2015-01-27 11:34:00

"उदासीनता" के वैश्वीकरण" का सामना करने का आह्वान


वाटिकन सिटी, मंगलवार, 27 जनवरी 2015 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस ने अपने चालीसाकालीन सन्देश में ख्रीस्तीयों से अनुरोध किया है कि वे "उदासीनता के वैश्वीकरण" का सामना करें तथा अपने ज़रूरतमन्द भाइयों की सहायता करें।

इस वर्ष 18 फरवरी को राख बुधवार से ख्रीस्तीयों का चालीसा काल आरम्भ हो रहा है। इस अवधि में ख्रीस्तीय धर्मानुयायी चालीस दिन तक प्रार्थना, उपवास एवं परहेज़ द्वारा प्रभु येसु मसीह के दुखभोग की स्मृति मनाते हैं जो पुण्य सप्ताह तथा पास्का महापर्व में अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचता है। इस वर्ष रविवार पाँच अप्रैल को येसु के पुनःरुत्थान की याद में पास्का महापर्व मनाया जायेगा।

चालीसा काल के उपलक्ष्य में प्रकाशित अपने सन्देश में सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा है कि "यह काल सम्पूर्ण कलीसिया और प्रत्येक विश्वासी के लिये नवीनीकरण का समय है, यह कृपा का समय है। ईश्वर हमसे ऐसा कुछ नहीं मांगते जो स्वयं उन्होंने हमें न दिया हो, हम प्रेम करते हैं क्योंकि पहले उन्होंने हमसे प्रेम किया है।"  

सन्त पापा ने कहा, "प्रायः जब हम स्वस्थ अथवा निश्चिन्त होते हैं तब हम उन लोगों के बारे में नहीं सोचना चाहते जो पीड़ित हैं, अन्याय के शिकार हैं तथा ज़रूरतमन्द हैं।  हमारे हृदय कठोर बन जाते हैं। आज उपेक्षाभाव या उदासीनता का यह स्वार्थगत व्यवहार विश्वव्यापी हो चला है, यहाँ तक कि इसे हम "उदासीनता के वैश्वीकरण" का नाम दे सकते हैं। यह वह समस्या है जिसका सामना हम ख्रीस्त के अनुयायियों को करना चाहिये।"

सन्त पापा ने कहा कि प्रतिवर्ष चालीसाकाल के दौरान हमें नबियों की वाणियों पर विचार करना चाहिये जो हमारे अन्तःकरणों को जगाने की पुकार लगाते रहते हैं। उन्होंने कहा, "ईश्वर विश्व के प्रति उदासीन नहीं रहते बल्कि उन्होंने उससे इतना प्यार किया कि अपने पुत्र को इस धरती पर भेजा जिसने हमारे ख़ातिर दुःख उठाया, क्रूस पर मरे और तीसरे दिन पुनः जी उठे। इस तरह येसु ईश्वर एवं मनुष्य, स्वर्ग एवं पृथ्वी के मध्य प्रवेश द्वार हैं तथा कलीसिया ईश वचन की उदघोषणा के कारण वह हाथ है जो इस प्रवेश द्वार को मनुष्यों के लिये खुला रखती है।"

सन्त पापा ने कहा, "ईश प्रजा को आन्तरिक नवीनीकरण की आवश्यकता है और चालीसाकाल इसका उपयुक्त समय है ताकि हम अपने कमज़ोर भाइयों की आवश्यकताओं के प्रति उदासीन न बनें, ताकि हमारा उपेक्षाभाव उनकी व्यथा और पीड़ा का कारण न बनें।"     

 

 

 








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