2015-01-14 12:41:00

कोलोम्बोः काथलिक विरोधी हिंसा के युग में शांति के दूत जोसफ वाज़


कोलोम्बो, 14 जनवरी सन् 2015 (सेदोक):  श्री लंका की राजधानी कोलोम्बो में सन्त पापा फ्राँसिस ने बुधवार 14 जनवरी को शांति के सन्देशवाहक धन्य जोसफ वाज़ को सन्त घोषित किया।

पुर्तगाली उपनिवेशवाद के अधीन सन्त जोसफ वाज़ का जन्म भारत के गोवा में सन् 1651 ई. को हुआ था। गोवा के सन्त फिलिप नेरी में उन्होंने पुरोहिताभिषेक की तैयारी की। पुरोहिताभिषेक के बाद यह पता चलने पर कि पड़ोसी द्वीप सिलोन अर्थात् श्री लंका में दशकों से काथलिक पुरोहित नहीं थे वे हॉलैण्ड के उपनिवेशियों द्वारा शासित श्री लंका की यात्रा पर निकल पड़े थे। वस्तुतः, हॉलैण्ड के उपनिवेशियों के अधीन डच कैलवनिस्ट मिशनरियों ने काथलिक विरोधी भावना को इतनी हवा दी थी कि काथलिक विश्वास की अभिव्यक्ति करना भी ख़तरे को आमंत्रण देना था।

36 वर्ष की आयु में फादर वाज़ ने भिक्षु का वेश बदल कर डच सैनिकों से बचते हुए जंगलों की राहों से, श्री लंका में प्रवेश किया। लगभग पाँच वर्षों तक वे जंगलों में घूमते रहे तथा अपने सम्पर्क में आनेवालों को सुसमाचार का सन्देश सुनाते रहे। इसी बीच, उन्होंने बौद्ध राज्य कैण्डी में शरण ली किन्तु यहाँ से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। पाँच वर्षों तक मिशनरी वाज़ ने डच सैनिकों द्वारा संचालित कारावास में घोर यातनाएँ सही। उनका एक ही अपराध था कि वे काथलिक थे कैलवनिस्ट प्रॉटेस्टेण्ट ख्रीस्तीय नहीं।

सन् 1696 ई. में बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण जोसफ वाज़ को कारावास से रिहा कर दिया गया तथा सुसमाचार के प्रचार हेतु उन्हें अनुमति मिल गई। कैण्डी राज्य के काथलिकों के बीच वे अपनी प्रेरिताई करते रहे तथा गुप्त रूप से हॉलैण्ड के उपनिवेशियों द्वारा प्रशासित क्षेत्रों में भी सुसमाचार का प्रचार करने लगे। 23 वर्षों तक उन्होंने श्री लंका के लोगों को सुसमाचार का प्रेम सन्देश सुनाया जिसके परिणामस्वरूप कैण्डी एवं आसपास के क्षेत्रों में कम से कम 30,000 लोगों ने ख्रीस्तीय धर्म का आलिंगन कर लिया था। इस सन्दर्भ में, सन्त घोषणा समारोह के अवसर पर सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा, "काथलिक कलीसिया आज के विश्वासियों के लिये सन्त जोसफ वाज़ को महान आदर्श मानती हैं। जोसफ वाज़ ने उस युग में जीवन यापन किया था जब काथलिक अल्पसंख्यक थे तथा आज की तरह प्रायः सताये जाते थे तथापि, उन्होंने जाति और धर्म का भेदभाव किये बिना सबकी सेवा की।"  

सन्त जोसफ वाज़ ने अपने एक धर्मबन्धु के साथ मिलकर ख्रीस्तीय धर्म के सर्वाधिक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों का अनुवाद सिंघली भाषा में किया था। कैण्डी में, 16 जनवरी सन् 1711 ई. को, भारत में जन्में, श्री लंका के प्रेरित और मिशनरी जोसफ वाज़ का निधन हो गया था।

 








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