2015-02-16 14:46:00

दैनिक मिस्सा पाठ


शनिवार- 14.2.15

पहला पाठ- उत्प. 39-24

9) प्रभु-ईश्वर ने आदम से पुकार कर कहा, ''तुम कहाँ हो?'' 10) उसने उत्तर दिया, ''मैं बगीचे में तेरी आवाज+ सुन कर डर गया, क्योंकि में नंगा हँू और मैं छिप गया''। 11) प्रभु ने कहा, ''किसने तुम्हें बताया कि तुम नंगे हो? क्या तुमने उस वृक्ष का फल खाया, जिस को खाने से मैंने तुम्हें मना किया था?'' 12) मनुष्य ने उत्तर दिया, ''मेरे साथ रहने कि लिए जिस स्त्री को तूने दिया, उसी ने मुझे फल दिया और मैंने खा लिया''। 13) प्रभु-ईश्वर ने स्त्री से कहा, ''तुमने क्या किया है?'' और उसने उत्तर दिया, ''साँप ने मुझे बहका दिया और मैंने खा लिया''। 14) तब ईश्वर ने साँप से कहा, ''चूँकि तूने यह किया है, तू सब घरेलू तथा जंगली जानवरों में शापित होगा। तू पेट के बल चलेगा और जीवन भर मिट्टी खायेगा। 15) मैं तेरे और स्त्री के बीच, तेरे वंश और उसके वंश में शत्रुता उत्पन्न करूँगा। वह तेरा सिर कुचल देगा और तू उसकी एड़ी काटेगा''। 16) उसने स्त्री से यह कहा, ''मैं तुम्हारी गर्भावस्था का कष्ट बढ़ाऊँगा और तुम पीड़ा में सन्तान को जन्म दोगी। तुम वासना के कारण पति में आसक्त होगी और वह तुम पर शासन करेगा''। 17) उसने आदम से कहा, ''चूँकि तुमने अपनी पत्नी की बात मानी और उस वृक्ष का फल खाया है, जिस को खाने से मैंने तुम को मना किया था, भूमि तुम्हारे कारण शापित होगी। तुम जीवन भर कठोर परिश्रम करते हुए उस से अपनी जीविका चलाओगे। 18) वह काँटे और ऊँट-कटारे पैदा करेगी और तुम खेत के पौधे खाओगे। 

19) तुम तब तक पसीना बहा कर अपनी रोटी खाओगे, जब तक तुम उस भूमि में नहीं लौटोगे, जिस से तुम बनाये गये हो क्योंकि तुम मिट्टी हो और मिट्टी में मिल जाओगे''। 20) पुरुष ने अपनी पत्नी का नाम 'हेवा' रखा, क्योंकि वह सभी मानव प्राणियों की माता है। 21) प्रभु-ईश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिए खाल के कपड़े बनाये और उन्हें पहनाया। 22) उसने कहा, ''भले-बुरे का ज्ञान प्राप्त कर मनुष्य हमारे सदृश बन गया है। कहीं ऐसा न हो कि वह जीवन-वृक्ष का फल तोड़कर खाये और अमर हो जाये!''  23) इसलिए प्रभु-ईश्वर ने उसे अदन-वाटिका से निकाल दिया और मनुष्य को उस भूमि पर खेती करनी पड़ी, जिस से वह बनाया गया था। 24) उसने आदम को निकाल दिया और जीवन-वृक्ष के मार्ग पर पहरा देने के लिए अदन-वाटिका के पूर्व में केरूबों और एक परिभ्रामी ज्वालामय तलवार को रख दिया। 

सुसमाचार पाठ- मार. 8꞉1-10

1) उस समय फिर एक विशाल जन-समूह एकत्र हो गया था और लोगों के पास खाने को कुछ भी नहीं था। ईसा ने अपने शिष्यों को अपने पास बुला कर कहा,  2) ''मुझे इन लोगों पर तरस आता है। ये तीन दिनों से मेरे साथ रह रहे हैं और इनके पास खाने को कुछ भी नहीं है। 3) यदि मैं इन्हें भूखा ही घर भेजूँ, तो ये रास्ते में मूर्च्छित हो जायेंगे। इन में कुछ लोग दूर से आये हैं।'' 

4) उनके शिष्यों ने उत्तर दिया, ''इस निर्जन स्थान में इन लोगों को खिलाने के लिए कहाँ से रोटियाँ मिलेंगी?''  5) ईसा ने उन से पूछा, ''तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?'' उन्होंने कहा, ''सात''। 6) ईसा ने लोगों को भूमि पर बैठ जाने का आदेश दिया और वे सात रोटियाँ ले कर धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी, और वे रोटियाँ तोड़-तोड़ कर शिष्यों को देते गये, ताकि वे लोगों को परोसते जायें। शिष्यों ने ऐसा ही किया। 7) उनके पास कुछ छोटी मछलियाँ भी थीं। ईसा ने उन पर आशिष की प्रार्थना पढ़ी और उन्हें भी बाँटने का आदेश दिया। 8) लोगों ने खाया और खा कर तृप्त हो गये और बचे हुए टुकड़ों से सात टोकरे भर गये। 9) खाने वालों की संख्या लगभग चार हज़ार थी। ईसा ने लोगों को विदा कर दिया।10) वे तुरन्त अपने शिष्यों के साथ नाव पर चढ़े और दलमनूथा प्रान्त पहॅुँचे। 

 

 








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