2015-02-05 17:26:00

दैनिक मिस्सा पाठ


शुक्रवार- 6.2.2015

पहला पाठ- इब्रा. 13꞉1-8

आप का भ्रातृप्रेम बना रहे। आप लोग आतिथ्य-सत्कार नहीं भूलें,  क्योंकि इसी के कारण कुछ लोगों ने अनजाने ही अपने यहाँ स्वर्गदूतों का सत्कार किया है। आप बन्दियों की इस तरह सुध लेते रहें, मानो आप उनके साथ बन्दी हों और जिन पर अत्याचार किया जाता है, उनकी भी याद करें; क्योंकि आप पर भी अत्याचार किया जा सकता है। आप लोगों में विवाह सम्मानित और दाम्पत्य जीवन अदूषित हो; क्योंकि ईश्वर लम्पटों और व्यभिचारियों का न्याय करेगा। आप लोग धन का लालच न करें। जो आपके पास है, उस से सन्तुष्ट रहें; क्योंकि ईश्वर ने स्वयं कहा है - मैं तुम को नहीं छोडूँगा। मैं तुम को कभी नहीं त्यागूँगा। इसलिए हम विश्वस्त हो कर यह कह सकते हैं -प्रभु मेरी सहायता करता है। मनुष्य मेरा क्या कर सकता है?   आप लोग उन नेताओं की स्मृति कायम रखें, जिन्होंने आप को ईश्वर का सन्देश सुनाया और उनके जीवन के परिणाम का मनन करते हुए उनके विश्वास का अनुसरण करें।  ईसा मसीह एकरूप रहते हैं- कल, आज और अनन्त काल तक। 

सुसमाचार पाठ- मार. 6꞉14-29

हेरोद ने ईसा की चर्चा सुनी, क्योंकि उनका नाम प्रसिद्ध हो गया था। लोग कहते थे-योहन बपतिस्ता मृतकों में से जी उठा है, इसलिए वह ये महान् चमत्कार दिखा रहा है। कुछ लोग कहते थे- यह एलियस है। कुछ लोग कहते थे- यह पुराने नबियों की तरह कोई नबी है। हेरोद ने यह सब सुन कर कहा, '' यह योहन ही है, जिसका सिर मैंने कटवाया है और जो जी उठा है''  हेरोद ने अपने भाई फ़िलिप की पत्नी हेरोदियस के कारण योहन को गिरफ्’त्तार किया और बन्दीगृह में बाँध रखा था; क्योंकि हेरोद ने हेरोदियस से विवाह किया था और योहन ने हेरोद से कहा था, ''अपने भाई की पत्नी को रखना आपके लिए उचित नहीं है''। इसी से हेरोदियस योहन से बैर करती थी और उसे मार डालना चाहती थी; किन्तु वह ऐसा नहीं कर पाती थी,  क्योंकि हेरोद योहन को धर्मात्मा और सन्त जान कर उस पर श्रद्धा रखता और उसकी रक्षा करता था। हेरोद उसके उपदेश सुन कर बड़े असमंजस में पड़ जाता था। फिर भी, वह उसकी बातें सुनना पसन्द करता था। हेरोद के जन्मदिवस पर हेरोदियस को एक सुअवसर मिला। उस उत्सव के उपलक्ष में हेरोद ने अपने दरबारियों, सेनापतियों और गलीलिया के रईसों को भोज दिया। उस अवसर पर हेरोदियस की बेटी ने अन्दर आ कर नृत्य किया और हेरोद तथा उसके अतिथियों को मुग्ध कर लिया। राजा ने लड़की से कहा, ''जो भी चाहो, मुझ से माँगो। मैं तुम्हें दे दॅूंगा'', और उसने शपथ खा कर कहा, ''जो भी माँगो, चाहे मेरा आधा राज्य ही क्यों न हो, मैं तुम्हें दे दूँगा''।  लड़की ने बाहर जा कर अपनी माँ से पूछा, ''मैं क्या माँगूं?'' उसने कहा, ''योहन बपतिस्ता का सिर''। 

वह तुरन्त राजा के पास दौड़ती हुई आयी और बोली, ''मैं चाहती हूँ कि आप मुझे इसी समय थाली में योहन बपतिस्ता का सिर दे दें''  राजा को धक्का लगा, परन्तु अपनी शपथ और अतिथियों के कारण वह उसकी माँग अस्वीकार करना नहीं चाहता था। राजा ने तुरन्त जल्लाद को भेज कर योहन का सिर ले आने का आदेश दिया। जल्लाद ने जा कर बन्दीगृह में उसका सिर काट डाला  और उसे थाली में ला कर लड़की को दिया और लड़की ने उसे अपनी माँ को दे दिया। जब योहन के शिष्यों को इसका पता चला, तो वे आ कर उसका शव ले गये और उन्होंने उसे क़ब्र में रख दिया।  








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