2015-01-08 14:37:00

वर्ष के अन्त में अन्तःकरण की जाँच हेतु सन्त पापा ने लगाई पुकार


वाटिकन सिटी, गुरुवार, 1 जनवरी 2015 (सेदोक): वाटिकन स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर में बुधवार 31 दिसम्बर को नववर्ष की पूर्व सन्ध्या सन्त पापा फ्राँसिस ने धन्यवाद की धर्मविधि समारोह का नेतृत्व किया तथा इस अवसर पर अपने प्रवचन में अन्तःकरण की जाँच करने का सबसे आग्रह किया।

सन्त पापा ने समय के अर्थ पर चिन्तन करते हुए कहा कि समय ईश्वर से अलग नहीं है जिन्होंने हमारी मुक्ति के लिये स्वतः की प्रकाशना की। इस बात का स्मरण दिलाते हुए कि समय क्षणभंगुर है, सन्त पापा ने कहा, “हम सब पटाखों की रोशनी से घिरे रहना चाहते हैं जो सुन्दर तो है किन्तु वास्तव में कुछ ही क्षणों के लिये होते हैं।“

उन्होंने कहा कि समय का अर्थ है ईश रहस्य की प्रकाशना तथा हमारे प्रति ईश्वर का असीम प्रेम। इसी सन्दर्भ में धन्यवाद की धर्मविधि हमारे समक्ष प्रेरित सन्त योहन के शब्दों को प्रस्तुत करती है “अब समय आ गया है” तथा सन्त पौल समय की पूर्णता की चर्चा करते हैं। अस्तु, आज का दिन ईश्वर एवं मरियम के पुत्र येसु ख्रीस्त द्वारा स्पर्श किया गया है जिससे उसे एक नया एवं विस्मयकारी अर्थ मिला हैः वह “मुक्ति का काल” अर्थात् मुक्ति एवं कृपा का समय बन गया है।“

सन्त पापा ने कहा कि यह सब हमें जीवन यात्रा के बारे में सोचने पर मजबूर करता है, हमारी यात्रा के अन्त पर मनन-चिन्तन का आग्रह करता है ............ “एक था आरम्भ और एक होगा अन्त, “जन्म लेने का समय और मरने का समय।“ इसी सत्य के संग हमें जीना है जो सरल एवं आधारभूत हुए भी ओझल कर दिया जाता तथा भुला दिया जाता है, इसलिये पवित्र माता कलीसिया हमें यह वर्ष एवं यह दिन अन्तःकरण की जाँच से समाप्त करना सिखाती है जिसके द्वारा हम अपने व्यतीत समय का पुनरावलोकन करते तथा प्राप्त वरदानों के लिये ईश्वर को धन्यवाद देते हैं।“

सन्त पापा ने कहा कि वर्ष का अन्तिम दिन अपने वैयक्तिक जीवन और साथ ही सामुदायिक जीवन के अवलोकन का सुअवसर है, अपने आप से प्रश्न करने का कि हमारी जीवन शैली कैसी रही? उन्होंने कहा.......................... हम पुत्र पुत्रियों के सदृश जीते हैं अथवा दास जैसे? ख्रीस्त में बपतिस्मा प्राप्त, पवित्रआत्मा से अभिमंत्रित और मुक्ति प्राप्त व्यक्तियों के समान जीते हैं अथवा संसार की भ्रष्ट तर्कणा के अनुसार जीते हैं जिसे शैतान हमारी हितैषी बताता है?”

सन्त पापा ने कहा कि मनुष्यों में प्रायः स्वतंत्रता एवं मुक्ति से दूर भागने की प्रवृत्ति प्रबल रहती है ........... “निश्चेत ढंग से, कुछ अंश तक, हम दासता को पसन्द करते हैं। स्वतंत्रता से हमें डर लगता है क्योंकि वह हमें समय के समक्ष और उसे उचित रीति से जीने हेतु हमारी ज़िम्मेदारियों के समक्ष प्रस्तुत कर देती है। इसके विपरीत दासता, समय को एक क्षण भर का बनाकर रख देती है और इस प्रकार, अतीत एवं भविष्य को अलग रख, हमें सुरक्षित होने का आभास दिलाती है। दूसरे शब्दों में दासता हमें पूर्णता का जीवन जीने नहीं देती क्योंकि वह हमारे अतीत को खाली कर देती तथा भविष्य का यानि अनन्त जीवन का दरवाज़ा बन्द कर देती है।“ उन्होंने कहा, “दासता हमें यह विश्वास कराती है कि हम स्वपन् नहीं देख सकते, उड़ नहीं सकते, आशा नहीं कर सकते।“

विश्वव्यापी काथलिक कलीसिया के परमधर्मगुरु होने के साथ साथ सन्त पापा रोम के धर्माध्यक्ष भी हैं। उन्होंने कहा कि प्रेरित पेत्रुस और पौलुस के शहादत की भूमि रोम शहर में जीवन यापन का मौका मिलना सौभाग्य की बात है, यह एक वरदान है जिसके लिये सदैव कृतज्ञ रहना चाहिये। साथ ही यह महान ज़िम्मेदारी की भी मांग करता है। इस सन्दर्भ में उन्होंने रोम शहर को भ्रष्टाचार से दूषित करनेवालों को फटकार बताई और कहाः “हाल में हुई भ्रष्टाचार की गम्भीर वारदातें हम सब से अन्तकरण की जाँच एवं मनपरिवर्तन की मांग करती हैं। साथ ही ये न्याय एवं एकात्मता पर आधारित शहर के पुनर्निर्माण की मांग करती हैं जिसका निर्धन, कमज़ोर एवं हाशिये पर जीवन यापन कर रहे लोग हमारी उत्कंठाओं का केन्द्र बनें। हमारे शहर में, ख्रीस्तीय स्वतंत्रता से प्रेरित होकर, यह उदघोषित करने की आवश्यकता है कि निर्धनों की मदद करने की ज़रूरत है, निर्धनों से अपनी सुरक्षा करने की नहीं तथा कमज़ोर लोगों की सेवा करने की ज़रूरत है, कमज़ोर लोगों से सेवा लेने की ज़रूरत नहीं।“


 








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