2015-01-05 20:46:00

रविवारीय चिन्तन


                    वर्ष ‘ब’ का दूसरा रविवार, 11 जनवरी, 2015 

1 सामूएल 13 : 3-10,19

1 कुरिन्थियों के नाम पत्र 6 : 13-15,17-20

संत योहन 1 : 35-42

जस्टिन तिर्की, ये.स.

 

मीना की कहानी

मित्रो,  आप लोगों को आज एक लड़की के बारे बताना चाहता हूँ जिसका नाम था मीना। वह बचपन से ही बहुत ईमानदार थी। उन्होंने बी. ए. की  परीक्षा एक राँची के एक प्रतिष्ठित महाविद्यालय से पास कर लिया था। पढ़ाई समाप्त करने के बाद उन्होंने नौकरी की तलाश शुरु की । कई प्रतियोगिता परीक्षाओं के फोर्म भरे। कई में उन्होंने पास भी किये पर जब वह साक्षात्कार के लिये बुलायी जाती तो वह उसमें पास नहीं हो पायी। पर उन्होंने अपना प्रयास जारी रखा। उसकी मम्मी पूछा करती थी  कि वह क्यों पास नहीं हो रही है तब वह जवाब देती " मम्मी इन्तज़ार करो एक दिन वह उसके लिये कोई अच्छी ख़बर अवश्य लायेगी।"  एक दिन  जब वह शहर से लौटी तो उसके चेहरे खिले हुए थे। तब उसकी माँ ने उससे कहा, " बेटी क्या तुम्हें कोई नौकरी मिल गयी है ? मीना ने कहा, " मम्मी नौकरी का निमंत्रण आया है, पर मुझे आश्चर्य हो रहा है।"  तब उसकी माँ ने कहा, " आश्चर्य क्यों?।" मीना ने कहा, " क्योंकि, जिस नौकरी के लिये मुझे बुलावा गया है उसका साक्षात्कार तो मैंने बहुत ही खराब दिये थे।  " खराब कैसे ? "  मीना ने कहा, " साक्षात्कार में मुझे पूछा गया था कि क्या मैं एक लीडर हूँ, क्या मैं एक नेता बन सकती हूँ?" तब मैंने कहा था, " न मैं नेता हूँ, न ही मुझे नेतागिरि आती है। मैं नेता नहीं, शिष्य हूँ। मैं अनुसरण करने वाली हूँ। मैं वही करती हूँ मुझे जो बताया जाता है, हाँ सच है निर्देशित कार्य को मैं अच्छी तरह से करती  हूँ। उसकी बात सुन कर माँ ने कहा, " वो तो बहुत अच्छी बात है मीना, पर तुमने ऐसा क्यों नहीं कहा था कि तुम नेता नहीं बन सकती हो? तब मीना ने कहा, जो सच है वही मैंने कह दिया माँ। पर आगे सुनो माँ मेरे निमंत्रण पत्र में कहा गया है. इसमें कहा गया है, " मीना जी आपको हमारी कम्पनी में स्वीकार किया जा रहा है। हमें यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि हमारी कम्पनी में काम करने के लिये जो भी निवेदन आये थे उनमें से एक सौ लोगों के हमने साक्षात्कार लिये। साक्षात्कार देनेवाले सभी उम्मीदवारों ने यह दावा किया था कि वे नेता हैं पर सिर्फ आपने कहा कि ‘आप शिष्य हैं, चेला हैं या हम कहें अनुसरणकर्ता हैं’ और इसीलिये आपको हमारी कम्पनी ने क्षेत्रीय मैंनेजर के रूप में स्वीकार कर लिया है।

 

मित्रो,   रविवारीय आराधना विधि चिन्तन कार्यक्रम के अन्तर्गत पूजन विधि पंचांग के वर्ष के दूसरे रविवार के लिये प्रस्तावित पाठों के आधार पर हम मनन चिन्तन कर रहें हैं। आज प्रभु हमें आमंत्रित कर रहे हैं ताकि हम उनके पास जायें और देखें कि वे कहाँ रहते हैं क्या करते हैं क्या बोलते हैं और किन-किन अच्छे कार्यों को हमारे लिये करते हैं। और उन सब बातों को सीखने के बाद हम उनका चेला बनें। उनका अनुसरण करें।

 

आइये, हम आज के सुसमाचार को पढ़ें जिसे संत योहन के सुसमाचार के पहले अध्याय के 35 से 40 पदों से लिया गया है। इन पदों में प्रभु आप को बुला रहे हैं, मुझे बुला रहे हैं और कह रहे हैं आओ और देखो। आइये हम प्रभु के दिव्य वचनों को सुनने के लिये अपने आप को तैयार करें।

 

संत योहन, 1, 35-40

 

35) दूसरे दिन योहन फिर अपने दो शिष्यों के साथ वहीं था। 

36) उसने ईसा को गुजरते देखा और कहा, ‘‘देखो- ईश्वर का मेमना!' 

