ (एफे.2꞉4) संत पापा ने कहा येसु का क्रूस ईश्वर के प्रेम का सर्वोत्तम प्रमाण है। ″वे अपनों को, जो इस संसार में थे, प्यार करते आये थे और अब अपने प्रेम का सब से बड़ा प्रमाण देने वाले थे।″ (यो.13꞉1) यह उनके मानवीय जीवन की अंतिम घड़ी नहीं थी किन्तु उनके प्यार की चरम सीमा थी। सृष्टि के माध्यम से पिता ने अपने असीम प्रेम को प्रकट किया जब कि उनके पुत्र ने अपना प्राण अर्पित कर उस प्रेम को पूर्णता प्रदान की। संत पौलुस के अनुसार येसु की मृत्यु एवं उनके पुनरुत्थान के बाद, ‘ईश्वर का प्रेम’ पवित्र आत्मा के माध्यम से हमारे हृदयों में डाला गया है। पवित्र आत्मा जो कलीसिया का संचालन करता है उसी के द्वारा ख्रीस्त की स्मृति बनी रहती है। पवित्र आत्मा के द्वारा ही मानव मूल्यों का विकास होता है। प्रेम का आत्मा हमें ईश्वर और अपने पड़ोसियों से प्रेम करने की शक्ति प्रदान करता है। पवित्रतम एवं सबसे प्रभावशाली प्रेम का संस्कार है पवित्र युखरिस्त जो येसु के पास्का की यादगारी है। जितनी बार हम युखरिस्त समारोह में भाग लेते हैं उतनी बार हम ईश्वर का मानव जाति के प्रति प्रेम कहानी की चरम कलवारी पहाड़ की घटना का स्मरण करते हैं।

करूणा की माता मरियम की मध्यस्थता द्वारा हम यह एहसास कर सकें कि हम ईश्वर के प्रेम के पात्र हैं। हम कठिनाई में उनके पुत्र की करीबी का एहसास कर सकें क्योंकि चालीसा काल की यात्रा क्षमा, स्वीकृति तथा प्रेम को अनुभव करने का काल है।

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

देवदूत प्रार्थना समाप्त करने के पश्चात् उन्होंने देश-विदेश से एकत्रित सभी तीर्थयात्रियों एवं पर्यटकों का अभिवादन किया।

अंत में उन्होंने सभी को शुभ रविवार की मंगलकामनाएँ अर्पित की।








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