2014-12-31 10:44:56

वाटिकन सिटीः विश्व रोगी दिवस 2015 का सन्देश प्रकाशित


वाटिकन सिटी, बुधवार, 31 दिसम्बर 2014 (सेदोक): वाटिकन ने मंगलवार, 30 दिसम्बर को, "विश्व रोगी दिवस सन् 2015" के लिये सन्त पापा फ्राँसिस के सन्देश की प्रकाशना कर दी।

प्रति वर्ष 11 फरवरी को काथलिक कलीसिया द्वारा घोषित विश्व रोगी दिवस मनाया जाता है। इस दिन रोगग्रस्त लोगों के लिये विशेष प्रार्थनाएँ अर्पित की जाती तथा रोगियों के स्वास्थ्य लाभ हेतु विविध कार्यक्रमों को समर्थन एवं प्रोत्साहन दिया जाता है।

11 फरवरी 2015 को मनाये जा रहे 23 वें विश्व रोगी दिवस के सन्देश का शीर्षक बाईबिल धर्मग्रन्थ में निहित अय्यूब के ग्रन्थ से लिया गया है जिसके अनुसार, "मैं अन्धे के लिये आँख तथा लँगड़े के लिये पैर बन गया था। इस सन्दर्भ में सन्त पापा फ्राँसिस ने अपने सन्देश में कहा है कि रोगियों की देखभाल करनेवाले अनेक ख्रीस्तीय धर्मानुयायी "अन्धों की दृष्टि" तथा "लँगड़ों के पैर" हैं।

सन्देश में सन्त पापा फ्राँसिस ने जीवन के मूल्य पर बल दिया है तथा उन लोगों को मिथ्यावादी एवं झूठे बताया है जो जीवन की गुणवत्ता के नाम पर असाध्य रोगियों के जीवन का अन्त करने के पक्ष में रहते हैं।

सन्त पापा ने अपने सन्देश में कहा है कि रोगियों की मदद के लिये हृदय की प्रज्ञा आवश्यक है। इस सन्दर्भ में वे कहते हैं कि "हृदय की प्रज्ञा कोई सैद्धांतिक या अमूर्त ज्ञान अथवा तर्क का उत्पाद नहीं है। अपितु वह, जैसा कि सन्त याकूब अपने पत्र में लिखते हैं, "ऊपर से आई हुई प्रज्ञा शुद्ध और शान्ति प्रिय है, वह सहनशील, विनम्र, करुणामय, परोपकारी, पक्षपातहीन और निष्कपट है।"

सन्त पापा ने कहा, "हृदय की प्रज्ञा पवित्रआत्मा का वरदान है जो लोगों को अपने भाई बहनों की पीड़ा के प्रति संवेदनशील बनाता है तथा उनमें ईश्वर के प्रतिरूप को पहचानने में मदद प्रदान करता है। इसके साथ ही", सन्त पापा ने कहा, "हृदय की प्रज्ञा रोगियों को धैर्यपूर्वक अपनी पीड़ा को सहना सिखाता है ताकि वे विश्वास के साक्षी बन सकें हालांकि मानव बुद्धि इसके पूर्ण अर्थ को समझने में असमर्थ है।"

रोगों से पीड़ित तथा रोगियों की देखभाल में संलग्न लोगों को समर्थन देते हुए सन्त पापा फ्राँसिस ने प्राचीन व्यवस्थान के अय्यूब का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि निर्धनों के प्रति उनकी उदारता ने उनके नैतिक वैभव का लोगों को दर्शन कराया। सन्त पापा ने कहा कि ज़रूरतमन्दों की सहायता तथा रोगियों, विधवाओं एवं अनाथ बच्चों के प्रति उनके कल्याणकारी कार्यों ने अय्यूब को शहर के बुजुर्गों में महत्वपूर्ण स्थान दिला दिया था।

सन्त पापा ने कहा, "अय्यूब की तरह आज भी अनेक ख्रीस्तीय धर्मानुयायी अपने वचनों से नहीं अपितु कर्मों से अन्धों की आँखें एवं लँगड़ों के पैर बनते हैं। धोने, पट्टी बाँधने तथा भोजन कराने में वे रोगियों के निकट हैं।"

उन्होंने कहा कि अनवरत जारी रहनेवाली सेवा और देखभाल कभी-कभी बोझ बन जाता है क्योंकि कुछ समय के लिये किसी की मदद करना अपेक्षाकृत सरल होता है किन्तु महीनों और सालों तक, जब रोगी कृतज्ञता प्रकट करने में भी असमर्थ हो तब किसी की देखभाल करना आसान काम नहीं है। तथापि, यह पवित्रता के पथ पर आगे बढ़ने का महान रास्ता है जिसके द्वारा ख्रीस्तीय धर्मानुयायी कलीसिया के मिशन को विशिष्ट समर्थन प्रदान करते हैं।

सन्त पापा ने कहा, "हृदय की प्रज्ञा का अर्थ है अपने भाइयों एवं बहनों के संग रहना। रोगी के साथ व्यतीत क्षण पवित्र समय है। यह ईश्वर की स्तुति करने का एक तरीका है जो हमें ईशपुत्र येसु के अनुकूल बनाता है जो "अपनी सेवा कराने नहीं अपितु सेवा करने तथा बहुतों के उद्धार के लिये अपने प्राण देने आये हैं" (मत्ती 20:28)। येसु ने स्वयं कहा हैः "मैं तुम लोगों में सेवक जैसा हूँ" (लूकस 22:27।

सन्त पापा ने विश्व के समस्त लोगों को आमंत्रित किया कि वे काथलिक कलीसिया के साथ मिलकर 11 फरवरी के दिन रोगियों के लिये विशेष प्रार्थना करें। बीमार भाइयों एवं बहनों के प्रति एकात्मता का आह्वान करते हुए उनके साथ कुछ समय व्यतीत करने का उन्होंने सभी को परामर्श दिया ताकि रोगग्रस्त लोगों को सान्तवना एवं विश्राम तथा हम सब को पवित्रता के पथ पर विकास करने का सुअवसर मिले।









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