37) दोनों शिष्य उसकी यह बात सुन कर ईसा के पीछे हो लिये। 

38) ईसा ने मुड़ कर उन्हें अपने पीछे आते देखा और कहा, ‘‘क्या चाहते हो?'' उन्होंने उत्तर दिया, ‘‘रब्बी! '' (अर्थात गुरुवर) आप कहाँ रहते हैं?'' 

39) ईसा ने उन से कहा, ‘‘आओ और देखो''। उन्होंने जा कर देखा कि वे कहाँ रहते हैं और उस दिन वे उनके साथ रहे। उस समय शाम के लगभग चार बजे थे। 

40) जो योहन की बात सुन कर ईसा के पीछे हो लिय थे, उन दोनों में एक सिमोन पेत्रुस का भाई अन्द्रेयस था। 

 

चाह

मित्रो,  मेरा पूरा विश्वास है कि आपने प्रभु के दिव्य वचनों को ध्यान से पढ़ा है। मित्रो,  प्रभु के उस सवाल आपने अवश्य ही गौर किया होगा। वे शिष्यों को पूछते हैं कि तुम क्या चाहते हो । मित्रो,   क्या आपने कभी इस बात पर विचार किया है कि यह कितना महत्वपूर्ण प्रश्न है। यह सवाल हममें से कई लोग आपस में करते रहते हैं। कई लोग कहते हैं कि उन्हें जीवन में कुछ और दूसरी चीज़ नहीं चाहिये। पर उन्हें पैसा चाहिये। मित्रो,   सच पूछा जाये तो यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। हमारा व्यक्तिगत अनुभव रहा है कि अगर आपके पास पैसा नहीं है तो आपको कोई भी व्यक्ति महत्व नहीं देता है। पैसा हमारे जीने के लिये बहुत ज़रूरी है। कई लोगों ने यह भी कहा है कि सबसे बड़ा है रूपया।

 

मान-सम्मान

 

एक बार मैंने एक व्यक्ति को यह कहते हुए सुना कि उसके जीवन के लिये सबसे बड़ी बात है मान-सम्मान। उनके लिये रुपया-पैसा होना ही अंतिम बात नहीं है। उनका कहना है कि अगर व्यक्ति को मान-सम्मान न मिले तो पैसे होने के बावजूद उसका जीवन व्यर्थ है। मित्रो,  यह बात भी सत्य ही है कि हमारा जीवन बेकार हो जायेगा  अगर हमारे पास धन दौलत हो पर समाज में हमारा कोई भी मान-सम्मान न हो।

 

एक दूसरे मित्र ने कहा कि हमारे जीवन में रुपया-पैसा और मान-सम्मान से सिर्फ काम नहीं चलने वाला है हमें अधिकार चाहिये। हमें ‘पावर’ चाहिये। बिना पावर के हमारा जीवन गुलामों की तरह है।

 

मित्रो,   हमारा यह भी अऩुभव रहा है कि हम जिस वस्तु को मह्त्व देते हैं उसी की माँग भी करते हैं। हम उसी के लिये ईश्वर से प्रार्थना भी करते हैं। हम चाहते हैं कि वे सब बातें इस जीवन में हासिल हों।

 

मित्रो,   आपने गौर किया होगा कि जब प्रभु ने अन्द्रेयस से मुलाक़ात की और उससे पूछा कि तुम क्या चाहते हो तो उसने कहा प्रभु आप कहाँ रहते हैं। मित्रो,  यह कितना सरल सवाल है। जिनके दिल साफ होते हैं जिनके दिल में ईश्वर के लिये विशेष स्थान होता है वे सरल सवाल पूछते हैं। अन्द्रेयस का सवाल बिल्कुल ही सरल था कि प्रभु का निवास स्थान कहाँ हैं प्रभु रहते कहाँ है, प्रभु  करते क्या हैं और प्रभु किनके साथ रहते हैं ?  मित्रो,  अंद्रेयस ने बहुत ही संक्षेप में प्रभु के बारे में सबकुछ पूछ लिया। उन्होंने प्रभु से पूछा कि उनका गुजर-बसर कहाँ होता है और वे क्या करते है ?  जगह के बारे में पूछ कर अंद्रेयस ने अपनी यह इच्छा भी परोक्ष रूप से ज़ाहिर कर दी कि वह प्रभु की जगह को जानना चाहते हैं औऱ  प्रभु के साथ रहना  चाहते हैं। मित्रो,   अंद्रेयस ने प्रभु से कोई बड़ा वरदान नहीं माँगा या किसी विशेष चंगाई के लिये भी प्रार्थना नहीं की।

