2015-02-11 16:42:00

दैनिक मिस्सा पाठ


बृहस्पतिवार- 12.2.15

दैनिक मिस्सा पाठ

पहला पाठ- उत्प. 218-25

18) प्रभु ने कहा, ''अकेला रहना मनुष्य के लिए अच्छा नहीं। इसलिए मैं उसके लिए एक उपयुक्त सहयोगी बनाऊँगा।''  19) तब प्रभु ने मिट्ठी से पृथ्वी पर के सभी पशुओं और आकाश के सभी पक्षियों को गढ़ा और यह देखने के लिए कि मनुष्य उन्हें क्या नाम देगा, वह उन्हें मनुष्य के पास ले चला; क्योंकि मनुष्य ने प्रत्येक को जो नाम दिया होगा, वही उसका नाम रहेगा। 20) मनुष्य ने सभी घरेलू पशुओं, आकाश के पक्षियों और सभी जंगली जीव-जन्तुओं का नाम रखा। किन्तु उसे अपने लिए उपयुक्त सहयोगी नहीं मिला। 21) तब प्रभु-ईश्वर ने मनुष्य को गहरी नींद में सुला दिया और जब वह सो गया, तो प्रभु ने उसकी एक पसली निकाल ली और उसकी जगह को मांस से भर दिया। 22) इसके बाद प्रभु ने मनुष्य से निकाली हुई पसली से एक स्त्री को गढ़ा और उसे मनुष्य के पास ले गया। 23) इस पर मनुष्य बोल उठा, ''यह तो मेरी हड्डियों की हड्डी है और मेरे मांस का मांस। इसका नाम 'नारी' होगा, क्योंकि यह तो नर से निकाली गयी है। 24) इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़ेगा और अपनी पत्नी के साथ रहेगा और वे दोनों एक शरीर हो जायेंगे। 25) वह मनुष्य और उसकी पत्नी, दोनों नंगे थे, फिर भी उन्हें एक दूसरे के सामने लज्जा का अनुभव नहीं होता था। 

सुसमाचार पाठ- मार. 724-30

24) ईसा वहाँ से विदा हो कर तीरूस और सिदोन प्रान्त गये। वहाँ वे किसी घर में ठहरे और वे चाहते थे कि किसी को इसका पता न चले, किन्तु वे अज्ञात नहीं रह सके। 25) एक स्त्री ने, जिसकी छोटी लड़की एक अशुद्ध आत्मा के वश में थी, तुरन्त ही इसकी चर्चा सुनी और वह उनके पास आ कर उनके चरणों पर गिर पड़ी। 26) वह स्त्री ग़ैर-यहूदी थी; वह तो जन्म से सूरुफ़िनीकी थी। उसने ईसा से विनती की कि वे उसकी बेटी से अपदूत को निकाल दें। 27) ईसा ने उस से कहा, ''पहले बच्चों को तृप्त हो जाने दो। बच्चों की रोटी ले कर पिल्लों के सामने डालना ठीक नहीं है।'' 28) उसने उत्तर दिया, ''जी हाँ, प्रभु! फिर भी पिल्ले मेज’ के नीचे बच्चों की रोटी का चूर खाते ही हैं''। 29) इस पर ईसा ने कहा, ''जाओ। तुम्हारे ऐसा कहने के कारण अपदूत तुम्हारी बेटी से निकल गया है।''  30) अपने घर लौट कर उसने देखा कि बच्ची खाट पर पड़ी हुई है और अपदूत उस से निकल चुका है।  








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