2015-01-28 12:51:00

आम दर्शन समारोहः "परिवार" पर सन्त पापा फ्राँसिस की धर्मशिक्षा


वाटिकन स्थित सन्त पापा पौल षष्टम भवन में, बुधवार, 28 जनवरी को, साप्ताहिक आम दर्शन समारोह हेतु देश विदेश से एकत्र तीर्थयात्रियों के समक्ष के सन्त पापा फ्राँसिस ने परिवार पर अपनी धर्मशिक्षा माला को जारी रखते हुए इस प्रकार तीर्थयात्री समुदाय को सम्बोधित कियाः

अति प्रिय भाइयो एवं बहनो,

परिवार पर हम अपनी धर्मशिक्षा को जारी रखें। आज की धर्मशिक्षा में हम "पिता" शब्द से मार्गदर्शन ग्रहण करें। यह एक और ऐसा शब्द है जो हम ख्रीस्तीयों के लिये अति प्रिय है क्योंकि यह वह नाम है जिससे येसु ने हमें ईश्वर को पुकारना सिखाया है। ईश्वर को सम्बोधित करने तथा उनके साथ अपने विशिष्ट सम्बन्ध को प्रकट करने हेतु येसु द्वारा इस शब्द के उपयोग से, इस नाम के अर्थ ने नई गहराई प्राप्त की है। येसु द्वारा प्रकाशित, पिता, पुत्र एवं पवित्रआत्मा में ईश्वर की सम्बद्धता का यह धन्य रहस्य ही हमारे ख्रीस्तीय विश्वास का प्राण है।     

सन्त पापा ने कहाः "पिता" शब्द से सब कोई परिचित हैं, यह विश्वव्यापी है। यह एक आधारभूत सम्बन्ध की प्रकाशना करता है जिसकी वास्तविकता उतनी अधिक प्राचीन है जितना कि मानव का इतिहास पुराना है। हालांकि, आज हम इस स्तर पर आ गये हैं जहाँ हम यह कहने लगे हैं कि हमारा "समाज" पिता रहित है। दूसरे शब्दों में, विशेष रूप से पश्चिम की संस्कृति में, "पिता" का अस्तित्व प्रतीकात्मक रूप से अनुपस्थित रहता है, मानों खो गया हो, हटा दिया गया हो। पहले-पहल इस बात को एक प्रकार की मुक्ति के रूप में देखा गयाः मानों सब पर हावी होनेवाले मालिक जैसे पिता से मुक्ति मिली, ऐसे पिता से मुक्ति जो बाहर से अपने आप को कानून का प्रतिनिधि बताता था, ऐसे पिता से मुक्ति जो सन्तानों की खुशहाली पर रोक लगाता था तथा युवाओं का विकास एवं उनकी स्वायत्तता को निषिद्ध करता था।"  

सन्त पापा ने कहाः "वस्तुतः, अतीत में, हमारे अपने घरों में, कभी कभी, निरंकुशता का राज था, कुछ मामलों में ऊपर से दबाव बना रहता थाः माता-पिता बच्चों के साथ दास जैसा व्यवहार करते थे तथा उनके विकास की व्यक्तिगत आवश्यकताओं की परवाह नहीं करते थे; ऐसे पिता भी थे जो अपनी सन्तानों को स्वतंत्रता पूर्वक अपना मार्ग खोजने में सहायता नहीं देते थे, जो उन्हें भविष्य के निर्माण हेतु तथा समाज के निर्माण हेतु उनकी ज़िम्मेदारियाँ नहीं लेने देते थे और जैसा कि प्रायः होता है हम एक अति से दूसरी अति तक पहुँच गये।"                     

सन्त पापा ने आगे कहाः "हमारे समय की समस्या बहुत अधिक दखल देने वाले पिताओं की नहीं है बल्कि उनकी अनुपस्थिति की है तथा उनकी निष्क्रियता की है। आज के पिताओं का ध्यान ख़ुद पर तथा अपनी व्यक्तिगत उपलब्धियों पर इतना लगा रहता है कि कभी कभी वे अपने परिवार को ही भूल जाते हैं तथा छोटे-छोट बच्चों एवं युवाओं को अकेला छोड़ देते हैं। बोएनुस आयरस में ही मैंने उस अनाथता को महसूस कर लिया था जिसमें आज के बच्चे जीवन यापन को बाध्य हैं। अब, परिवार पर हमारे सामन्य चिन्तन के समय, मैं सभी ख्रीस्तीय समुदायों से कहना चाहता हूँ कि हमें बहुत सचेत रहना होगाः पिता की अनुपस्थिति, नन्हें बच्चों एवं युवाओं में गहन अभाव एवं गहरे घाव छोड़ सकती है जो बहुत अधिक गम्भीर हो सकते हैं।"    

