2015-01-23 09:19:00

प्रेरक मोतीः दानी सन्त जॉन (552 -620 ई.)


वाटिकन सिटी, 23 जनवरी सन् 2015

दानी सन्त जॉन का जन्म, लगभग 552 ई. में, साईप्रस स्थित आमाथुस के एक कुलीन घराने में हुआ था। साईप्रस के सन्त जॉन को दानी सन्त जॉन, दयालु सन्त जॉन, सन्त जॉन एलेमोन आदि नामों से जाना जाता है। साईप्रस के राज्यपाल एपीफानुस के बेटे जॉन का विवाह कमउम्र में ही हो गया था तथा उनकी सन्तानें भी थीं। पत्नी और बच्चों के मर जाने के बाद वे ईश्वर के प्रति समर्पित हो गये तथा मठवासी जीवन यापन करने लगे।

सातवीं शताब्दी के आरम्भिक काल में दानी जॉन को एलेक्ज़ेनड्रिया के प्राधिधर्माध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया था। अनुश्रुति है कि युवावस्था में जॉन को जैतून का हार पहने एक सुन्दर युवती के दर्शन हुए जिन्होंने उनसे कहा कि वे महान राजा की सबसे बड़ी पुत्री करुणा थीं। इस दृश्य ने जॉन को अत्यधिक प्रभावित किया और उन्होंने अपनी सारी धन समपत्ति निर्धनों के कल्याण के लिये अर्पित कर दी। प्रार्थना, मनन चिन्तन, उपवास एवं भिक्षादान उनकी दिनचर्या बन गई थी जिसके कारण निर्धनों एवं परित्यक्त लोगों के प्रति अपनी उदारता के लिये जॉन सम्पूर्ण पूर्व में विख्यात हो गये थे।

एलेक्ज़ेनड्रिया के प्राधिधर्माध्यक्ष रहते उन्होंने कई ऐसे अध्यादेशों को लागू किये जिनसे निर्धन लोग अन्यायपूर्ण शुल्कों से बच सके। निर्धन एवं कमज़ोर लोगों के शोषण के विरुद्ध भी उन्होंने आज्ञप्तियाँ जारी करवाई थी। बताया जाता है कि उन्होंने अस्पतालों, आश्रमों एवं मठों की स्थापना के लिये कलीसियाई कोष से 80,000 सोने के टुकड़े दे दिये थे।

दानी प्राधिधर्माध्यक्ष जॉन का निधन 616 ई. से 620 ई. के बीच साईप्रस में हो गया था। बाद में  उनके पवित्र अवशेषों को कॉन्सटेनटीनोपल ले जाया गया तथा वहाँ से, सन् 1249 ई., में, वेनिस लाया गया था। इस समय, दानी सन्त जॉन का पार्थिव शव स्लोवाकिया के ब्रातिस्लावा स्थित सन्त मार्टिन महागिरजाघर के दयालु सन्त जॉन आराधनालय में है। दानी सन्त जॉन का पर्व 23 जनवरी को मनाया जाता है।     

चिन्तनः "मैं प्रभु के कारण आनन्द मनाऊँगा; उसकी सहायता के कारण मैं उल्लसित हो उठूँगा। मेरी समस्त हड्डियाँ यह कहेंगी: ''प्रभु! तेरे समान कौन है? तू प्रबल अत्याचारी से दरिद्र की और शोषक से दीन-हीन-की रक्षा करता है" ( स्तोत्र ग्रन्थ 35:9-10)।  








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