2015-03-11 12:06:00

प्रेरक मोतीः सन्त कॉन्सटेनटाईन (निधन 598 ई.)


 

वाटिकन सिटी, 11 मार्च सन् 2015:

कॉर्नवेल के राजा कॉन्सटेनटाईन छठवीं शताब्दी के सेल्टिक योद्धा थे जिन्होंने सन्त पेत्रोक के सम्पर्क में आ जाने के बाद मनपरिवर्तन कर लिया था। अतीत की हत्याओं, लूटपाट एवं अन्य अपराधों के लिये पश्चाताप कर उन्होंने ख्रीस्तीय धर्म का आलिंगन किया। ख्रीस्तीय विश्वास राजा कॉन्सटेनटाईन को उनकी धन-सम्पदा का परित्याग कर आयरलैण्ड के राहान स्थित सन्त मोकूदा को समर्पित मठ में ले गया। इस मठ में राजा कॉन्सटेनटाईन ने धर्मबन्धु रूप में शपथें ग्रहण की तथा मठ के निम्न से निम्न काम में जुट गये। साफ सफाई करना, मठवासियों के लिये अनाज को चक्की में पीसना आदि सब काम वे विनम्रतापूर्वक करते रहे। मठवासियों को धर्मबन्धु कॉन्सटेनटाईन की असली पहचान का पता तब चला जब एक दिन मठ में झाड़ू लगाते हुए वे ख़ुद पर हँस पड़े और कहने लगेः "क्या यही कॉर्नवेल का राजा कॉन्सटेनटाईन है, जो पहले हेलमेट पहना करता था और कवच धारण किये रहता था और अब कोल्हू के बैल की तरह चक्की पीस रहा  है?"

मठ के कार्यकलापों के साथ साथ कॉन्सटेनटाईन ने पौरोहित्य का भी अध्ययन किया तथा कुछ समय बाद पुरोहित अभिषिक्त कर दिये गये। सन्त कोलुम्बा एवं सन्त केन्टीगेर्न के आदेश पर वे सुसमाचार प्रचार के लिये स्कॉटलैण्ड गये। ग्लासगो में उनके कार्य कौशल से प्रभावित मठवासियों ने उन्हें मठाध्यक्ष नियुक्त कर दिया। मठाध्यक्ष पद पर रहते हुए उन्होंने अपनी मिशनरी यात्राएँ जारी रखी। वृद्धावस्था में एक बार जब वे किनटायर गाँव का भ्रमण कर रहे थे तब लूटेरों ने उनपर हमला कर उनका दाहिना हाथ काट डाला था। भारी रक्तस्राव के कारण कॉनस्टेटाईन की मृत्यु हो गई थी। कॉर्नवेल के राजा एवं मठवासी कॉन्सटेनटाईन को आयरलैण्ड का प्रथम शहीद माना जाता है। उनका पर्व 11 मार्च को मनाया जाता है। 

चिन्तनः "उस समय धर्मी आत्मविश्वास के साथ उन लोगों के सामने खड़े हो जायेंगे, जो उन पर अत्याचार करते और उनके परिश्रम को तुच्छ समझते थे। दुष्ट उसे देख आतंकित होकर काँपने लगेंगे और वे उसके अप्रत्याषित कल्याण पर आश्चर्यचकित होंगे। मन-ही-मन पश्चाताप करेंगे और दुःखी होकर कराहते हुए कहेंगेः "यह वही है, जिसकी हम हँसी उड़ाते थे, जिस पर हम ताना मारते थे। हम मूर्खतावश उसके जीवन को पागलपन और उसकी मृत्यु को अपमानजनक समझते थे। वह ईश्वर के पुत्रों में कैसे सम्मिलित किया गया? वह कैसे सन्तों का सहभागी बना" (प्रज्ञा ग्रन्थः 5,1-5)।   

 

 








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