2015-01-10 16:22:00

संत पापा ने हैती पर सभा के प्रतिनिधियों से मुलाकात की


वाटिकन सिटी, शनिवार, 10 जनवरी 2015 (वीआर सेदोक)꞉ संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार 10 जनवरी को वाटिकन स्थित क्लेमेंटीन सभागार में हैती में आये भयंकर भूकम्प के पाँच साल पूरे होने पर वाटिकन सिटी में आयोजित सेमिनार के 100 प्रतिनिधियों से मुलाकात की।

वाटिकन के उदारता संगठनों एवं लोकोपकारी संस्थाओं का समन्वय करने वाली परमधर्मपीठीय समिति तथा लातीनी अमरीका की प्रेरिताई के लिए बनी परमधर्मपीठीय समिति, हैटी के धर्माध्यक्ष एवं समिनार के सभी प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुए हैटी के भाई बहनों की आवश्यक मदद करने के लिए संत पापा ने उन्हें धन्यवाद दिया।

उन्होंने कहा कि उस सहयोग द्वारा उन्होंने यह सिद्ध कर दिया है कि कलीसिया एक शरीर है जिसके सभी अंग एक-दूसरे का ध्यान रखते हैं। कलीसिया एक ऐसा समुदाय है जो पवित्र आत्मा द्वारा संचालित है तथा उसी के द्वारा उदार सेवा हेतु प्रेरित होता है।

संत पापा ने कहा, ″कलीसिया की गतिविधियों में व्यक्ति का स्थान पहला है।″ उन्होंने कहा कि ख्रीस्त जन्म या ख्रीस्त का देह धारण यह दिखलाया है कि ईश्वर की दृष्टि में मानव कितना मूल्यवान है अतः एक सामान्य जीवन जीने के लिए व्यक्ति की मदद करना हमारा पहला कर्तव्य होना चाहिए। किसी राष्ट्र का निर्माण तब तक सम्भव नहीं है जब तक उसके प्रत्येक नागरिक के जीवन का निर्माण न किया जाए। हैती के लोगों को भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति की जानी चाहिए जिससे कि वे अपने उतर-दायित्वों का निर्वाह कर पायें।

उन्होंने कहा कि मानव व्यक्ति का एक पारलौकिक आयाम है जिससे कलीसिया भी इन्कार नहीं सकती। इस आयाम में व्यक्ति अपनी पूर्णता, ईश्वर से मुलाकात करने के द्वारा ही प्राप्त करता है। कलीसिया द्वारा हैती को दी जा रही मदद हर व्यक्ति के समग्र विकास का लक्ष्य करे।

संत पापा ने सेमिनार के प्रतिनिधियों को कलीसिया के दूसरे आधारभूत पहलू पर प्रकाश डालते हुए  कहा कि कलीसिया एक समुदाय है जिसका अनुभव हैती ने धर्मप्रांत, धार्मिक संस्थाओं तथा उदारता संगठनों के माध्यम से किया है। यह कलीसिया के सजीव तथा दयालु होने का प्रमाण है अतः एकजुट होकर कार्य करने का हर सम्भव प्रयास किया जाना चाहिए। कलीसियाई समुदाय के सदस्यों को जन कल्याण हेतु देश के अधिकारियों तथा अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ मिल-जुल कर कार्य करना चाहिए।  

संत पापा ने हैती की कलीसिया को परामर्श दिया कि वह अधिक जागरूक, फलप्रद तथा ख्रीस्त का साक्ष्य प्रस्तुत करने में अधिक उदार बने जिससे कि वह राष्ट्र के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सके।

 








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