2015-01-12 08:19:00

निर्धनों के प्रति उत्कंठा ख्रीस्तीय धर्म का सार, सन्त पापा फ्राँसिस


वाटिकन सिटी, सोमवार, 12 जनवरी सन् 2015 (एपी): सन्त पापा फ्राँसिस ने इस बात पर बल दिया है कि निर्धनों के प्रति उनकी उत्कंठा तथा वैश्विक आर्थिक प्रणाली पर उनकी आलोचना साम्यवाद प्रेरित विचारधारा नहीं है अपितु यह ख्रीस्तीय धर्म की मूल एवं अनिवार्य कसौटी है।    

सन्त पापा फ्राँसिस द्वारा उपभोक्तावाद की लगातार आलोचना तथा कलीसिया को "निर्धनों की एवं निर्धनों के लिये" बताने के लिये कुछेक अमरीकी परम्परावादियों ने सन्त पापा को मार्क्सवादी कहा है। हालांकि, एक नई पुस्तक में प्रकाशित, सन्त पापा फ्राँसिस की भेंटवार्ता में वे स्पष्ट करते हैं कि उनका सन्देश सुसमाचार में मूलबद्ध है जिसे कलीसिया के धर्माचार्य ख्रीस्तीय धर्म की आरम्भिक शताब्दियों से प्रतिध्वनित करते रहे हैं।

भेंटवार्ता में सन्त पापा फ्राँसिस कहते हैं: "सुसमाचार धनवानों का खण्डन नहीं करता अपितु धन की पूजा की निन्दा करता है जो लोगों को निर्धनों की पुकार के प्रति उदासीन बना देती है।" उपभोक्तावाद के विषय में सन्त पापा द्वारा कहे शब्द: "यह अर्थ व्यवस्था मार डालती है" शीर्षक से इस सप्ताह इताली भाषा में वाटिकन के दो अनुभवी संवाददाताओं की पुस्तक प्रकाशित होने वाली है।    

सन्त मत्ती रचित सुसमाचार के शब्दों को दुहराकर सन्त पापा कहते हैं: "मैं भूखा था, मैं प्यासा था, मैं जेल में था, मैं बीमार था, नंगा था और आपने मेरी मदद की, मुझे कपड़े पहनाये, मेरी भेंट की तथा मेरा ख्याल रखा।" उन्होंने कहा, "पड़ोसी की, निर्धनों की, शरीर और आत्मा से पीड़ित लोगों की तथा ज़रूरतमन्दों की  देखभाल करना, यही कसौटी है। क्या यह कंगाली है? नहीं। यही सुसमाचार है।"    

सन्त पापा ने काथलिक कलीसिया के धर्माचार्य सन्त एम्ब्रोज़ तथा सन्त जॉन क्रिज़ोस्तम का हवाला देते हुए बताया कि उन्होंने भी इसी प्रकार की चिन्ताओं को अभिव्यक्त किया था इसलिये उनपर मार्क्सवादी होने का आरोप लगाना सचमुच में व्यंगपूर्ण है।  

सन्त पापा ने कहा, "जैसा कि हम देखते हैं, निर्धनों के प्रति यह उत्कंठा सुसमाचार में निहित है, यह कलीसिया की परम्परा में निहित है, यह साम्यवाद का आविष्कार नहीं है और इसे किसी भी प्रकार की विचारधारा में परिणत नहीं होना चाहिये जैसा कि इतिहास के अन्तराल में कभी-कभी हुआ है।"   








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