उन्होंने कहाः "वास्तव में बच्चों और किशोरों का विचलन काफी हद तक पिता की कमी का परिणाम है। इसके लिये दैनिक जीवन में उदाहरण की कमी तथा आधिकारिक मार्गदर्शन की कमी को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है। जिस अनाथता के भाव में अनेक युवा जीवन यापन कर रहे हैं वह हमारी सोच से कहीं अधिक गहरा है। परिवार में ही वे अनाथ हैं क्योंकि प्रायः उनके पिता अनुपस्थित रहते हैं, शारीरिक रूप से घर से अनुपस्थित, और इससे भी अधिक गम्भीर बात यह है  कि जब वे उपस्थित रहते हैं तब भी बच्चों पर, युवाओं पर ध्यान नहीं देते, शिक्षक रूप में अपने दायित्व नहीं निभाते, अपने बच्चों को अपने शब्दों एवं कर्मों से उदाहरण देकर वे सिद्धान्त, वे मूल्य और वे नियम नहीं देते जो उनके जीवन के लिये रोटी की तरह ही आवश्यक हैं। पैतृक उपस्थिति की शैक्षिक गुणवत्ता उतनी ही आवश्यक है जितना पिता को नौकरी के लिये घर से दूर रहने पर मजबूर होना पड़ता है। कभी कभी ऐसा प्रतीत होता है कि पिताओं को परिवार में अपने स्थान का ही पता नहीं होता, वे यह भी नहीं जानते हैं कि बच्चों को कैसे शिक्षित करें। अस्तु, इस सन्देह के साथ, वे कुछ नहीं करते, वे पीछे हट जाते हैं, अपनी ज़िम्मेदारियों से दूर भाग जाते हैं, सम्भवतः अपनी सन्तानों के साथ समान सम्बन्ध स्थापित करने में उन्हें शरण मिलती है।"

सन्त पापा ने आगे कहाः "अपनी संस्थाओं सहित, युवाओं के प्रति, नागर समुदाय की भी ज़िम्मेदारी है, ऐसी ज़िम्मेदारी जिसे प्रायः ओझल कर दिया जाता है अथवा उचित रीति से निभाया नहीं जाता। नागर समुदाय भी प्रायः युवाओं को अनाथ छोड़ देता है तथा उनके समक्ष सत्य के परिप्रेक्ष्य की प्रस्तावना नहीं करता। युवा व्यक्ति, इस तरह, सुरक्षित सड़कों पर अनाथ छोड़ दिये जाते हैं, उन गुरुओं द्वारा अनाथ छोड़ दिये जाते हैं जिनसे उनकी उम्मीदें थीं। वे हृदयों का स्पर्श करनेवाले आदर्शों के अनाथ हो जाते हैं तथा उन आशाओं से वंचित हो जाते है जो उन्हें उनके दैनिक जीवन में समर्थन प्रदान कर सकती थीँ। सम्भवतः उन्हें उन बुतों से भर दिया जाता है जो उनके हृदयों को खाली कर देते हैं; मनोरंजन एवं सुख के सपने देखने के लिये धकेल दिये जाते हैं, परन्तु उन्हें रोज़गार नहीं दिया जाता; धन के भगवान से उन्हें मोहित किया जाता है जबकि जीवन के यथार्थ वैभव से उन्हें वंचित कर दिया जाता है।"

अस्तु, सन्त पापा ने कहा, "सबके लिये यह अच्छा होगा, पिताओं के लिये तथा सन्तानों के लिये भी, कि वे शिष्यों से की गई येसु की प्रतिज्ञा को सुनें, सन्त योहन रचित सुसमाचार के अनुसार येसु कहते हैः "मैं तुम्हें अनाथ नहीं छोड़ूँगा।" सच तो यह है कि वे ही मार्ग हैं, वे प्रभु और गुरु हैं जिन्हें सुनना आवश्यक है, वह आशा जो विश्व को बदल कर सकती है ताकि घृणा पर प्रेम विजयी हो ताकि सबके लिये भ्रातृत्व एवं शांति से परिपूर्ण भविष्य सम्भव हो।" 

इतना कहकर सन्त पापा फ्राँसिस ने सबके प्रति मंगलकामनाएँ अर्पित की तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।           








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