मुम्बई, मंगलवार, 10 फरवरी 2015 (एशियान्यूज़): भारत के काथलिक धर्माध्यक्षों ने देश के ख्रीस्तीयों के विरुद्ध जारी हिंसा को समाप्त करने का आह्वान करते हुए स्मरण दिलाया है कि ख्रीस्तीय धर्मानुयायी द्वितीय श्रणी के नागरिक नहीं हैं।
बैंगलोर में, 3 से 9 फरवरी तक, भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन की 27 पूर्णकालिक सभा सम्पन्न हुई। इसी के दौरान विगत सप्ताहान्त लगभग 140 काथलिक धर्माध्यक्षों ने एक शांति मार्च में भाग लेकर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में ख्रीस्तीयों के विरुद्ध जारी आक्रमणों की निन्दा की।
काथलिक धर्माध्यक्षों ने, विशेष रूप से, हिन्दू चरमपंथियों के "घर वापसी" कार्यक्रम के तहत जारी ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों के उत्पीड़न पर चिन्ता व्यक्त की तथा सरकार की निष्क्रियता पर आश्चर्य एवं खेद व्यक्त किया।
एक वकतव्य जारी कर धर्माध्यक्षों ने यह स्मरण भी दिलाया कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है जहाँ के संविधान का 25 वाँ अनुच्छेद सभी नागरिकों को अन्तःकरण एवं धर्मपालन की स्वतंत्रता तथा 14 वाँ अनुच्छेद समान अधिकारों सहित प्रतिष्ठापूर्ण जीवन की गारंटी देता है।
वकतव्य में उन्होंने लिखा, "हाल के माहों में ऐसा कोई दिन नहीं बीता जब ख्रीस्तीयों के विरुद्ध तथा उनके आराधनालयों एवं गिरजाघरों पर हमले की ख़बर न आई हो। यहाँ तक कि देश की राजधानी में भी गिरजाघरों को भस्म करने की ख़बरें मिली है जबकि देश के विभिन्न भागों में हिन्दू चरमपंथियों द्वारा "घर वापसी" के तहत किये जा रहे धर्मान्तरण कार्यक्रम से ख्रीस्तीयों में चिन्ता एवं उत्कंठा गहराई है।"
धर्माध्यक्षों ने सरकार को याद दिलाया कि उसका दायित्व भारत के सभी नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करना, उनके अधिकारों की रक्षा करना तथा कानून एवं व्यवस्था को लागू कर उन तत्वों को दण्डित करना है जो राष्ट्र में शांति एवं मैत्री को भंग कर रहे हैं।
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