 

आओ और देखो

मित्रो,  अब आइये हम सुने प्रभु के ज़वाब को वे कहते हैं आओ और देखो। येसु के निमंत्रण भी उतना ही सरल है जितना की अंद्रेयस का सवाल। प्रभु चाहते हैं कि हम उनका व्यक्तिगत अऩुभव करें।

 

मित्रो,   प्रभु की बातों पर यदि हम गौर करें तो हम पायेंगे कि प्रभु की बातों में एक निमंत्रण है एक खुला निमंत्रण है। वे हमें बुलाते हैं। वे चाहते हैं कि हम खुद ही जाकर उन्हें देखें। मित्रो,  दूसरी बात प्रभु के निमंत्रण में कोई दिखावा नहीं हैं न ही कोई प्रलोभन हैं। वे चाहते हैं कि हम उसके कार्यों को देखें और उसके बाद उसके लिये कार्य करने की स्वीकृति दें।

 

मित्रो,   अगर हम सुसमाचार की बातों को ठीक से याद करते हैं तो हम पायेंगे कि अंद्रेयस प्रभु के साथ दिन भर रहा और अन्त में उसने प्रभु के जीवन को बहुत पसंद किया। जब वह घर गया तब उसने सिमोन से मुलाक़ात की और उसे बताया कि उसने मसीह को पाया है। मित्रो,   क्या आपने गौर किया कि प्रभु के आमंत्रण को सुनने के बाद अगर हम उसके साथ जीवन बिताने लगते हैं तो यह जीवन न केवल अपने लिये हितकर होता है बल्कि हमें इतना प्रभावित करता है कि हम दूसरों को भी प्रभु के पास आने के लिये आमंत्रित करने लगते हैं।

 

मित्रो,   क्या कभी आपने ऐसा अऩुभव किया कि प्रभु आपको बुला रहे हैं।जब कभी हम किसी भी बात का निर्णय करना चाहते हैं तो हम पाते हैं कि हमारी आत्मा हमसे कुछ कह रही है। हम हमारे अन्तरतम कुछ आवाज़ सुनाई पड़ता है। कई बार हमारे दिल में दूसरों को क्षमा देने की आवाज़ आती है। कई बार प्रभु हमें बुलाते हुए कहते हैं कि हम बुरी संगति छोड़ दे।कई बार येसु कहते हैं कि हम बुरी आदत छोड़ दें। कई बार येसु हमसे यह भी कहते हैं कि अपने जीवन को सफल बनाने के लिये प्रयास करें, बड़े बुजूर्गों का सम्मान करें, माता-पिता का आदर करें, समय का सदुपयोग करें और न जाने कई-कई प्रकार से प्रभु की आवाज़ हमें सुनाई देती है। प्रभु हमसे कहते हैं कि आओ और मेरे वचन के अनुसार करो और तुम्हें वो शांति मिलेगी जिसका आनन्द तो तुम्हें मिलेगा ही तुम इस आनन्द को दूसरों को भी बाँटना पसंद करोगे।

 

प्रभु को जानने की भूख

मित्रो,  आज अगर हम अंद्रेयस के समान प्रभु की अच्छाई के बारे में और जानना चाहेंगे प्रभु के पास समय बिताएँगे और प्रभु के पीछे चलना सीखेंगे तो हम अवश्य ही उस आनन्द के सहभागी होंगे जिसे बाँटने से यह बढ़ता जाता है और यह आनन्द पूर्ण हो जाता है। उस कॉलेज की छात्रा मीना के समान अगर हम नेता न भी बने पर येसु के पीछे चलने का मन बना लें, अच्छाइयों को स्वीकार लें, दूसरों के हित में जीना सीख लें और अच्छाई, सच्चाई और भलाई का रास्ता अपना लें तो हम हमारा जीवन सचमुच में सफल, सार्थक और ईश्वरीय प्रेम से परिपूर्ण हो जायेगा।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 








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