बृहस्पतिवार- 5.3.15
दैनिक मिस्सा पाठ
पहला पाठ- यिर.17꞉5-10
5) प्रभु यह कहता है : ''धिक्कार उस मनुष्य को, जो मनुष्य पर भरोसा रखता है, जो निरे मनुष्य का सहारा लेता है और जिसका हृदय प्रभु से विमुख हो जाता है! 6) वह मरुभूमि के पौधे के सदृश है, जो कभी अच्छे दिन नहीं देखता। वह मरुभूमि के उत्तप्त स्थानों में- नुनखरी और निर्जन धरती पर रहता है। 7) धन्य है वह मनुष्य, जो प्रभु पर भरोसा रखता है, जो प्रभु का सहारा लेता है। 8) वह जलस्रोत के किनारे लगाये हुए वृक्ष के सदृश हैं, जिसकी जड़ें पानी के पास फैली हुई हैं। वह कड़ी धूप से नहीं डरता- उसके पत्ते हरे-भरे बने रहते हैं। सूखे के समय उसे कोई चिंता नहीं होती क्योंकि उस समय भी वह फलता हैं।'' 9) मनुष्य का हृदय सब से अधिक कपटी और अविश्वसनीय हैं। उसकी थाह कौन ले सकता है? 10) ''मैं प्रभु, मनुष्य का हृदय और अन्तरतम जानता हूँ। मैं हर एक को उसके आचरण और उसके कमोर्ं का फल देता हूँ''।
सुसमाचार पाठ- लूक.16꞉ 19-31
19) ''एक अमीर था, जो बैंगनी वस्त्र और मलमल पहन कर प्रतिदिन दावत उड़ाया करता था। 20) उसके फाटक पर लाज’रूस नामक कंगाल पड़ा रहता था, जिसका शरीर फोड़ों से भरा हुआ था। 21) वह अमीर की मेज की जूठन से अपनी भूख मिटाने के लिए तरसता था और कुत्ते आ कर उसके फोड़े चाटा करते थे।
22) वह कंगाल एक दिन मर गया और स्वर्गदूतों ने उसे ले जा कर इब्राहीम की गोद में रख दिया। अमीर भी मरा और दफ़नाया गया। 23) उसने अधोलोक में यन्त्रणाएँ सहते हुए अपनी आँखें ऊपर उठा कर दूर ही से इब्राहीम को देखा और उसकी गोद में लाज’रूस को भी। 24) उसने पुकार कर कहा, पिता इब्राहीम! मुझ पर दया कीजिए और लाजरुस को भेजिए, जिससे वह अपनी उँगली का सिरा पानी में भिगो कर मेरी जीभ ठंडी करे, क्योंकि मैं इस ज्वाला में तड़प रहा हूँ'। 25) इब्राहीम ने उस से कहा, बेटा, याद करो कि तुम्हें जीवन में सुख-ही-सुख मिला था और लाजरुस को दुःख ही दुःख। अब उसे यहाँ सान्त्वना मिल रही है और तुम्हें यन्त्रणा। 26) इसके अतिरिक्त हमारे और तुम्हारे बीच एक भारी गर्त्त अवस्थित है; इसलिए यदि कोई तुम्हारे पास जाना भी चाहे, तो वह नहीं जा सकता और कोई भी वहाँ से इस पार नहीं आ सकता।' 27) उसने उत्तर दिया, 'पिता! आप से एक निवेदन है। आप लाजरुस को मेरे पिता के घर भेजिए, 28) क्योंकि मेरे पाँच भाई हैं। लाजरुस उन्हें चेतावनी दे। कहीं ऐसा न हो कि वे भी यन्त्रणा के इस स्थान में आ जायें।' 29) इब्राहीम ने उस से कहा, मूसा और नबियों की पुस्तकें उनके पास है, वे उनकी सुनें। 30) अमीर ने कहा, पिता इब्राहीम! वे कहाँ सुनते हैं! परन्तु यदि मुरदों में से कोई उनके पास जाये, तो वे पश्चात्ताप करेंगे।' 31) पर इब्राहीम ने उस से कहा, जब वे मूसा और नबियों की नहीं सुनते, तब यदि मुरदों में से कोई जी उठे, तो वे उसकी बात भी नहीं मानेंगे'।'
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